दे टुक मी एंड टोल्ड मी नथिंग

Posted By Geetashree On 2:17 AM 5 comments
इराकी महिलाओ की सुन्नाह प्रथा पर एक सनसनीखेज रिपोर्ट

सचिन यादव

मानव जाति ने भले ही चांद से लेकर मंगल तक पांव पसार दिए हो पर मानसिकता अभी भी जमीन चांट रही है। मामला मध्य एशिया के एक देश इराक के कुर्दिश्तान प्रांत का है जहां इंसानियत का सरेआम बलात्कार हो रहा है। कुर्दिश्तान में ह्यूमन राइट वाच (एच आर डब्ल्यू) नामक मानवाधिकार संस्था की रिपोर्ट उजागर करती है कि स्थानीय सरकार की नाकामी के कारण यहां की सुन्नाह प्रथा का अंत नही हो पा रहा है।

सुन्नाह प्रथा का मतलब छोटी – छोटी लड़कियो के जननांग काटने से है।

मानवता को शर्मशार कर देने वाली इस फीमेल जेनेटाइल म्यूटीलेशन (सुन्नाह) प्रथा की शिकार बहुत सी इराकी कुर्दिश लड़किया और महिलाए हैं। दे टुक मी एण्ड टोल्ड मी नथिंग- फीमेल जेनेटाइल म्यूटीलेशन इन इराकी कुर्दिश्तान नामक 73 पन्नो की रिपोर्ट उन लड़कियो और महिलाओ के अनुभवो पर आधारित है जो इसकी शिकार है और जो अब कुछ धर्मगुरू एवं स्वास्थ्य कर्मियो के साथ मिलकर इस कुप्रथा के खिलाफ मुहिम चला रही है। रिपोर्ट बताती है उस खौफ को जो लड़कियो और महिलाओ के जननांगो के काटे जाने के पहले और वो असर जो बरसो बाद तक इनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर पड़ता रहता है। मात्र ये सुनकर कि इन बेगुनाहो को बिना बताए कुछ दाई स्वरूप औरते इनके जननांगो के बाहरी हिस्से को ब्लेड से काट देती हैं, पूरे शरीर में एक सनसनाहट हो जाती है। 17 साल की गोला कहती है कि मुझे याद है कि मेरी मां और मामी हम दो लड़कियो को लेकर कहीं गई। वहां पर चार और लड़किया थी। वे मुझे बाथरुम में लेकर गए और मेरे पैरो को फैलाकर कुछ काट दिया। वे सबको एक एक करके ले गए और एक ही ब्लेड से सबका सुन्नाह कर दिया। मैं डरी हुई थी और बहुत दर्द हो रहा था। जब भी मेरा मासिक रजोधर्म होता है मुझे उस हिस्से मे बहुत तकलीफ होती है।

फीमेल जेनेटाइल म्यूटीलेशन (एफजीएम) शब्द 70 के दशक में चर्चा में आया। वर्ष 1990 में अद्दाबी अबाबा में हुई ‘‘इंटर अफ्रीकन कमेटी ऑन ट्रेडिशनल प्रेक्टिस अफेक्टिंग द हेल्थ ऑफ वूमेन एण्ड चिल्ड्रन’’ के कांफ्रेस में इस शब्द को अपना लिया। लेकिन इसका अस्तित्व के प्रमाण मिस्त्र की पुरातन सभ्यता में मिले हैं। हालांकि आज मिस्त्र में इसको ख़त्म करने के लिए कानून भी बनाया गया है। इस कुप्रथा के मूल में इसाई और इस्लाम धर्म की गलत व्याख्या है। मिस्त्र में इसाई समुदाय के धर्मगुरू का कहना है कि पवित्र बाइबल में इस प्रथा का अस्तित्व ही नही है। यूनिसेफ के कथनानुसार मिस्त्र की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था ‘’अल-अजहर सुप्रीम काउंसिल ऑफ इस्लामिक रिसर्च’’ ने एक बयान जारी किया था कि शरियत में इस प्रथा का कोई आधार नही है।

