वो कहते हैं ना कि शादी लाइसेंस प्राप्त वेश्यावृति है। या यूं कहें कि शादी के बाद पुरुषों को एक स्त्री का जीवन भर रेप करने का लाइसेंस प्राप्त हो जाता है। यानी सामाजिक स्वीकृति की मुहर लग जाती है..स्त्री की इच्छा अनिच्छा बेमानी है। इस मान्यता के बावजूद सिमोन द बोउआर की तरह मैं भी यह मानती हूं कि स्त्री पुरुष के बीच यौन संबंध हमेशा दमनकारी नहीं होते। एसे दैहिक संबंधों को अस्वीकर करने के बजाए उस संबंध में मौजूद दमनकारी तत्वों के विनाश की कोशिश क्यों ना की जाए।
एक स्त्री अपने मनपसंद पुरुष के साहचर्य मे अपनी यौनिकता की खोज करती है। दुनिया के सबसे सुंदर रिश्ते में जब जबरदस्ती जैसे तत्व घुस आए तो क्या होगा।
हाल ही में एक खबर ने औरतों की दुनिया में फिर हलचल मचाई। अफगानिस्तान एक तरफ चुनाव झेल रहा है वही वहां औरतो को लेकर बन रहे नए नए कानून उसे डरा रहे है। वहां के नए कानून ने पुरुषों को यह हक दिया है कि अगर बीबी शौहर की यौन संबंधी मांग पूरी नहीं करती, इनकार करती है तो उसका खाना पीना बंद किया जा सकता है। यानी सेक्स नहीं तो खाना नहीं..उनकी भूख मिटाओ नहीं तो अपनी भूख से जाओ..।
क्या शानदार कानून है। कानून के नए मसौदे में पिता और दादा को ही बच्चों का अभिभावक माना गया है। अगर महिला को नौकरी ही करनी है तो उसे अपने शौहर से इजाजत लेनी होगी। कानून में बलात्कारी को मुकदमे से बचने का भी एक असरदार तरीका दिया गया है। बलात्कार के दौरान जख्मी हुई लड़की को खून का भुगतान कर बलात्कारी लड़की को खून का भुगतान कर आसानी से बच सकता है।
यह विधेयक वहां पहले भी पास हुआ था। इसके मूल स्वरुप का भारी विरोध हुआ था। तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई ने इसे वापस ले लिया था। मगर मौजूदा संशोधित विधेयक अब भी महिला विरोधी है। सीधे सीधे इसके पीछे वहां की चुनावी राजनीति काम कर रही थी। चुनाव में शिया समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए करजई ने यह बर्बर कानून पास किया था। क्योंकि यह सिर्फ शिया समुदाय पर ही लागू होती है। बर्बरता का आलम ये था कि पहले जो मूल विधेयक बनाया गया था उसके अनुसार शिया महिलाओं को अपने शौहर के साथ सप्ताह में कमसेकम चार बार सेक्स करना जरुरी था। मानों औरत ना हुई, सेक्स करने की मशीन हो गई। पति ना हुआ सेक्स को गिनने वाला गणितज्ञ हो गया। गिनना ही पड़ेगा, सरकार चाहती है। हैरानी होती है कि कोई एसा मुल्क भी हो सकता है जहां सरकारें चिंता करें कि शौहर की सेक्स लाइफ कैसे आबाद रहे।
लगता है अब पत्नी के नियंत्रित करने के लिए पतिनुमा जीव विस्तर पर विधेयक की कापी लेकर सोएगा। स्त्री को नियंत्रित करने के लिए मर्द कानून का सहारा लेने लगे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव सही ही तो लिखते है,---आदमी ने मान लिया है कि
औरत शरीर है, सेक्स है, वहीं से उसकी स्वतंत्रता की चेतना और स्वच्छंद
व्यवहार पैदा होते हैं, इसीलिए हर तरह से उसके सेक्स को नियंत्रित करना
चाहता है।
कवि पंत के अनुसार--योनि मात्र रह गई मानवी।
एक स्त्री अपने मनपसंद पुरुष के साहचर्य मे अपनी यौनिकता की खोज करती है। दुनिया के सबसे सुंदर रिश्ते में जब जबरदस्ती जैसे तत्व घुस आए तो क्या होगा।
हाल ही में एक खबर ने औरतों की दुनिया में फिर हलचल मचाई। अफगानिस्तान एक तरफ चुनाव झेल रहा है वही वहां औरतो को लेकर बन रहे नए नए कानून उसे डरा रहे है। वहां के नए कानून ने पुरुषों को यह हक दिया है कि अगर बीबी शौहर की यौन संबंधी मांग पूरी नहीं करती, इनकार करती है तो उसका खाना पीना बंद किया जा सकता है। यानी सेक्स नहीं तो खाना नहीं..उनकी भूख मिटाओ नहीं तो अपनी भूख से जाओ..।
