गीताश्री
आधी दुनिया के लिए यह खुश होने का वक्त है.भारत में महिला आरक्षण बिल पर मचे बवाल ने आधी आबादी की दुनिया में जहां मायूसी का आलम पैदा किया है, वहीं बाहर से आई एक ताजा खबर सूकून देने वाली है. अब सऊदी अरब में महिलाओं पर पाबंदी में कुछ रियायत मिलने वाली है. हल वक्त एक संरक्षक होने को अनिवार्य़ करने वाले नियमों को खत्म करने संबंधी कदम उठाने का संकल्प वहां की सरकार ने लिया है।यह बात हम सबको पता थी कि सऊदी अरब में महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर अकेली जाने, विदेश यात्रा, शादी करने और सार्वजनिक सेनाएं हासिल करने के लिए पुरुषों का संरक्षण लेना जरुरी होता है. यह एकमात्र एसा मुल्क है जहां औरतें बिना बुर्के के बाहर नहीं निकल सकती, ना ही गाड़ी ड्राइव कर सकती हैं. घोषित तौर पर कई अन्य इस्लामिक देशों में औरतों पर इतनी पाबंदी नहीं है.
अब ईरान को ही लें. अपनी आंखों से देख सुन, जी कर आई हूं..वहां हमने भी सिर पर स्कार्फ बांधा, पूरी बांह के कपड़े पहने..सड़को पर चुपचाप फिरे..ना गाना..ना बजाना..मगर बुर्के से आजादी तो थी. लड़कियां गाड़ी चला रही थीं, सरेआम सिगरेट फूंक रही थीं., हुक्के गुड़गुड़ा रही थीं..अकेली फिर रही थीं. तेहरान की सड़को पर लड़िकयां लड़को के हाथ में हाथ डाले घूमती दिख जाती हैं. वे लड़के संरक्षक नहीं, साथी होते हैं. वहां कुछ पाबंदियों को छोड़ दें तो सऊदी अरब से बेहतर स्थितियों में ईरानी महिलाएं सांसें ले रही हैं. ऐसा नहीं है कि सऊदी की औरतें गूंगी गुड़ियाएं है. समय-समय पर उन्होंने आवाज उठाई है, कई नियमों के बदलाव के खिलाफ, मगर उन्हें हर बार वहां के प्रभावशाली कट्टरपंथी धर्मगुरुओं के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और उनकी आवाजें दब गईं. सऊदी अरब हो या अन्य कोई इस्लामिक देश, उनका कानून काफी हद तक शरीयत पर निर्भर करता है. बाकी इस्लामिक देशों ने आधुनिक रंगढ़ग अपना लिया है, सऊदी अरब अभी तक उसी पुराने रंग ढंग की काली खोल में लिपटा रहा है. पिछले सप्ताह जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद के साथ एक समीक्षा हुई बैठक के दौरान सऊदी अरब के अधिकारियों ने पहली बार अपना उदारवादी चेहरा दिखाया. उन्होंने बयान दिया कि इस्लाम महिलाओं को अपने काम करने और कानून द्वारा दिए गए अधिकारों के इस्तेमाल के हक की इजाजत देता है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शरीयत में वर्णित पुरुष संरक्षकत्व का सिध्दांत सऊदी कानून में शामिल नहीं है. ऐसा बयान देने वालों से कौन पूछे कि जब पुरुष संरक्षकत्व का सिध्दांत आपके कानून में नहीं था, तब आपने औरतों पर अपनी मर्जी क्यों और कैसे थोपी? इतनी देर से आपको समझ में कैसे आया? औरतों को पता नहीं कितनी पीढ़ियां अपनी मुक्ति का स्वप्न देखती हुई गुजर गई.
फिलहाल मेरी पड़ोसन और सऊदी अरब में रहने वाली भारतीय महिला पिंकी भटनागर आज मुस्कुरा रही होगी. शीघ्र ही उसे सऊदी अरब अच्छा लगने लगेगा. उसे बुर्के से आजादी तो नहीं मिलेने वाली. हां वह जहां चाहे वहां अकेली तो जा ही सकती है. पति की व्यस्तता ने उसे एकदम से वहां घर में कैद कर लिया है. वह बिना कथित पुरुष संरक्षक के बाजार तक नहीं जा सकती, गाड़ी चलाना तो दूर. अपने डॉ. पति के साथ रियाद के पास 'आभा' शहर में रहने वाली पिंकी को वहां के नियम कानून के हिसाब से रहना पड़ता है. जब भी वह भारत आती है या यूं कहें, वहां के दमघोंटू (औरत विरोधी) माहौल से भाग-भाग कर यहां आती है तो उसके जीने-रहने-पहनने-ओढ़ने के मायने बदल जाते है. फर्राटे से कार चलाती हुई, किसी से भी गुर्राकर बात करने वाली, पश्चिमी ड्रेस में लिपटी, गोल्फ खेलने जाती हुई पिंकी रियाद से दिल्ली की फ्लाइट में बैठते ही बुर्के को ऐसे उतार फेंकती है जैसे कोई कैदी अपनी जेल की कैदी नंबर वाली पोशाक से पीछा छुड़ाता है. पति के साथ सऊदी अरब में रहना मजबूरी ना होती तो वह अपनी इस बेखौफ, बेलौस आजादी को कभी ना गंवाती.
पिंकी भारत के उपनगरीय अपार्टमेंट में रहती हैं जहां मध्यवर्गीय लोगों की जमात है. आमतौर पर वहां महिलाएं उतनी आधुनिक नहीं दिखाई देतीं संयमित उदासीन माहौल में पिंकी अपनी आजादी को यहां जी भर कर जीती है- यूं कहं खुलकर. शुरू शुरू में मुझे हैरानी होती थी. औरों को भी अटपटा लगता था.
सऊदी अरब के संकीर्ण मिजाज को समझते थे, उन्हें शीघ्र पता चल गया कि आखिर पिंकी ऐसी क्यों है? एक कैदी अब जेल से बाहर आता है तो आप उसकी मनोदशा सोच सकते हैं. बुर्काविहीन देह, हाथ में स्टेयरिंग, खुला मुहल्ला, अकेली मटरगश्ती, शाम को स्विमिंग....गोल्फ क्लब में पुरुष साथियों के साथ शॉट मारती हुई... एक ऐसी आजाद स्त्री की छवि है जो मैं पिंकी में देखती हूं. जब सऊदी जाने का दिन करीब आता है, उसकी उदासी घनी होती जाती है. बुर्के को इस्त्री करवाकर मंगाती है और बैग के ऊपरी हिस्से में रखती है. अपनी आजादी को उसे इसी काले चोगे के भीतर कैद करना है. और उस देश में पति की उंगली थाम कर उसकी छाया में घूमना है. अपनी आजादी को इतने आक्रामक तरीके से भोगते हुए मैंने किसी मध्यवर्गीय स्त्री को नहीं देखा. पिंकी अब थोड़ी आजादी के साथ वहां जी सकेंगी. शायद ऐसी ही खुशी सऊदी की उन तमाम औरतों के चेहरे पर होगी जो पुरुषों की छाया से मुक्त होकर अपने शहर कस्बे की गलियों में फिरना चाहती है, विदेश जाना चाहती हैं. उनकी मुक्ति-राग मुझे सुनाई दे रहा है.