बात अगर पूरे वैश्विक परिदृश्य की करे तो विश्व के अधिकांश देश इस प्रथा की चपेट में हैं। एम्नेस्टी इंटरनेश्नल के आंकड़ो को माने तो पूरे विश्व में 13 करोड़ महिलाए और लड़किया इससे पीड़ित हैं और हर साल 30 लाख लड़किया पर ये ज़ुल्म ढ़ाया जाता है। सबसे ज्यादा इस घ्रणित प्रथा को अफ्रीका के 28 अलग-अलग देशो में किया जाता है। पश्चिमी अफ्रीका के सेनेगल से पूर्वी तट तक और मिस्त्र से लेकर तंजानिया तक की महिलांए और लड़कियां इसकी शिकार हैं।

अफ्रीका के बारकीनो फासो में 71.6%, सेन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 43.4%, डिजीबुआती में 90 –98%, मिस्त्र में 78-97%, इरिट्रिया में 90%, इथियोपिया में 69.7-94.5%, घाना में 9-15%, गुनिया में 98.6%, नाइजीरिया में 25.1%, सिनेगल में 5-20%, सुड़ान में 91%, तंजानिया में 17.6%, टोगो में 12%, युगांडा में 5% से कम एफजीएम से पीड़ित हैं।

ये वे देश हैं जो इस कुप्रथा के शिकार है और ये सभी इस प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर लड़ रहें हैं इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, नीदरलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, स्वीडन, युनाइटेड किंगडम और युनाइटेड स्टेट्स जैसे देशो ने अपने नागरिको के हित के लिए एफजीएम विरोधी कानून बना कर उसको सख्ती से लागू करवा रहें हैं। संयुक्त राष्ट्र ने तो 6 फरवरी को इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस टु फीमेल जेनेटाइल म्यूटीलेशन घोषित कर दिया है। लेकिन एशियाई देशो में इराक के कुर्दिश्तान प्रान्त में एफजीएम से 72.7 फीसदी महिलाओ और लड़कियों के पीड़ित होने के बावजूद इराकी इस कुप्रथा को अपना नसीब मानकर बैठ गए है।

सन् 2008 में स्थानीय इराकी सरकार ने इस प्रथा को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए थे, पुलिस ने भी सुन्नाह करने वालो के ख़िलाफ सख़्त कार्रवाई की थी। कुर्दिश्तान नेशनल असेंबली के बहुसंख्यक सदस्यो ने भी सुन्नाह पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयक का समर्थन किया लेकिन इच्छाशक्ति में कमी के चलते यह बिल ठंडे बस्ते में चला गया। वर्ष 2009 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्थानीय एनजीओ के साथ मिलकर फिर से सुन्नाह के खिलाफ एक सुनियोजित मुहिम चलाई लेकिन इस बार भी नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात रहा, मंत्रालय ने अपने कदम खी़च लिए और मुहिम किसी मुकाम तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो गई।

एचआरडब्ल्यू के रिसर्चर्स ने मई और जून 2009 में कुल 31 लड़कियो और महिलाओ (जो कि उत्तरी इराक के हलबजा कस्बे के चार में रहती हैं) का इंटरव्यू किया। नादिया खलीफी जो कि मध्य एशिया में महिला अधिकारो की लड़ाई लड़ रहीं हैं कहती हैं कि इराकी कुर्दिश्तान में महिलाओ और लड़कियो की अच्छी खासी तादाद इस विनाशकारी प्रथा की शिकार है। एच आर डब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय सरकार इस ख़तरनाक और समाज को कमजोर करने वाली इस प्रथा को ख़त्म करने में ठोस कदम उठाने में नाकाम रही है। इसके अलावा रिपोर्ट कहती है कि एफ जी एच प्रथा महिलाओ और बच्चो के मौलिक अधिकारो का हनन करने के साथ ही साथ उनके जीवन को भी चुनौती दे रहा है। ऐसे में लाज़िमी है कि कुर्दिश्तान में इस घिनौनी प्रथा को रोकने के स्थानीय सरकार को एक सुनियोजित तरीके से कठोर कानून लागू करना चाहिए।

(सचिन, बिजनेस भास्कर, दिल्ली में पत्रकार हैं।)