देसी चीयर्स लीडर के ठुमके
गीताश्री
बदनाम बस्ती की सबसे जिद्दी लडक़ी इन दिनों बेहद चिंतित और गुस्से में है। उसे बेचैन कर दिया है इस खबर ने कि उस बस्ती की लड़कियां अब बिहार के गांवों, कस्बों में होने वाले रात्रिकालीन क्रिकेट मैचों में चीयर्स लीडर बनकर जा रही हैं। बात सिर्फ चीयर्स लीडर की नहीं है, इसकी आड़ में देह के धंधे का एक नया रूप शुरू हो गया है। लोगो की जरुरत के हिसाब से बस्ती की चीजें बदल गई हैं। मंडी के हिसाब से चीजें नहीं बदलीं। खुद को कलाकार कहने वाली लड़कियां अपनी कला अब अपने कोठो पर नहीं, लोगो की मांग के अनुसार कहीं भी दिखाने पर आमादा है। इनमें से कोई भी खुद को सेक्सवर्कर नहीं कहती। इन्हें अपना फन पेश करने का लाइसेंस मिला है।
इन गलियों में कभी सूरज उगने का नहीं ढलने का इंतजार रहता था। दरवाजे तभी खुलते थे जब कोई दस्तक देता था। वहां एक परदा था जो हर किसी की जिंदगी से लिपटा हुआ था। उन गलियों से गुजरकर अक्सर हवा अलसाई हुई सी बहने लगती थी। अब हवा में शोखी है। रौनक गली अब किसी पुरानी रंग उड़ी पेंटिंग की तरह दिखती है। नई पीढी ने बहुत कुछ बदल दिया है यहां। उनके पुकारे कोई आए या ना आए, लोगो की पुकार, मांग उन्हें खेतो, खलिहानो से लेकर क्रिकेट के मैदानो तक ले जा रही हैं।
इन दिनों देशभर में आईपीएल का खुमार सिर चढक़र बोल रहा है, वहीं बिहार में आईपीएल की तर्ज पर क्रिकेट नाइट टूर्नामेंट का चलन शुरू हो गया है। वहां भी दर्शकों के मनोरंजन के लिए सेक्सवर्कर मौजूद हैं। हर चौक्के-छक्के पर उनके ठुमके दर्शकों को सिसकारियों से भर देते हैं।
ज्यादा दिन नहीं हुए, समस्तीपुर जिले के अधारपुर जगदेव मध्य विद्यालय परिसर में टी-20 नाइट क्रिकेट का आयोजन। मैच के दौरान फूहड़ गानों का शोर उत्तेजना जगाता है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति और चौंकाने वाली है। पूरा ग्राउंड दर्शकों से खचाखच भरा हुआ है। ग्राउंड पर मैच चल रहा है और मंच पर डांस। मैदान में मौजूद ग्रामीण क्रिकेट टीम के कई सदस्य नाबालिग भी हैं। न पुलिस का ध्यान इस तरफ गया और सरकारी स्कूल परिसर में इसके आयोजन पर प्रशासन से अब तक कोई आपत्ति जताई है।
हैलोजन लाइट के सुरमई अंधेरे में जलवाफरोश बालाएं चंद पैसों की खातिर भरे मैदान में ठुमक रही हैं। इन सबसे बेचैन लडक़ी नसीमा कहती हैं, धंधे का यह नया रूप ‘लॉन्च’ हुआ है, कहां पहले मुजरा और कव्वाली के दौर चलते थे। फिर आया आर्केस्ट्रा और अब ये चीयर्स लीडर का नया चलन।
चतुर्भुज स्थान, मुज्जफरपुर में परचम संस्था से जुड़ी नसीमा हंसती हैं, ‘आईपीएल में विदेशी लड़कियां हैं, हमारे यहां लोग ‘हाई प्रोफाइल’ चीजों को तुरंत अपना लेते हैं। देखिए, कैसे इस प्रवृत्ति ने एक मुजरे वाली को चीयर्स लीडर में बदल दिया।’ नसीमा बताती हैं कि इस तरह के क्रिकेट मैच ज्यादातर छपरा, सिवान, मोतिहारी, आरा, बक्सर, रक्सौल इलाके में खूब हो रहे हैं, जहां हर टीम का अपना चीयर्स लीडर होता है।’
यहां सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या सिर्फ आईपीएल की लोकप्रियता या उसकी नकल करने की प्रवृत्ति की वजह से बदनाम बस्ती की लड़कियां मैदान में चीयर्स लीडर बनकर पहुंच गई।
इस सवाल का उत्तर देते हैं, बदनाम बस्ती पर किताब लिख रहे युवा कहानीकार प्रभात रंजन। वह बताते हैं, ‘अब तो मेलों और मैचो में रंग जमाने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। दुख की बात है कि वहां अच्छी गानेवालिया रह गई हैं, न अच्छी नर्तकी। तवायफों ने इलाका छोड़ दिया। बस उनकी कहानियां बच गई हैं। करीब 100 सालों के इतिहास वाली यह बस्ती अब सिर्फ जिस्म की मंडी में तब्दील हो गई है।’
नसीमा तो सारा दोष प्रशासन को देती है, जिसे यह सब दिखाई नहीं देता। वह कहती हैं, ‘क्यों नहीं सरकार देह व्यापार का लाइसेंस दे देती है। कम से कम ये सब अलग-अलग रूप तो चलन में नहीं आते। क्या विडंबना है कि जो लोग इस व्यापार के खिलाफ है, वही लोग देह व्यापार के नए-नए रूप निकाल रहे हैं। चीयर्स लीडर के लिए क्या है? चौक्को-छक्को पर ठुमके? उनके जीवन का क्या?’
इस बस्ती की नई उम्र की लड़कियों में परंपरागत हुनर (मुजरा-कव्वाली) से कटकर हाई प्रोफाइल महफिलों में जाने का आकर्षण ज्यादा है। पहले कद्रदान इनकी दहलीज तक आते थे। अब नई लड़कियां उनके बुलावे पर कहीं भी उपलब्ध हैं-हर रूप में। चाहे वह आर्केस्ट्रा गल्र्स हो या चीयर्स लीडर।
कभी महफिल की शान रही जीनत बेगम कहती हैं, क्या करे? कुछ तो करना होगा ना। महफिलें उजड़ गई हैं। राते बेमजा। समाज बदल गया है। पहले रतजगा हुआ करता था। रात रात भर संगीत की महफिल। जमींदार गए, कौन सजाएगा महफिल।
पढी लिखी, मुंहफट नसीमा भी दार्शनिक हो उठती हैं, ‘पहले घर में बैठकर रोटी मिलती थी। अब रोटी का टुकड़ा खिसकता जा रहा है। हम उसके पीछे-पीछे जाते जा रहे हैं...।’
वह दुष्यंत का शेर सुनाती है..दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो, तमाशबीन दूकानें सजा कर बैठ गए।