गीताश्री
दोस्तो, जल्दी में थोड़ी सी बात...आज अन्ना की आंधी में मैं भी उड़ी। दिन भर एसएमएस भेजे..दोस्तो से अपील की कि वे जंतर मंतर जाए..भले थोड़ी देर के लिए। एक इतिहास वहां रचा जा रहा है, उसके हिस्से बनें, अपना योगदान दें। जो लोग व्यक्ति केंद्रित प्रलापो विलापो में जुटे हैं उन्हें सदज्ञान आए कि इस वक्त मुद्दे कितने महत्वपूर्ण हैं। आप दूर हैं, कोई बात नहीं..हुक्मरानों को हिला देने वाले एक आंदोलन को अपना नैतिक समर्थन तो दे ही सकते हैं। तरीका कोई भी हो सकता है। लेकिन वक्त आ गया है कि आप जाग जाएं..अपने लिए ना सही..भावी पीढी के लिए जो एक भष्ट्राचार मुक्त समाज में सांस ले सकेगी। अपनी भावी पीढी को आप कुछ तो दे जाएं।
जंतर मंतर पर एक तरफ भूख हड़ताल पर बैठे अन्ना और उनके कुछ समर्थक..भूख हमें लगी थी। वहां खाने पीने का छोटा सा ढाबा है जो बहुत साल पहले रिपोर्टिंग के दौरान रोज खाने का हमारा अड्डा हुआ करता था। खाना टेस्टी होता है। दूर दूर से लोग खाने आते हैं। आज भी कुछ लोग खा रहे थे...ये वो लोग थे जो बहुत दूर से अन्ना के समर्थन में चल कर आए थे और जिनका खाना जरुरी था कि बहरी सरकार के कान के परदे फाड़ सके उनकी बुलंद आवाज।
मन हुआ कि कुछ खा लूं..खाया नहीं गया। दूर मंच पर बैठे अन्ना दिखाई दिए.खाना तो घर पर भी खा लेंगे लेकिन नारा लगाने और तालियां बजा कर हौसला बढाने का अवसर फिर ना मिलेगा। रोज के काम निपटाने ही हैं, आफिस जाना ही है, घर लौटना ही है। विनोद शुक्ल याद आते हैं...घर बाहर जाने के लिए उतना नहीं होता, जितना लौटने के लिए होता है....
गरमी है इन दिनों। सिर पर धूप चमकती है। सफेद रंग के शामियाने तने हैं सिर पर। पर गरमी सारे बंधन तोड़ कर सिरो को जलाती है। आंदोलनकारियो को इसका एहसास नहीं। कोई केरल से चला आ रहा है तो अलीगढ मुस्लिम विश्वविधालय से छात्रों का हुजुम चला आ रहा है। एनआरआई मेहमान भी टीवी पर खबरे देख मुहिम को समर्थन देने चले आए। एक 78 साल का बूढा, कैसे देश के नौजवानो को झकझोर रहा है..यहां देखिए।
एक पल के लिए भीड़ का चेहरा एक सा हो जाता है। सब एक से हैं..क्योंकि सबका मकसद एक है। ललकार में सबकी आवाज एक सी होती है। इस आंदोलन का किसी राजनीतिक पार्टी से कोई लेना देना नहीं है। राजनीतिक दलो को यहां रोटियां सेंकने का मौका नहीं मिलेगा।
जेपी आंदोलन की हल्की सी याद है। याद करुं तो कोलाहल सा उठता है जेहन में। स्मृतियो के धुंधले आकाश में एक बूढा चेहरा चमकता है। एक भीड़ दिखाई देती है। सायरन और भगदड़ सी सड़को पर.पूरा याद होतो आज से तुलना करें। लेकिन आज जो कुछ देखा..वह कितना आश्वस्तिदायक है। लोग अपने आप आ रहे हैं। खुद ही अपील कर रहे हैं। किसी का निजी स्वार्थ नहीं। एक ही एजेंडा। मीडिया की सकारात्मक भूमिका। वहां खड़े होकर आप टीवी चैनलो के रिपोर्टर का पीटीसी सुनें तो अंदाजा हो जाएगा। मगर सरकार हिल कर भी हिलती दिखाई नहीं दे रही। और कितने दिन अन्ना को बिना अन्न के रहना पड़ेगा।
मन अजीब सा हो रहा है। कुछ खाओ तो अपराध सा लगता है। आज रात सोच रहे हैं वहां डेरा डालें। कमसेकम देर तक रुका तो जा सकेगा। हाथ में कैंडिल लेकर रोशनी तो जलाई जा सकती है। देखें, क्या होता है। फिलहाल खबरो पर गहन नजर है। अन्ना का चेहरा गांधी की तरह होता जा रहा है...