एकल जीवन का मर्म

Posted By Geetashree On 9:33 PM 8 comments
मैं आफिस के काम से दो दिन की यात्रा पर थी, इधर दिल्ली में यह सम्मेलन हो रहा था। वादा करके भी मैं सम्मेलन की रिपोर्ट आप तक नहीं पहुंचा पाई। हमारी पुरानी मित्र अलका आर्य की पैनी नजर रहती है स्त्री विषयक मुद्दों पर। इस सम्मेलन पर भी उनकी नजर थी। उन्होंने दो दिन तक हर पहलू पर नजर रखी और कुछ जरुरी सवाल उठाते हुए उसे लेखनुमा पेश किया है...अलका ने मेरा वादा पूरा कर दिया।

दिल्ली में देश के 15 राज्यों से आईं विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, और कुंवारी माएं जुटी और उन्होंने मिल कर राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच के गठन की घोषणा की। सन 2001 की जनगणना के अनुसार देश में 7.4 प्रतिशत महिलाएं एकल हैं। हालांकि इस सीमित दायरे के कारण इनकी वास्तविक संख्या सरकारी रिकार्ड से कहीं ज्यादा होगी। एकल स्त्री की सरकारी परिभाषा में बिन ब्याही औरत का कोई जिक्र नहीं है। जबकि एकल नारी संगठन के अनुसार 35 साल से ज्यादा उम्र की बिनब्याही औरत भी एकल नारी है। एकल महिलाओं के अधिकारो के लिए संघर्ष करने वाले संगठन का मानना है कि एसी महिलाओं की सूची में विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, 35 साल से ज्यादा उम्र की कुंवारी महिलाएं, कुंवारी माएं, जिनके पति लापता है, या आजीवन कारावास भोग रहे हैं, या किसी गंभीर शारीरिक, मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, या एचआईवी, एडस से पीड़ित एकल महिलाएं हैं...। एकल महिलाओं की इस गैरसरकारी परिभाषा के दायरे की तुलना में सरकारी परिभाषा का जो संकुचित दायरा नजर आता है उसमें औरत की पहचान के प्रति रुढिवादी सामाजिक सोच ही हावी है।

दरअसल एकल महिलाओं के अस्तित्व को स्वीकार ना करने के कारण वे आज संसाधनहीन हैं। एसी महिलाओं की मदद के लिए एक दशक पहले 1999 में राजस्थान में एकल नारी संगठन का गठन किया गया और आज देश के झारखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात व बिहार में एकल महिलाओं के लिए संगठन काम कर रहे हैं। फिर भी देश भर की एकल महिलाओं की मदद के मद्देनजर राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच के गठन की जरुरत महसूस की गई।
राज्य स्तरीय संगठन अपने अपने राज्यों में एकल महिलाओं के अधिकारो के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कहीं कहीं थोड़ी सफलता भी मिली है।
कही-कही थोड़ी सी सफलता मिली है। मसलन हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने मदर टेरेसा असहाय मातृ सबल योजना के तहत बच्चों की आयु 14 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी है और सहयोग राशि भी 1000 से बढ़ाकर 2000 रुपये कर दी है, लेकिन यह योजना सिर्फ विधवाओं के लिए है। हिमाचल प्रदेश की एकल नारी शक्ति संगठन को बच्चों की आयुसीमा व सहयोग राशि बढ़वाने में तो सफलता मिली, मगर अब उसकी मांग राज्य की सभी एकल महिलाओं के बच्चों को इस योजना में शामिल करने की है। राजस्थान में सामाजिक सुरक्षा पेंशन की रकम 125 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 400 रुपये कर दी गई है। झारखंड में प्रस्तावित महिला नीति में एकल महिलाओं को अलग श्रेणी में दर्शाया गया है, लेकिन इन चंद उपलब्धियों के साथ हमें एकल महिलाओं की मदद के लिए बनी सरकारी योजनाओं की हकीकत को भी नहीं भूलना चाहिए। भारत स रकार की स्वाधार योजना हो या राष्टï्रीय परिवार लाभ योजना ये एकल महिलाओं के बहुत बड़े हिस्से तक नहीं पहुंच पाती। राशन कार्ड प्राय: घर के पुरुष मुखिया के नाम जारी किया जाते है। पत्नी के अलग हो जाने की स्थिति में उसके नाम दूसरा राशन कार्ड नहीं बनाया जाता, जबकि छह साल पहले सर्वोच्च अदालत ने अपने एक खास आदेश में कहा है- विधवाओं एवं एकल नारी, जिसकी सहायता करने वाला कोई नहीं है, को भी इस योजना में शामिल किया जाए।नरेगा भी एकल महिलाओं को रोजगार मुहैया कराने में खास मददगार नहीं सिद्ध हुआ, क्योंकि अक्सर जॉब कार्ड परिवार के पुरुष सदस्य के नाम जारी किया जाता है वह इसमें कार्य पुरुष एवं महिला के जोड़े को ही प्रदान किया जाता है। योजना आयोग की सदस्य डॉक्टर सईदा हमीद के अनुसार देश के सबसे महत्वपूर्ण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के दायरे से एकल महिलाओं को बाहर रखने से भी 11वीं पंचवर्षीय योजना के उन धेाषित उद्देश्यों को नुकसान पहुंचेगा, जिसमें समाज के सभी वर्गों के विकास पर अत्याधिक जोर दिया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस योजना में नए दिशा-निर्देश अपनाएं जाएं, ताकि एकल महिलाओं को इस योजना का सही लाभ मिल सके। राष्टï्रीय एकल नारी अधिकार मंच की सरकार से मुख्य मांग एकल महिला को अलग पारिवारिक इकाई का दर्जा, अलग राशन कार्ड, सामाजिक सुरक्षा राशि व जॉब कार्ड देने की है। अब देखना है कि मंच ने अपने मांगपत्र में केंद्र सरकार से 2011 की जनगणना में एकल महिलाओं को विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता व अविवाहित की श्रेणियों में रखने की जो मांग की है, उस पर सरकार क्या रुख अपनाती है।