क्या शानदार कानून है। कानून के नए मसौदे में पिता और दादा को ही बच्चों का अभिभावक माना गया है। अगर महिला को नौकरी ही करनी है तो उसे अपने शौहर से इजाजत लेनी होगी। कानून में बलात्कारी को मुकदमे से बचने का भी एक असरदार तरीका दिया गया है। बलात्कार के दौरान जख्मी हुई लड़की को खून का भुगतान कर बलात्कारी लड़की को खून का भुगतान कर आसानी से बच सकता है।
यह विधेयक वहां पहले भी पास हुआ था। इसके मूल स्वरुप का भारी विरोध हुआ था। तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई ने इसे वापस ले लिया था। मगर मौजूदा संशोधित विधेयक अब भी महिला विरोधी है। सीधे सीधे इसके पीछे वहां की चुनावी राजनीति काम कर रही थी। चुनाव में शिया समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए करजई ने यह बर्बर कानून पास किया था। क्योंकि यह सिर्फ शिया समुदाय पर ही लागू होती है। बर्बरता का आलम ये था कि पहले जो मूल विधेयक बनाया गया था उसके अनुसार शिया महिलाओं को अपने शौहर के साथ सप्ताह में कमसेकम चार बार सेक्स करना जरुरी था। मानों औरत ना हुई, सेक्स करने की मशीन हो गई। पति ना हुआ सेक्स को गिनने वाला गणितज्ञ हो गया। गिनना ही पड़ेगा, सरकार चाहती है। हैरानी होती है कि कोई एसा मुल्क भी हो सकता है जहां सरकारें चिंता करें कि शौहर की सेक्स लाइफ कैसे आबाद रहे।
लगता है अब पत्नी के नियंत्रित करने के लिए पतिनुमा जीव विस्तर पर विधेयक की कापी लेकर सोएगा। स्त्री को नियंत्रित करने के लिए मर्द कानून का सहारा लेने लगे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव सही ही तो लिखते है,---आदमी ने मान लिया है कि
औरत शरीर है, सेक्स है, वहीं से उसकी स्वतंत्रता की चेतना और स्वच्छंद
व्यवहार पैदा होते हैं, इसीलिए हर तरह से उसके सेक्स को नियंत्रित करना
चाहता है।
कवि पंत के अनुसार--योनि मात्र रह गई मानवी।
यहां एक छोटी सी कहानी का उल्लेख करना जरुरी लग रहा है--एक बार जरथुस्त्र
एक बुढिया से पूछता है, बताओ, स्त्री के बारे में सच्चाई क्या है। वह
कहती है, बहुतसी सच्चाईयां एसी है जिनके बारे में चुप रहना ही बेहतर है।
हां, अगर तुम औरत के पास जा रहे हो तो अपना कोड़ा साथ ले जाना मत भूलना।
यह कोड़ा अब विधेयक के रुप में औरतों में खौफ भर रहा है। स्त्री पुरुष दोनों के लिए जो आनंद का पल है, वो खौफ में बदल रहा है।
बहरहाल, विधेयक के मूल स्वरुप का वहां इतना विरोध हुआ कि इसमें संशोधन करना पड़ा और चालाकी देखिए कि संशोधित विधेयक को चुपचाप पारित कर दिया गया। हैरानी होती है कि भारतीय समाज की खुली पाठशाला में जीवन का पाठ पढने वाले उदारवादी करजई महज चुनावी फायदे के लिए आधी दुनिया के मन और इच्छाओं से कैसे खेल सकते हैं। वैसे भी अरब देशों में पहले से ही औरतों के विऱुध ढेर सारे कानून और सामाजिक पाबंदियां हैं जहां उनका दम घुट रहा है। हिम्मत जुटा कर महिलाएं प्रदर्शन भी कर रही हैं। फिर भी उनकी आवाजें, उनके गुहार अनसुने हैं...वहां रोज महिलाओं के अधिकारो के हनन के नए नए कानून ढूंढे जाते हैं। सामंती उत्पीड़न से अभी तक उनकी मुक्ति नहीं हो पाई है। एसी यंत्रणादायक परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए वहां की औरत को सामूहिक ल़ड़ाई लड़नी पड़ेगी। अपने शरीर को लेकर आखिर कितनी यातना झेलेगी औरत।
