कितनी गुलामी और कब तक..

Posted By Geetashree On 11:09 PM 6 comments

प्रज्ञा पांडे
कितनी गुलामी सहनी है स्त्री को .. सिर को कितना झुकाना है .. कब तक ..किस सीमा तक ? क्या तब तक जब तक कि वह टूट न जाये मिट न जाए? और पुरुष को कितना गर्वोन्नत होना है? वे पुरुष हैं कमाते हैं खिलाते हैं जिलाते और हम बेकार हैं ! हमारे पास किस शक्ति की कमी है बुध्धि कम है कि अरमान या की शक्ति और सम्मान कम है! उन्हें दस औरतों को देखने सराहने का अधिकार है और अगर कही स्त्री ने ऐसा कर दिया तो बहुत बड़ा पाप हों गया. इतना बड़ा कि उसकी सजा जीवनपर्यंत निर्धारित नहीं हों पाती वह उसको परिवार से और समाज से निकाल बाहर कर देने पर ही पूरी होती है !
.. पुरुष का अहम् स्त्री का असम्मान तो करता ही है समाज का सर्वनाश भी करता है! प्रकृति की व्यवस्था में . क्या पुरुष को यह अधिकार है कि पुरुष स्त्री को अपमानित करे और उसकी अस्मिता को शून्य से कम समझे .पुरुष को चरित्रहीन क्यों नहीं कहा जाता है अगर चरित्र का निर्धारण इन्हीं मापदंडों पर होता है . अगर स्त्री का पराये पुरुष को देख लेना उसके साथ हंस लेना चरित्र हीनता है तब पुरुष तो चरित्र नाम के तराजू पर चढने के लायक भी नहीं है . क्योंकि स्त्री तो उसको आमंत्रित करती है जिससे उसे प्यार होता जबकि पुरुष-स्त्री शरीर को देख कर ही संतुलन खोता है और उसके लिए लोलुप हों जाता है . वो तो जीवन में जाने कितने यौन सम्बन्ध बनाता है और मानसिक सम्बन्ध तो अनगिनत . . क्यों नहीं चरित्रहीन कहलाता है वह ? स्त्री यदि कौमार्य की परीक्षा में पास नहीं हुई तो उसका वैवाहिक जीवन अत्यंत असुरक्षित होता है पुरुष की नज़र में वह ऐसी पतिता हों जाती है कि जीवन भर उसकी नज़र में अपराधिनी होती है !
रामचन्द्र ने स्त्री की मर्यादा का मापदंड यही तो स्थापित किया और तुलसी दास जी ने उसको पूर्ण समर्थन दिया कि अगर उसके चरित्र पर किसी पागल ने भी उंगली उठा दी तो वह पूर्णतया अपराधिनी है और उसको अग्नि परीक्षा देनी है .. जिसके आँचल में दूध है उसकी आँखों में पानी क्यों ? वह तो संतति उत्पन्न करती है संसार कि संरचना में अप्रतिम सहयोग देती है वह अपनी कोख से पुरुष को जन्म देती है और अभागिन कि तरह जीती है अपनी कोख पर उसका वर्चस्व क्यों नहीं होता है? उसकी वजह से ही तो वंश चलता है .वह तो जिससे चाहे उससे संतान उत्पन्नकरे उसको कौन रोक पायेगा ? यही भय पुरुष को सताता है की कहीं वह स्वतंत्र और निरंकुश न हों जाए तभी उसके लिए निर्धारित मर्यादाओं की सीमारेखा अंतहीन है वह शराबी पति से पिटती है फिर भी तथाकथित घर छोड़कर नहीं जाती है क्योंकि स्त्री के लिए अपना घर बचाना उसकी मजबूरी है ! अगर वह ऐसा नहीं करेगी तो उसको जीवनयापन और पालन पोषण की समस्या का सामना करना पड़ेगा! क्यों विवाह के बाद लडकियां नौकरी छोड़ने पर मजबूर होती हैं . उनकी स्वतंत्रता का निर्धारण पुरुष क्यों करता है ? समाज में तो वह पहले से हाशिये पर है उसको कौन शरण देगा उसका मायका ? या कि उसका ससुराल ? अगर मायके या ससुराल में गुजर बसर की अनुमति मिल भी गयी तो दुनिया के तानो और तीखी आलोचनाओं से कहाँ मुक्ति होगी .और हर बात की भरपाई वह सम्मान पर समझौता करके करेगी . मसलन उसके चरित्र पर उंगली उठानेवाले चूकने से रहे ..उसका हाल यह कि सब कुछ होकर भी वह न घर की होती है न घाट की होती है !