इन दिनों भोजपुरी फिल्मों पर किताब लिखने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे नुक्कड़ पर इनका स्वागत है। उनकी ताजा कविता पढिए..
बैठा रहा चांद
चबूतरे के करीब
कोई सिहरन कुरेदती रही
रीढ की हड्डी धीरे धीरे
उतार ना सका
तुम्हारे गंध के केंचुल को किसी तरह
तुम बहती रही रात भर
धमनियों में धीरे धीरे