कैसा समाज होगा वह जहां एक कानून औरतों को बीवी से वेश्या में बदल दे वो भी अपने घर में। वेश्याएं तो खुलेआम दैहिक श्रम से अपने लिए खाना पीना जुटाती हैं, घरों में बीबियां भी अपने पेट की भूख मिटाने के लिए शौहर के साथ दैहिक श्रम करेंगी। क्या फर्क है..सिर्फ मर्द ही तो बदल रहे हैं...चरित्र तो वही है...दमनकारी। इस संदर्भ में भारतीय समाज को याद किया जाना लाजिमी है।
शहर हो या गांव औरत हर जगह सेक्स एक उपादान है। ज्यादातर पतियों का मुंह इसलिए सूजा रहता है कि बीवी ने सेक्स करने से मना कर दिया। मियां का मूड बिगड़ गया। संबंधों में कुंठा और लड़ाई की पहली सीढी यही होती है जो बाद में घरेलू हिंसा में बदल जाती है। लोग लड़ाई की जड़ तक नहीं पहुंच पाते कई मामलो में। झु्ग्गियों में झांके, ज्यादातर औरतों की कुटाई इसीलिए होती है, क्योकि वे रोज रोज अपने शराबी पति की हवस मिटाने से मना कर देती हैं। मध्यवर्ग में सीधे सीधे वजह यह नहीं बनता मगर बड़ी वजह यही होती है। पुरुष कुंठित होने लगता है और औरतें घुटने लगती है..छोटी छोटी बात पर झगड़े हिंसक रुप ले लेते हैं..भीतर में सेक्स-कुंठा इस झगड़े को हवा देती रहती है।
एक बुढिया से पूछता है, बताओ, स्त्री के बारे में सच्चाई क्या है। वह
कहती है, बहुतसी सच्चाईयां एसी है जिनके बारे में चुप रहना ही बेहतर है।
हां, अगर तुम औरत के पास जा रहे हो तो अपना कोड़ा साथ ले जाना मत भूलना।
यह कोड़ा अब विधेयक के रुप में औरतों में खौफ भर रहा है। स्त्री पुरुष दोनों के लिए जो आनंद का पल है, वो खौफ में बदल रहा है।
बहरहाल, विधेयक के मूल स्वरुप का वहां इतना विरोध हुआ कि इसमें संशोधन करना पड़ा और चालाकी देखिए कि संशोधित विधेयक को चुपचाप पारित कर दिया गया। हैरानी होती है कि भारतीय समाज की खुली पाठशाला में जीवन का पाठ पढने वाले उदारवादी करजई महज चुनावी फायदे के लिए आधी दुनिया के मन और इच्छाओं से कैसे खेल सकते हैं। वैसे भी अरब देशों में पहले से ही औरतों के विऱुध ढेर सारे कानून और सामाजिक पाबंदियां हैं जहां उनका दम घुट रहा है। हिम्मत जुटा कर महिलाएं प्रदर्शन भी कर रही हैं। फिर भी उनकी आवाजें, उनके गुहार अनसुने हैं...वहां रोज महिलाओं के अधिकारो के हनन के नए नए कानून ढूंढे जाते हैं। सामंती उत्पीड़न से अभी तक उनकी मुक्ति नहीं हो पाई है। एसी यंत्रणादायक परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए वहां की औरत को सामूहिक ल़ड़ाई लड़नी पड़ेगी। अपने शरीर को लेकर आखिर कितनी यातना झेलेगी औरत।
कैसा समाज होगा वह जहां एक कानून औरतों को बीवी से वेश्या में बदल दे वो भी अपने घर में। वेश्याएं तो खुलेआम दैहिक श्रम से अपने लिए खाना पीना जुटाती हैं, घरों में बीबियां भी अपने पेट की भूख मिटाने के लिए शौहर के साथ दैहिक श्रम करेंगी। क्या फर्क है..सिर्फ मर्द ही तो बदल रहे हैं...चरित्र तो वही है...दमनकारी। इस संदर्भ में भारतीय समाज को याद किया जाना लाजिमी है।
शहर हो या गांव औरत हर जगह सेक्स एक उपादान है। ज्यादातर पतियों का मुंह इसलिए सूजा रहता है कि बीवी ने सेक्स करने से मना कर दिया। मियां का मूड बिगड़ गया। संबंधों में कुंठा और लड़ाई की पहली सीढी यही होती है जो बाद में घरेलू हिंसा में बदल जाती है। लोग लड़ाई की जड़ तक नहीं पहुंच पाते कई मामलो में। झु्ग्गियों में झांके, ज्यादातर औरतों की कुटाई इसीलिए होती है, क्योकि वे रोज रोज अपने शराबी पति की हवस मिटाने से मना कर देती हैं। मध्यवर्ग में सीधे सीधे वजह यह नहीं बनता मगर बड़ी वजह यही होती है। पुरुष कुंठित होने लगता है और औरतें घुटने लगती है..छोटी छोटी बात पर झगड़े हिंसक रुप ले लेते हैं..भीतर में सेक्स-कुंठा इस झगड़े को हवा देती रहती है।