गीताश्री
पिल का खेल सबको समझ में आ गया है। इनका बहुत बड़ा बाजार है। इसने औरतों को टारगेट किया। पुरुषो ने अपने स्पर्श के आनंद के लिए औरतो को गोली ठुंसाई। वे कंडोम को अपनी राह का रोड़ा मानते हैं। इसीलिए औरतो को मानसिक रूप से तैयार करते हैं कि वे पिल को अपना लें। औरतें ही गोली क्यो खाएं? इससे बेहतर है कि हम पचास साल की गुलामी से बाहर आएं।
-एक स्त्रीवादी लेखिका
बहुत योजनाबद्घ तरीके से पुरुष नियंत्रित कंपनियों और समाज ने पिल को प्रोत्साहित किया। जबकि हमारे पास उसका विकल्प कंडोम के रूप में मौजूद था। अब महिलाएं कंडोम के पक्ष में हैं। -- एक स्त्रीवादी उपभोक्ता
पिल का खेल सबको समझ में आ गया है। इनका बहुत बड़ा बाजार है। इसने औरतों को टारगेट किया। पुरुषो ने अपने स्पर्श के आनंद के लिए औरतो को गोली ठुंसाई। वे कंडोम को अपनी राह का रोड़ा मानते हैं। इसीलिए औरतो को मानसिक रूप से तैयार करते हैं कि वे पिल को अपना लें। औरतें ही गोली क्यो खाएं? इससे बेहतर है कि हम पचास साल की गुलामी से बाहर आएं।
-एक स्त्रीवादी लेखिका
बहुत योजनाबद्घ तरीके से पुरुष नियंत्रित कंपनियों और समाज ने पिल को प्रोत्साहित किया। जबकि हमारे पास उसका विकल्प कंडोम के रूप में मौजूद था। अब महिलाएं कंडोम के पक्ष में हैं। -- एक स्त्रीवादी उपभोक्ता
एक शांत-सा विज्ञापन- टेलीविजन पर आता है इन दिनों। कोई शोर शराबा नहीं, पति पत्नी के बीच आंखों-आंखों में बातें होती है और उसके बाद ‘आई-पिल’ का जिक्र।ऐसा नहीं कि इससे पहले कोई गर्भ निरोधक दवाई बाजार में नहीं आई। सिप्ला कंपनी की यह गोली शायद कुछ ज्यादा ही खास है। इसे गर्भधारण के 72 घंटे बाद लेने से भी काम चल जाता है। यही इसकी सबसे खास बात है। कंपनी ने इस के प्रचार में गुलाबी रंगों से लिखा है, ‘इसका उपयोग बिना डॉक्टरी सहायता के भी किया जा सकता है। साथ ही यह भी लिखा है कि यह गोली गर्भपात की गोली नहीं है।’पचास साल पहले जब गर्भनिरोध· गोली अस्तित्व में आई तब औरतों की दुनिया बदलने का अंदाजा शायद किसी को न रहा होगा। अनचाहे गर्भ का बोझ ढोती और साल दर साल बच्चे पैदा करती औरतें असमय बूढ़ा जाती थीं। आधी जिंदगी रसोई और आधी कोख यानी बच्चे पैदा करने में गुजर जाती थी। अपने साथ दैहिक आजादी का अहसास लेकर आई ‘जादुई पिल’ ने जब पश्चिम की औरतों को पहली बार उनकी आजादी का अहसास कराया होगा, तब औरतों ने ईश्वर के बदले वैज्ञानिको को धन्यवाद दिया होगा। औरतों की इस बेचारगी के बारे में मार्क्सवादी विचारक शुलामिथ फायर स्टोन ने भी स्पष्ट किया था कि जब तक स्त्री को गर्भाशय से मुक्ति नहीं मिलती, तब तक उसकी वास्तविक मुक्ति संभव नहीं। इन गोलियों ने पश्चिम में 50 वर्ष पहले महिलाओं के लिए मुक्ति की दिशा में कदम बढ़ा दिए। आई पिल के पैकेट पर ऐसी औरतों का ही सूरते हाल छपा हुआ है। एक उदास औरत शून्य में देख रही है। उसके नीचे लिखा है, ‘असहजता, दुश्चिंता, क्रोध, खुद से खफा, भय, ग्लानि, क्षोभ, शर्म, अकेलापन... ऐसे अनेक तरह के संशय बोध से घिरी एक औरत अनचाही गर्भ का बोझ ढोने को खुद को तैयार नहीं पाती तो इससे उबार लेने के लिए ‘आई-पिल’ मदद करने आया।’ मदद के नाम पर स्त्रियां इनके जाल में फंसती चली गईं। जो चीज 50 साल पहले शुरुआती वर्षो में आजादी का प्रतीक थी, वह धीरे धीरे जबरन गुलामी का प्रतीक बन गई। अब पता चल रहा है कि जादुई पिल सेक्सुअल आजादी की सारी कीमत सिर्फ महिलाओं से वसूलता है, पुरुषों से नहीं। कोख से मुक्ति देने के नाम पर कंडोम की उपलब्धता के बावजूद स्त्रियां पिल की जादुई गिरफ्त में फंसती चली गईं। जबकि सच ये हैं कि पिल कंडोम की तरह यौन सुरक्षा नहीं दे सकता। बल्कि सिर्फ इस पर निर्भर रहे तो यौन संबंधी कई बीमारियां हो सकती है। कंपनियां भी इसे स्त्रियों की आजादी से जोड़कर प्रचारित करती हैं। इस दौर में पिल को स्त्री की आजादी से जोड़कर देखने को मैं मर्दवादी सत्ता की साजिश मानती हूं। ये ठीक है पिल ने मुक्ति दी थी। लेकिन 50 साल से स्त्रियां ही बचाव क्यो करें। आजादी के नाम पर उन्हें लुभाना बंद कर देना चाहिए। क्यों खाती रहें गोली। आप क्यो ना यह जिम्मेवारी उठाओ। अब मुक्ति दो गोली की गुलामी से। अपने लिए उपाय तलाशो और उन्हें आजमाओ। पिल के महत्व से हमें इनकार नहीं। दुनिया बदलने में उसका बहुत बड़ा हाथ रहा है। एक पुरानी फिल्म का संवाद यहां सटीक बैठता है, जिसमें लंपट नायक कुंवारी, गर्भवती-नायिका से कहता है, ‘ईश्वर ने तुम स्त्रियों को कोख देकर हम मर्दों का काम आसान कर दिया।’ लेकिन पिल ने आकर ईश्वर के काम में दखल दे दिया। ये गोलियां धार्मिक वर्जना के विरुद्ध एक औजार की तरह आईं जिसे स्त्रियों ने अपने बचाव के लिए इस्तेमाल किया। पचास साल पहले जब इन गोलियों का अस्तित्व सामने आया तब पश्चिमी विचार· मारग्रेट सेंगर ने टिप्पणी की थी, ‘गर्भ पर नियंत्रण वह पहला महत्वपूर्ण कदम है जो स्त्री को आजादी के लक्ष्य की ओर उठाना ही चाहिए। पुरुषों की बराबरी के लिए उसे यह पहला कदम लेना चाहिए। ये दोनों कदम दासता से मुक्ति की ओर हैं।’ मुक्ति का दौर आज भी जारी है। इस एक छोटी सी गोली ने औरतों की बड़ी दुनिया का नक्शा बदल दिया। औरतें खुदमुख्तार हुईं और देह पर उनका पहला नियंत्रण यही से आरंभ हुआ। उन्होंने तय किया कि उन्हें ‘महाआनंद’ की कीमत अनचाहे गर्भ से नहीं चुकाना है। बेखौफ औरतें पुरुषों के अराजक साम्राज्य से बाहर निकलीं। बस अब नई राह पर चलना है...आप समझ रही हैं ना..।
अब पुरुषों के लिए भी गोली
दौर में महिलाओं के लिए राहत की कई खबरें हैं। अब जो खबर है वह उन महिलाओं को खुश कर देगी जो इन गर्भनिरोध· गोलियों के इस्तेमाल से स्तन कैंसर और इसकी बीमारियों के खतरे को लेकर आशंकित रहती हैं।
ब्रिटेनमें एक ऐसी गर्भनिरोधक गोली का परीक्षण किया जा रहा है जो खासतौर से पुरुषों के लिए तैयार की गई है। ब्रिटिश प्रोफेसर रिचर्ड एंडरसन के अनुसार, ‘मौजूदा दौर में ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि पुरुषों के लिए कोई गर्भ निरोधक गोली होनी चाहिए। महिलाओं की इसी चाहत को अमल में लाने की कोशिश की जा रही है।’ बतौर परीक्षण दो साल तक पुरुषों पर इन गोलियों के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा।