हम नहीं, आंकड़े बोलते हैं

Posted By Geetashree On 12:36 AM 13 comments

एक दिन पहले मैंने पोस्ट लिखा, अगले दिन एक अखबार में एक सर्वे छपा जो मेरी राय को सपोर्ट कर रहा है। मैं यहां उस खबर को ज्यों का त्यों डाल रही हूं, ताकि शादी की उम्र को को लेकर जो भयावह सच है वो सामने आ जाए। सहयोग संस्था के सर्वे के मुताबिक य़ू पी में 62 प्रतिशत युवाओं की शादी 18 साल से कम उम्र में हो रही है।
यह सर्वे आजमगढ, चंदौली, मिर्जापुर, झांसी, लखनऊ और मुजफ्फरपुर के 1003(एक हजार तीन) लोगो के बीच किया गया। इनमें पुरुष एवं महिला अभिभावको के अलावा शिक्षक, एएनएम, डाक्टर और युवा शामिल थे। सहयोग की ओर से यशोधरा ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें कहा गया है कि अभी भी यूपी में 62 फीसदी युवाओं का विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में हो रहा है। 13 से 18 वर्ष की सिर्फ 3.23 लड़कियां ही एसी हैं जिन्हें अपनी मर्जी से घर बाहर जाने की इजाजत है।

सर्वे के दौरान इसके अलावे कई और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। यूपी की ही एक सामाजिक कार्यकर्त्ता तीखी प्रतिक्रिया देती है--लोग कच्ची उम्र में बच्चियों की शादी करने से परहेज नहीं करते पर यौन शिक्षा देने के नाम पर उनकी झूठी नैतिकता जाग उठती है। वह हैरान थी कि इन इलाको में लड़कियां अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में एकदम अनभिज्ञ थी। लड़को की भी कमोवेश यही हालत थी। 92 फीसदी युवाओ ने बताया कि उन्हें अपने बदलावों के बारे में जानकारी अपने दोस्तों, सहेलियों से मिलती है, जो काफी हद तक गलत होती है। ग्रामीण इलाको के डाक्टर भी नीम हकीम भी होते हैं। कभी कभी वे भी गलत जानकारी दे देते हैं। नतीजा..शादी तो हो जाती है मगर ज्ञान शून्य।
एसे में धड़ाधड़ बच्चे ना पैदा होंगे तो क्या होगा।
क्या एसे पिछड़े इलाको में युवा परामर्श केंद्र नहीं खोले जाने चाहिए जहां जाकर बेहिचक ग्रामीण युवा लड़के, लड़कियां अपनी जिज्ञासा शांत करसकें, अपने सवाल पूछ सकें। क्या घरवालो को नहीं चाहिए कि अपने बच्चे को प्राथमिक स्तर की यौन शिक्षा दे सकें या दिला सकें। साधारण जानकारी तो घर में भी दी जा सकती हैं। नहीं तो बच्चों की शादी की उम्र बढा दो, समय के साथ कुछ बातें अपने आप समझ में आने लगती हैं। उनकी समझ पकने से पहले ही ब्याह देंगे तो क्या होगा। लड़कियों के मामले में मां बाप ही फैसला लेते हैं। यहां उनकी जवाबदेही ज्यादा बनती है। इनकी मानसिकता तो एसी होती है कि लड़की पैदा हुई नहीं कि उनका एक एक दिन इसी इंतजार में कटने लगता है कि कब जल्दी बड़ी हो और ब्याह दें। लड़के के बारे में सोचते हैं कि कब कमाने लगे कि घर में आर्थिक सहयोग करने लगे।
लड़की को जाना है अपने घर..इसलिए उससे एसी उम्मीद करना पाप है। लड़की की कमाई..ना बाबा ना..सोचना भी पाप है। जिस घर में जाएगी वहां तय होगा कि क्या करना है इसे आगे..हम तो पालक हैं, भाग्य विधाता कोई और..। अभी तक इस मानसिकता से पूरा समाज ग्रस्त है, खासकर ग्रामीण इलाको में तो घोर स्त्री विरोधी माहौल है।
एसे माहौल में उनसे ये उम्मीद करना कि वे लड़कियों को यौन शिक्षा देंगे, मूर्खता है। अज्ञानता का यह आलम है कि सर्वे में सिर्फ 32 फीसदी युवाओ को पता था कि गर्भपात क्या होता है। गर्भ निरोधको की जानकारी की तो बात ही मत पूछो।
यह चेहरा एक राज्य का नहीं है, एसे हालात देश के कई राज्य के ग्रामीण इलाके में है। बिहार में सर्वे करा लीजिए, इससे भी भयावह नतीजे मिलेंगे। जल्दी ही वहां के आंकड़े भी बोलेंगे..। हालात तो मेरा आंखों देखा है। बताएंगे विस्तार से..।