चीन की चकाचौंध में तिब्बत के गिरवी सपने

Posted By Geetashree On 7:41 AM 9 comments



दो साल पहले मैं चीन और तिब्बत की यात्रा करके लौटी तब से तिब्बत मेरे दिल दिमाग में घूम रहा है। मैंने चीन पर कई लेख लिखे मगर तिब्बत पर लिखने की इजाजत नहीं मिली. सारे अनुभव, सारी भावनाएं धरी रह गईं। अब जब तिब्बत अपनी गुलामी के 50 साल पूरे कर चुका है तब मुझे उनकी पीड़ा याद आई. गुलाम देश के लोग कैसे जीते हैं, उनका जीवन कैसा होता है, वे कैसे जीते हैं वो देखा ल्हासा जाकर. तभी गुलामी भारत की याद आई... अपने पूर्वजो के चेहरे मिलते जुलते से लगे।मैं सिलसिलेवार वहां का अनुभव लिखना चाहती हूं..यही मेरी दुआ है उनकी आजादी के लिए।

तिब्बत और चीन के बीच जब पहले दिन रेल गाड़ी चली तो तिब्बत के युवा गायक उस पर सवार हुए और गाना गाते रहे... रेलगाड़ी से पेइचिंग जा रहे हैं हम, बर्फीली पठार की शुभकामनाएं साथ लेकर... -छिंगहाई तिब्बत का सूर्य लेकर जा रहे हैं हम... श्वांग उत्साह में भूल गए थे कि वह ट्रेन उनके देश को चीन के शिकंजे में और कसने का औजार बनने वाली है। श्वांग अपने देश की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने चीन की जकड़न वाले तिब्बत में आंखें खोली हैं और जिसकी आंखें चीन की चमक में चौंधिया रही हैं।
तिब्बत में चौदहवें दलाई लामा का सिर्फ नाम भर सुनने वाली पीढ़ी की पीड़ा तब गहरा जाती है जब वह अपनी गुलामी की पचासवीं वर्षगांठ का मातम मनाने वालों में शामिल होती है। भारत से आए लोगों के युवा तिब्बती करीब आते हैं। दिल पर हाथ रखते हैं और फुसफुसाते हैं, क्या आपने कभी दलाई लामा को देखा है. ल्हासा स्थित दलाई लामा के पोटाला महल में तेरहवें दलाई लामा तक की चर्चा होती है। मौजूदा दलाई लामा की चर्चा नहीं होती। चर्चा पर प्रतिबंध है।
ल्हासा के बाखोर बाजार की दुकानों में एक दुकानदार दबी जुबान में आरोप लगाता है कि आबादी में चीन के हान मूल के लोगों की संख्या बढ़ रही है। जबकि सरकारी आंकड़े कहते हैं कि यहां तिब्बती अब भी 92 प्रतिशत हैं। यहां हान की आबादी 40 प्रतिशत है और ऊंचे पदों पर चीनी लोग काबिज हैं। सरकारी नौकरी के लिए चीनी भाषा का ज्ञान आवश्यक कर दिया गया है। इसकी वजह से तिब्बती पिछड़ रहे हैं।
तिब्बत भाषा के एकमात्र अखबार तिब्बत डेली में भी महत्वपूर्ण पदों पर चीनी लोग बैठे हैं। तिब्बतियों की नजर में हर चीनी अपनी सरकार का जासूस है और कुछ तिब्बतियों को भी जासूसी के लिए इस्तेमाल कर रही है।

पहले चीन और तिब्बत के बीच आवागमन महंगा और कठिन था। रेल ने रास्ते आसान कर दिये हैं. ल्हासा में चीन ने बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी कर दी हैं। उन पर चीनी भाषा में विशालकाय होर्डिंग्स लगी हैं। यह चकाचौंध नई पीढी को लुभा रही है।
लेकिन यह 'लुभाना' सबके लिए एक समान नहीं है. युवाओं में ऐसे लोगों की संख्या काफी बड़ी है, जो चीन से अलग अपने सपने देखते हैं, सपने कि जिनमें उनका देश आज़ाद हो...... युवा तिब्बतियों को लगने लगा है कि अपनी पहचान और संस्कृति को बचाए रखें तथा विकास को स्वीकारते हुए आजादी की अपनी मांग पर कायम रहें। इसके उलट चीनी सरकार सोचती है कि विकास में जब तिब्बतियों की भागीदारी बढेगी तो स्वतंत्रता की मांग खुद ब खुद ठंडी पड़ जाएगी।