वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता सा
अनुभव से जानता हूं कि यह वसंत है
- रघुवीर सहाय
वेलेंटाइन डे समझ में आने से बहुत पहले की बात है। होली पर प्रेम का इजहार होता था हमारे मोहल्ले में। कोई चौदह फरवरी का इंतजार नहीं करता था। सभी को होली का इंतजार रहता था कि कब होलिका दहन की रात आए और पूरी रात उसका दीदार हो पाए, जिसे देख पाना सपने की तरह होता है। पूरी रात लकड़ियां चुराना, क्योंकि उन दिनों खरीदने के पैसे नहीं हुआ करते थे, रंगीन ताव की झंडियां बना कर लई से सुतली पर चिपकाना और एक किनारा पकड़ कर दूसरा किनारा पकड़ने के बहाने हौले से उसका हाथ छू लेना और सुबह गुलाल लगाने के बहाने उसकी मांग लाल कर देने का शौक पूरा कर लेते थे। वही एक रात होती थी जब लड़कियों को घर से बाहर रहने की इजाजत होती थी। भाई बेशक साथ होते थे, लेकिन बहनों को छूट देने में उस दिन कोई कंजूसी नहीं। आखिर उन्हें भी तो किसी का इंतजार रहता था। सुबह चार बजे होलिका दहन की आंच में चमकते चेहरों को देख कर किसी भी मुड़े-तुड़े कागज पर लिखी गई शायरी शायद आज भी कहीं किसी डायरी में महफूज होगी। अब याद करती हूं तो लगता है, पता नहीं कौन सी वह दुनिया थी और कौन सी होली। बस याद है तो कुछ बातें. किसी की कोई हो...ली और कोई उन दिनों को याद कर बस रो...ली।
आकांक्षा पारे
और मन में कुछ टूटता सा
अनुभव से जानता हूं कि यह वसंत है
- रघुवीर सहाय
वेलेंटाइन डे समझ में आने से बहुत पहले की बात है। होली पर प्रेम का इजहार होता था हमारे मोहल्ले में। कोई चौदह फरवरी का इंतजार नहीं करता था। सभी को होली का इंतजार रहता था कि कब होलिका दहन की रात आए और पूरी रात उसका दीदार हो पाए, जिसे देख पाना सपने की तरह होता है। पूरी रात लकड़ियां चुराना, क्योंकि उन दिनों खरीदने के पैसे नहीं हुआ करते थे, रंगीन ताव की झंडियां बना कर लई से सुतली पर चिपकाना और एक किनारा पकड़ कर दूसरा किनारा पकड़ने के बहाने हौले से उसका हाथ छू लेना और सुबह गुलाल लगाने के बहाने उसकी मांग लाल कर देने का शौक पूरा कर लेते थे। वही एक रात होती थी जब लड़कियों को घर से बाहर रहने की इजाजत होती थी। भाई बेशक साथ होते थे, लेकिन बहनों को छूट देने में उस दिन कोई कंजूसी नहीं। आखिर उन्हें भी तो किसी का इंतजार रहता था। सुबह चार बजे होलिका दहन की आंच में चमकते चेहरों को देख कर किसी भी मुड़े-तुड़े कागज पर लिखी गई शायरी शायद आज भी कहीं किसी डायरी में महफूज होगी। अब याद करती हूं तो लगता है, पता नहीं कौन सी वह दुनिया थी और कौन सी होली। बस याद है तो कुछ बातें. किसी की कोई हो...ली और कोई उन दिनों को याद कर बस रो...ली।
आकांक्षा पारे