वह पहली बार मुझे दिखा था एक मेले में। मैं लंबे अंतराल के बाद अपने शहर मुजफ्फरपुर गई थी, तो जितनी मैं उत्साहित थी उतनी ही मेरी पुरानी साहित्यिक मित्र मंडली भी। मेरे आने की उनको खबर लगी तो उन्होंने झट से एक कार्यक्रम का न्यौता मुझे थमा दिया। दो साल पुरानी बात है उन दिनों शहर में खादी मेला चल रहा था। मुझे खादी मेले में युवा पीढ़ी और खादी का बाजार विषय पर शाम को बोलना था। भाषण से पहले मुख्य अतिथि के तौर पर मेरी मित्र मंडली ने मुझे खादी मेले में घुमाया। मेरे साथ-साथ कम उम्र के लड़के-लड़कियों की भीड़ ज्यादा थी। यह वो पीढ़ी थी जो शहर में मेरी अनुपस्थिति
में बड़ी हुई थी। उनमें एक दुबला-पतला, सहमा, सकुचाया, सिमटा सा एक लड़का भी मिला।
इन लड़कों के मन में मुझे लेकर खास आकर्षण था। ऐसा मुझे उनसे बातचीत करने के बाद अहसास हुआ और मेरी मित्र मंडली ने मुझे छेड़ते हुए इसकी पुष्टि की। मेले में सांस्कृतिक मेले के आयोजक , कवि संजय पंकज ने उस दुबले-पतले लड़के को मेरे सामने किया और कहा यह हैं पंकज प्रेमाकुल जी, कविताएं लिखते हैं और आपसे मिलना चाहते हैं। मैं नाम सुनकर हंस पड़ी और मैने छूटते ही कहा कविताऐं लिखते हो इसका क्या मतलब है कि नाम के साथ प्रेमाकुल जोड़ लोगे..तुम्हारा असली नाम क्या है..तो उसने झेपते हुए कहा कि पंकज नारायण। मैंने कहा इतना अच्छा तो नाम है यही क्यों नहीं रखते हो। लगभग एक साल बाद दिल्ली में एक फोन आया कि मैं पंकज नारायण बोल रहा हूं। अब तक मैं उसे भूल चुकी थी। उसने कहा कि वही पंकज प्रेमाकुल...मुझे याद आया तो मैंने जोर से ठहाका लगाया उधर से वह भी देर तक हंसता रहा। प्रेमाकुल आजकल दिल्ली में रहते है और साहित्य के साथ-साथ स्वतंत्र पत्रकारिता भी कर रहे हैं। उनका गंवईपन अभी गया नहीं है। वो अब भी अपनों के लिए वैसे ही चिंतित होते है। दिल्ली से मुजफ्फरपुर तक सभी की खबर रखते हैं।
छोटे शहर का अनगढ़ लड़का महानगर में जीने की कला सीख रहा है। उम्मीद है जल्दी ही चालाक हो जाएगा। फिलहाल इस भोले से लड़के ने मुझे अपनी दो कविताएं भिजवाईं हैं। मैं चाहती हूं कि आप भी पढ़ें और अपनी राय दें।
रात नींद और सपने...
रात मुझे सोने नहीं देती,
दिन मुझे जगाकर रखता है,
कुछ लोग कहते हैं
मैं नींद में जागता हूं,
एक आदमी हूं।
बिना शर्त सपने देखता हूं,
हर शर्त पर उसे,
पूरा करना चाहता हूं,
कुछ लोग कहते हैं,
मैं नींद में भागता हुआ,
एक आदमी हूं।
मेरा नीद से पुराना रिश्ता है,
नींद कभी फैल जाती है,
मेरे आकार लेते सपनों पर,
सपने कभी लेट जाते हैं,
मेरी नींद में,
कुछ लोग कहते हैं,
मैं नींद में समाता हुआ,
एक सपना हूं।
पंकज नारायण
में बड़ी हुई थी। उनमें एक दुबला-पतला, सहमा, सकुचाया, सिमटा सा एक लड़का भी मिला।
इन लड़कों के मन में मुझे लेकर खास आकर्षण था। ऐसा मुझे उनसे बातचीत करने के बाद अहसास हुआ और मेरी मित्र मंडली ने मुझे छेड़ते हुए इसकी पुष्टि की। मेले में सांस्कृतिक मेले के आयोजक , कवि संजय पंकज ने उस दुबले-पतले लड़के को मेरे सामने किया और कहा यह हैं पंकज प्रेमाकुल जी, कविताएं लिखते हैं और आपसे मिलना चाहते हैं। मैं नाम सुनकर हंस पड़ी और मैने छूटते ही कहा कविताऐं लिखते हो इसका क्या मतलब है कि नाम के साथ प्रेमाकुल जोड़ लोगे..तुम्हारा असली नाम क्या है..तो उसने झेपते हुए कहा कि पंकज नारायण। मैंने कहा इतना अच्छा तो नाम है यही क्यों नहीं रखते हो। लगभग एक साल बाद दिल्ली में एक फोन आया कि मैं पंकज नारायण बोल रहा हूं। अब तक मैं उसे भूल चुकी थी। उसने कहा कि वही पंकज प्रेमाकुल...मुझे याद आया तो मैंने जोर से ठहाका लगाया उधर से वह भी देर तक हंसता रहा। प्रेमाकुल आजकल दिल्ली में रहते है और साहित्य के साथ-साथ स्वतंत्र पत्रकारिता भी कर रहे हैं। उनका गंवईपन अभी गया नहीं है। वो अब भी अपनों के लिए वैसे ही चिंतित होते है। दिल्ली से मुजफ्फरपुर तक सभी की खबर रखते हैं।
छोटे शहर का अनगढ़ लड़का महानगर में जीने की कला सीख रहा है। उम्मीद है जल्दी ही चालाक हो जाएगा। फिलहाल इस भोले से लड़के ने मुझे अपनी दो कविताएं भिजवाईं हैं। मैं चाहती हूं कि आप भी पढ़ें और अपनी राय दें।
रात नींद और सपने...
रात मुझे सोने नहीं देती,
दिन मुझे जगाकर रखता है,
कुछ लोग कहते हैं
मैं नींद में जागता हूं,
एक आदमी हूं।
बिना शर्त सपने देखता हूं,
हर शर्त पर उसे,
पूरा करना चाहता हूं,
कुछ लोग कहते हैं,
मैं नींद में भागता हुआ,
एक आदमी हूं।
मेरा नीद से पुराना रिश्ता है,
नींद कभी फैल जाती है,
मेरे आकार लेते सपनों पर,
सपने कभी लेट जाते हैं,
मेरी नींद में,
कुछ लोग कहते हैं,
मैं नींद में समाता हुआ,
एक सपना हूं।
पंकज नारायण