मां बनिए या फाइटर पायलट

Posted By Geetashree On 8:51 PM 14 comments
गीताश्री
पुरुषवादी सोच का फरमान आ चुका है...अगर मां बनना है तो फाइटर प्लेन उड़ाने का सपना भूल जाइए। वायु सेना महिलाओ को फाइटर पायलट बनाने की योजना पर विचार तो कर रही है लेकिन सशर्त्त। इसमें शर्त्त ये है कि यह मौका उन्हीं महिलाओं को मिलेगा जो एक तय उम्र तक मां बनेगी। यानी पारिवारिक दायित्वों के कारण महिलाओं को युध्दक विमान उड़ाने की फिलहाल अनुमति देने को वायुसेना तैयार नहीं है। भारतीय वायुसेना के उप प्रमुख एयर मार्शल पीके बारबोरा ने कहा है कि अगले कुथ सालों में हम यह परिवर्तन देखेंगे महिलाए फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, लेकिन उन्हें एक शर्त्त माननी पड़ेगी। वो शर्त्त है...महिलाएं शादी तो कर सकती हैं लेकिन मां नहीं बन सकतीं। वायुसेना में 13-14 साल तक नौकरी कर लेने के बाद ही मां बनने की इजाजत होगी। यानी अपनी नौकरी पूरी कर लें फिर चाहे मां बनती रहें। सेवा में रहते उन्हें ये सौभाग्य नहीं मिलेगा।

कैसा संयोग है कि यह बयान तब आया है जब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सुखोई विमान में उड़ान भरने जा रही हैं। इसके साथ ही वे इतिहास में दर्ज हो जाएंगी। वे जंगी जहाज में उड़ान भरने वाली दुनिया की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष होंगी।

उसी देश में महिलाओं को फाइटर पायलट बनने की राह में कितने रोड़े अटकाए जा रहे हैं..देखिए..यहां औरत की कोख पर बवाल है। मार्शल का तर्क है कि एक महिला को फाइटर पायलट बनाने में लगभग 11 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। अगर वे बीत में ही मां बन गई तो उनकी कार्य क्षमता पर असर पड़ेगा और उन पर खर्च किए गए रुपये बेकार हो जाएंगे। जाहिर है बच्चा पैदा करनें में जो समय लगेगा वो उससे लंबा गैप आएगा। ये दिन तो हर कामकाजी महिला के जीवन में आता है। क्या सभी नौकरियों में एसी शर्त्ते रखी जाएंगी। देखा जाए तो नुकसान हर संस्थान को होता है तो क्या महिलाएं मां बनना छोड़ दें। भाई साहब..अब कोख पर तो पहरे ना लगाइए।

कुछ महिला संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई कि महिलाओं को लैंगिक भेदभाव के कारण लड़ाकू विमान नहीं उड़ाने दिया जाता है। इस पर मार्शल साहब बेहद तल्ख हो उठे। उनका बयान सुनिए...महिलाओं की प्रकृति कुछ अलग होती है। उन्हें पारिवारिक जीवन में प्रवेश के बाद 10 से 12 महीने तक मातृत्व अवकाश की जरुरत पड़ती है। इसीलिए उन्हें बतौर पायलट ट्रेंड करना लाभकारी नहीं है। दूसरे क्षेत्रों में महिलाओं की उपयोगिता भरपूर है तो फिर एसी जगह पर उन्हें क्यों जाना चाहिए, जहां उन पर खर्च कर तुलना में उनका उपयोग न हो पाए।

इनके मुताबिक महिलाओं को पारंपरिक क्षेत्रों में ही काम करना चाहिए। जोखिम वाले इलाके पुरुषों की बपौती है। उनके गढ में प्रवेश करने से क्या उनका वर्चस्व टूट जाएगा या इसके पीछे सचमुच कोई वाजिब चिंता है। चिंता जो साफ दिख रही है वो है पैसे की। ट्रेनिंग पर खर्च होने वाले पैसों की...मां बनना तो किसी भी औरत का अपना फैसला होता है। चाहे वह नौकरी करें या ना करें। आप थोप नहीं सकते। ये मामला स्वैच्छिक होता तो बात कुछ और होती। जैसे आज बहुत सी औरतें करियर को ध्यान में रख कर मां नहीं बनना चाहतीं। ये उनकी मर्जी। ना वहां जोर चलाएं ना यहां चलाएं।

जब पाकिस्तान जैसे दकियानूसी मुल्क में महिलाएं फाइटर पायलट हैं तो हमारे यहां एसी सोच क्यों। पाकिस्तान समेत दुनिया के पांच मुल्को में महिलाएं फाइटर पायलट हैं। मुझे नहीं लगता कि वहां एसा कोई बवाल है। मैं अभी इस विषय पर काम करुंगी ताकि पता चले कि इंगलैंड, अमरीका ने आखिर महिलाओं से क्या कुर्बानी ली है बदले में।

कुछ साल पहले हमने महिलाओं को सामाजिक पहलुओं के बारे में सोच कर वार में नहीं भेजने का फैसला किया था। क्योंकि वार के दौरान बंदी होने की संभावना होती है फिर उनके साथ महिला होने के कारण क्या व्यवहार होगा वो चिंताजनक बात थी। बाद में इस चिंता पर भी काबू पा लिया गया। आखिर देह की वजह से कबतक महिलाओं को वंचित और अपमानित होते रहना पड़ेगा।

अभी मन में बेहद आक्रोश हैं...कई तरह के सवाल हैं...मैं अभी ठीक से खुद को व्यक्त नहीं कर पा रही हूं..चाहती हूं आप सब इस बहस में हिस्सा लें..अपनी राय दें...क्या महिलाएं सुन रही है....कुछ बोलिए...