विवादो के साए में उत्सव

Posted By Geetashree On 12:14 AM 1 comments
इस साल अपनी उम्र के चालीसवें साल में प्रवेश कर गया अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह लेकिन विवादों ने अभी तक इसका दामन नहीं छोड़ा है। अभी तक इस पर अपरिपक्व होने के आरोप लगाए जा रहे हैं। समारोह में शामिल कुछ महत्वपूर्ण हस्तियों को यह आशंका सता रही है कि कहीं आने वाले दिनों में इंटरनेशनल समारोह गोवा के स्थानीय फिल्म समारोह में बदल कर ना रह जाए।
अभिनेत्री नंदिता दास बहुत कुछ बोल गईं। उनकी फिल्म फिराक बिना इंगलिश सबटाइटिल के दिखाई गई और उन्हें सवाल जवाब का सत्र भी नहीं दिया गया बस आयोजको के गैर पेशेवाराना रवैये पर उनका पारा चढ गया। फिर क्या था। अनौपचारिक बातचीत में उनका गुस्सा खूब छलका। नंदिता ने कहा कि इफ्फी को आने वाले दिनों में विश्वस्तरीय समारोह की तरह बनना होगा। नहीं तो कोई छवि नहीं बन पाएगी। समारोह में उम्मीद की जाती है कि विश्व सिनेमा की महान हस्तियां समारोह स्थल पर दिखेंगी। दुनिया के सभी कोनो से महान फिल्में देखने को मिलेंगी।

दोनों बाते सच हैं। एक तो विश्व सिनेमा खंड मे फिल्मों के चयन को लेकर खूब सवाल उठाए गए वहीं समारोह में ज्यादातर बौद्धिक किस्म के सितारों का जमावड़ा लगा। जिनकी फिल्में अच्छी तो होती है मगर उनका कोई स्टार वैल्यु नहीं. फिल्म समारोह निदेशालय के डायरेक्टर एसएम खान भी सितारो की गैर मौजूदगी को स्वीकारते हुए तर्क देते हैं, यहां वहीं सितारे आते हैं जिनकी फिल्म होती है या जिन्हें बुलाया जाता है। महज घूमने के लिए व्यस्त सितारे नहीं आते हैं।

समारोह के साथ विवादो की लंबी सूची है। एक मामला अभी तक दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिग है। भारतीय पैनोरमा के एक ज्यूरी सदस्य का आयोजकों से अपमानित होने से मामला तूल पकड़ गया। जूरी के एक सदस्य, वरिष्ठ पत्रकार गौतमन भास्करन ने फिल्मों के चयन प्रक्रिया पर आरोप जड़ा कि जूरी के कई सदस्य फिल्मों के चयन के वक्त मौजूद नहीं थे। उनका इशारा मुजफ्फरअली और बाबी बेदी की तरफ था. गौतमन ने खफा होकर चयनित फिल्मों की सूची एक वेबसाइट पर लीक कर दी। यहां से वबाल शुरु हो गया। मलयाली फिल्मकार सुजित ने निदेशालय पर दिल्ली हाईकोर्ट में केस कर दिया कि दक्षिण के फिल्मकारों के साथ नाइंसाफी हुई है और बंगाली फिल्में ज्यादा चुनी गई हैं। कोर्ट ने फिल्मों की सूची जारी करने से मना कर दिया।

समारोह
जब करीब आया तो निदेशालय ने कोर्ट से अपील कर सूची खुद नहीं बल्कि प्रेस इनफामेर्शन ब्यूरो से जारी करवा दिया। आमतौर पर निदेशालय यह खुद ही जारी करता है। इस लड़ाई की छाया समारोह में इस कदर पड़ी कि भारतीय पैनोरमा के सभी जूरी सदस्य का परिचय कराया गया और गौतमन का नाम नहीं लिया गया। ना ही उन्हें कोई सुविधा दी गई. गौतमन ने जब बवाल मचाया तो उन्हें दो टूक जवाब मिला कि कोर्ट ने आपको समारोह से अलग रखने को कहा है। इधर गौतम कहते रहे यह सरासर झूठ है।