आधी दुनिया का एक अंधेरा कोना

Posted By Geetashree On 5:57 AM

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही तल्ख होकर केंद्र सरकार को कहा कि वह अगर दुनिया के सबसे प्राचीनतम धंधा यानी वेश्यवृति को नहीं रोक सकती तो क्यों नहीं उसे कानूनी मान्यता दे देती है। वैध हो जाने के बाद कमसेकम उनकी हालत तो सुधर जाएगी। अभी तो सरकार ना ही इस पर रोक लगा पा रही है, ना निगरानी रख पा रही है और ना उनके लिए कोई पुनर्वास की योजना है। अदालत खीझ में है..इसलिए संवेदनशील नस पर हाथ रख दिया। सरकार चुप है। ना हां कहते बनेगा ना ना। अदालत ने एक आंदोलन को हवा दे दी...जो सेक्सवर्करो का संगठन कबसे चला रहा है। वे चाहते ही है कि इस धंधे को कानूनी मान्यता मिस जाए, पश्चिम के कुछ देशो की तरह उन्हें भी इसका लाइसेंस मिल जाए..फिर उनकी मुशिकलें थोड़ी आसान हो जाएगीं। अभी तो सरकार उनके विकास के लिए कोई कदम नहीं उठा पा रही है। कुछ भी करना उनके अस्तित्व को सरकारी रुप से स्वीकार करना है। सरकार यह जोखिम नहीं उठाना चाहती। जवाब देना आसान नहीं। हो सकता है केंद्र सरकार राज्य सरकार पर इसकी जिम्मेदारी डाले और अपना पल्ला झाड़ ले।

सच्चाई से कब तक आंखें मूंदेगे। कौन नहीं जानता कि यह धंधा किसकी मिलीभगत से चलता है। पुलिस और स्थानीय प्रशासन का क्या रोल है, किससे छुपा है। राजनेता कैसे इनके वोट से जीत कर आते हैं। अदालत के इस रवैये से सेक्सवर्करो के आंदोलन को थोड़ा बल मिला होगा। लेकिन उनकी राहे इतनी आसान नहीं। हमारे देश में छुपा कर किया गया कोई भी काम पाप नहीं..अनैतिक नहीं..खुले में किए तो घोर पाप..संस्कृति खतरे में..इसके ठेकेदार छाती पीटने लगेंगे.. कहेंगे,,,हाय हाय...ये आप कैसा भारत बनाना चाहते हैं..जब तक हम जिंदा हैं ये नहीं होने देंगे। सरकार इन्हीं ठेकेदारो से तो घबराती है।

अगर आपने इस विषय पर लिखा तब भी नैतिकतावादियों को यह बात रास नहीं आती। इनमें कुछ वे लोग भी शामिल हैं जो एसे कोठे आबाद करते हैं या जिनके दम पर ये गलियां रोशन होती हैं। जिनकी ना जानें कितनी औलादें(नाजायज नहीं) गलियों में फिरती हैं...। इन पर या एसे विषयो पर लिखना आपको उनके कठघरे में खड़ा कर देता है...या व नहीं तो उन जैसे जरुर थोड़े थोड़ मान लिए जाते हैं..खासकर एक स्त्री लेखिका..यह हमारी भाषाई मानसिकता की देन है। मगर जो डट कर लिख रही हैं वे अपने लिखने को लेकर कतई क्षमाप्रार्थी नहीं हैं जैसे सोनागाछी की सेक्सवर्कर..जिन्हें अपने धंधे पर कतई शरम नहीं है. वे शान से बताती हैं, अपने काम के बारे में..। वे श्रमिक का दर्जा पाना चाहती है।
खरीदार कभी समझ भी नहीं सकते एसी औरतो को।
बेहतर हो खरीदारो को भी कोठे पर जाने के लिए परमिट लेना पड़े..जैसे गुजरात में शराब पीने के लिए परमिट लेना पड़ता है और दूकान के बाहर शराबी का नाम, बाप का नाम और पता लिखा होता है। खरीदार जब तक मौजूद हैं तब तक यह धंधा चलता रहेगा। मांग और पूर्ति का सीधा संबंध है यहां।
अभी सरकार लाइसेंस देने के बारे में बयान भी देगी तो तूफान उठ खड़ा होगा...तूफान वही उठाएंगे जो चोरी छिपे उन गलियों में फेरा लगाते हैं। अगर सेक्स बेचना अनैतिक है तो खरीदना उससे बड़ा अपराध..फिर सीना ठोक कर खरीदार क्यों नहीं खड़ा होता कि हां..हमने खरीदा या हम हैं खरीदार...पकड़े जाने पर चेहरे पर मफलर लपेट कर कैसे बच निकलते हैं...टीवी पर दिख जाते हैं। उनमें आंखें मिलाने का साहस नहीं...साहस है श्रमिक में। जो श्रम बेच रहा है बाजार में। काल गर्ल की बात छोड़ दें तो आप किसी भी सेक्स वर्कर से बात करें...उनमें अपने काम को लोकर कोई शरम नहीं..क्योंकि जिंदगी इस शरम से बहुत आगे की चीज है।

यहां कवि ऱघुवीर सहाय की काव्य पंक्तियां...
कई कोठरियां थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने में हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा.....
इन औरतों के बारे में ही कवि निशांत ने भी लिखा है...
इन औरतो को
गुजरना पड़ता है एक लंबी सामाजिक प्रक्रिया से
तय करनी पड़ती है एक लंबी दूरी
झेलनी पड़ती है गर्म सलाखो की पैनी निगाहें
फाड़ने पड़ते हैं सपनो को
रद्दी कागजों की तरह
चलाना पड़ता है अपने को खोटे सिक्को की तरह
एक दूकान से दूसरे दूकान तक....

शशिभूषण
December 12, 2009 at 6:41 PM

सुप्रीम कोर्ट का सोचना सही है.
पर इसमें पर्याप्त सच्चाई है कि इसके वैध हो जाने से पुरुष सत्ता निरंकुश हो जाएगी.औरत के पास कोई काम न हो तो पति या संरक्षक बनकर उससे यह तो करवाया ही जा सकेगा.
भिक्षावृत्ति के साथ क्या हुआ?विकलांग बनाने का यह उद्योग अब तो संगठित व्यापार है.कितनी ही जिंदगियाँ बरबाद कर रहा है...
वेश्यावृत्ति के पीछे जो सामाजिक कारण हैं उनमें ये भी तो है-एक के लिए स्वच्छंद यौन सुख दूसरे को एक अदद विवाह भी नहीं.
आपकी ये बात आगे बढ़नी चाहिए कि बेहतर हो खरीदारो को भी कोठे पर जाने के लिए परमिट लेना पड़े..जैसे गुजरात में शराब पीने के लिए परमिट लेना पड़ता है और दूकान के बाहर शराबी का नाम, बाप का नाम और पता लिखा होता है।
इस सब के बारे में जब सोचता हूँ तो फ़िल्म प्यासा का गीत याद आता ही है-जिन्हे नाज है हिंद पर वो कहाँ हैं,कहाँ हैं...
और जो किसी वेश्या को इज़्जत बख्शना चाहते हैं उन्हें मंटो की मोजेल की आखिरी बात याद रहनी चाहिए.

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी)
December 13, 2009 at 1:54 AM

वाह वाह क्या लिखा है गीता जी आप ने आँखे सम्मान से उठ जाती है और सीना चौड़ा हो जाता है गर्व होता है हमारे देश में यैसे प्रगति वादी लेखक भी है जो सुप्रीम कोर्ट की फटकार का ही गलत व्याख्यान करने लगते है ,, आप सच कहती है वैश्या वृति को क़ानूनी मान्यता तो मिल ही जानी चहिये क्यों की इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती मै तो कहता हूँ गीता जी देश में इनते क्राइम होते है (हत्या -३२३१८, बलात्कार्य -२०३७६,अपहरण -२७५६१,दहेज़ हत्या -८३९३,सम्भोगिक प्रतारणा -१०९५०- धोखा ६५३२६ , ये तो कुछ बानगी है अगर कुल मिला कर देखा जाए तो सभी प्रकार के अपराध मिला कर लगभग 44892787 चार करोड़ अड़तालिस लाख बानवे हजार सात सौ सतासी बनता है और ये ये वैश्या वृति में संलग्न लोगो से कई सौ गुना जयादा है और पुलिस इन्हें रोकने में नाकाम है तो क्यूँ न इन्हें भी सरकारी मान्यता दे दी जाए फिर तो सब अपराध ही खत्म हो जाये गे
सादर
प्रवीण पथिक

अजय कुमार झा
December 13, 2009 at 7:00 AM

ये बात तो एक बार पहले भी कही जा चुकी है कि यौनकर्मियों को बाकायदा लाईसेंस दे कर पंजीक्रत कर देना चाहिये ...और इसका कारण वही दिया गया ...कि इससे उनका हो रहा अनावश्यक शोषण तो रुकेगा ...॥मगर क्या आसान और मुमकिन है ..खासकर भारत जैसे देश में ।

हमारे यहां लागू की जाने वाली अधिकांश योजनाओं के फ़्लौप हो जाने का एक अहम कारण होता है ..कि उन्हें पश्चिमी देशों से सीधे ही अपनाने की कोशिश की जाती है ..जबकि यथार्थ के धरातल से उनका सामना होते ही सब हवा हो जाता है ॥

ऐसी बातों पर विचार करने से पहले कम से कम दस साल तक इससे जुडे हर पहलू पर अध्य्यन की जरूरत है ..और इस बात की भी कि इस बीच कोई नयी यौन कर्मी न बन पाए...क्या ऐसा संभव है । क्या ये संभव नहीं कि इसके बाद तो जबरन इस पेशे में धकेलने वालों के लिए ये एक पुख्ता बहाना बन जाए...।
सवाल और भी बहुत से हैं ..जिनका जवाब पहले तलाशना होगा .....????

KK Mishra of Manhan
December 13, 2009 at 10:30 PM

अमर उजाला में आप का लेख पढ़ा बधाई

Anonymous
December 13, 2009 at 10:30 PM

बधाई