एक समानांतर दुनिया के लोग

Posted By Geetashree On 4:14 AM 10 comments

नैतिकता के ठेकेदारों की दुनिया में फिर से खलबली मची है. अचानक उन्हें नैतिकता खतरे में दिखाई दे रही है. उनके हिसाब से परदे के पीछे जो नरक करना हो करो..सामने आए तो मारे जाओगे. क्योंकि इससे समाज का ढांचा गड़बड़ा जाएगा..परिवार नामक संस्था कमजोर पड़ जाएगी..भारतीय समाज यूरोपीय समाज में बदल जाएगा.
समलौंगिको को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए सरकार ने कानून बदलने की अभी सोच ही रही है कि ठेकेदार सामने आ गए है और छाती पीट रहे हैं. उस वक्त ये ठेकेदार सो जाते हैं जब किसी लड़की का सामूहिक बलात्कार होता है या किसी दलित लड़की को सरेआम नंगा करके घुमाया जाता है. सरकार को भी इन्हीं से भय है..पता नहीं क्या हंगामा कर बैठे। समलैंगिकता को इतना बड़ा मुद्दा ना बना दे कि संसद का अगला सत्र हंगामेदार हो जाए.
सोच जब गहरी हो जाती है तब इरादे कमजोर पड़ जाते हैं। सरकार इस पर सोच विचार करने की बात करके फिलहाल हंगामे को टालने मूड में दिखाई दे रही है। समलैंगिक संबंधों को गैरकानूनी ठहराने वाले आईपीसी के सेक्शन 377 को बदलने के लिए जैसे ही सरकार ने इसकी पुर्नविवेचना की आवश्यकता पर जोर दिया वैसे ही किसी का दुनिया आबाद हो उठी तो समाज के ठेकेदारों के पेशानी पर बल पड़ गए..सरकार ने कहा ही है कि वह समाज के सभी तबको से बात करने वाली है और इनमें धार्मिक संस्थाएं भी शामिल होंगी. कानून मंत्री वीरप्पा मोइली बयान सुने-कैबिनेट को इस मुद्दे पर विचार करने कहा गया है लेकिन जल्दीबाजी में कोई फैसला नहीं लिया जाएगा. पता नहीं सरकार किस मूड में है..अगर धार्मिक संगठनो को शामिल करेगी तो भारत में समलैंगिक समाज को मान्यता मिलना असंभव है. विरोधी दल अपना विरोध जता रहे हैं कि भारत को यूरोप नहीं बनने देंगे. भारत में अप्राकृतिक(कानून की नजर में 10 साल की सजा का प्रवधान) यौन संबंधों के लिए कोई जगह नहीं है. लेकिन यूरोपीय देशों में इसे व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा संवैधानिक अधिकार मानते हैं। क्या भारत में नहीं होना चाहिए एसा..क्या यहां के लोगो को व्यक्तिगत पसंद चुनने का हक नहीं होना चाहिए. माना कि यहां वहां के समाजो में काफी अंतर है..मगर यहां मसला व्यक्तिगत आजादी का है जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज की पहली पहचान, पहली शर्त्त होती है. सरकार के कुछ मंत्री भी डर रहे है कि इस तरह के संबंध को छूट देने से देश की कानून व्यवस्था बिगड़ेगी। कोई तर्क दे रहा है कि इस कानून को मान्यता देने से ,माज में अराजकता फैल जाएगी, कोई इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ मान रहा है तो कोई इसे भयानक बीमारियों से जोड़ कर देख रहा है...। हमें समझ में नहीं आता कि आखिर दो व्यक्तियो के बीच प्रेम अपराध कैसे हो सकता है। अपनी लैंगिकता का उत्सव मनाने में जुटे लोगो की बातें तो इक बार सुनो..हमें तो डर है कि यह मसला भी राजनीति का शिकार होकर ना रह जाए. दिल्ली समेत कई शहरो में समानांतर दुनिया के लोगो ने खुशियां तो मना ली..सरेआम खुल कर..बयान भी दिए...टीवी चैनलों पर चीख चीख कर कहा कि हमने नहीं चुना ये रास्ता..इसको समझो. हमें ईश्वर ने बनाया एसा तो हम क्या करें...। हालाकिं ये पूरा सच नहीं है। कई बार कुछ लोग खुद चुनते हैं इस रास्ते को..खासकर औरतें..जब वे शासक पुरुषों के चंगुल से मुक्ति चाहती है तब। मर्द क्यों होते हैं समलैगिक, ये तो वही जानें..शायद प्रकृति उन्हें बना कर भेजती है..लेकिन औरते इस मामले में कई बार अपना रास्ता खुद चुन लेती है। कुछ प्राकृतिक रुप से समलैगिंक होती भी हैं। दोनो ही मामले में एक स्त्री या इनसान को अपनी देह पर इतना अधिकार तो है ना कि वो अपनी मर्जी से सेक्स जीवन का चुनाव करे। ना जाने कितनी लड़कियों और पुरुषों को जबरन शादी के बंधन में बांध कर उनका जीवन बरबाद कर दिया गया है। मेरे जानने वाले एक मेकअप मैंन की व्यथा सुने जिनकी शादी हाल ही में कर दी गई। घरवाले उसकी बात सुनने तक को तैयार नहीं थे। अंत क्या हुआ...बीबी दो दिन में यह कहते हुए छोड़ गई कि तुम्हें पुरुष की जरुरत है मेरी नहीं..। आज वो अपने भविष्य के इस अंधेरे से अकेले जूझ रहा है..
क्या उसे हक नहीं कि जिसके साथ वह कंफर्टेबल है उसके साथ जीवन शुरु कर सके..समाज में रह सके..लोग उसे हीन नजर से ना देखें..क्या घरवालों को उसकी समस्या को समझना नहीं चाहिए..इसी साल एक चर्चित फिल्म दोस्ताना आई थी..बहुत चली और सराही गई। इसमें एक बात गौर कने लायक है कि एक दकियानूसी मां आखिर अपने बेटे के समलैंगिक होने को स्वीकार लेती है. ये अलग बात है कि बेटा समलैगिंक नहीं है..मगर फिल्म इसी उद्ददेश्य से बनाई गई है कि समाज अपना रवैया बदले। एसे रिश्तों से लोगो को परिवार का ढांचा बखरता क्यों दिखाई दे रहा है..जबकि एसे कई सफल जोड़ो ने बच्चे तक गोद लिए हैं, परिवार बनाया है. कहां हैं समस्या..एसा भी नहीं कि कानून बनते ही सारे लोग इसी रास्ते पर चल पड़ेंगे..जो जैसा है वै वैसा ही जीवन चुनेगा..बस एक समानांतर दुनिया जरुर बन जाएगी जो आपसे ज्यादा खुली और आजाद होगी..कुंठा रहित..