दो दिन पहले शाम को अचानक कानपुर से गिरिराज किशोर जी का फोन आया। वे विभूतिनारायण के साक्षात्कार पर बेहद कुपित थे. जैसे पूरा महिला समाज है. उन्होंने कहा कि वे प्रधानमंत्री को पत्र लिखने जा रहे है. वे चाहते कि महिला लेखिकाओं को छीनाल का दर्जा देने वाले विभूति के खिलाफ सभी एकजुट होकर विऱोध करें। वो हो भी रहा है.,,,लोग अपने अपने स्तरो पर कर रहे हैं. दो दिन से अखबारो में ये मामला खूब उछल रहा है। उन्होंने पत्र की वो कापी हमें मेल कर दी है। हम ज्यो त्यो यहां लगा रहे हैं। साथ में वरिष्ठ कहानीकार प्रियंवद का भी हस्ताक्षर है...पढिए...
मामला काफी तूल पकड़ चुका है. मैंने कुलपति महोदय से भी बात की। कल तक वे अपने बयान के बचाव में टिक कर खड़े थे...आज उन्होंने अलग एंगल दे दिया. आज वे कतरा गए। वह कहते हैं कि मैंने इंटरव्यू में छीनाल शब्द बोला ही नहीं है. मैंने सिर्फ बेवफाई शब्द बार बार बोला है। ये शब्द वहां कहां से आया, मुझे नहीं मालूम। कुलपति महोदय को नया ज्ञानपीठ के संपादक रवींद्र कालिया का इंतजार है. उनके दिल्ली लौटने पर वे बात करेंगे कि कैसे और कहां से ये शब्द इंटरव्यू में घुसा। विभूति आशंका जताते हैं कि मैगजीन के डेस्क पर ये शरारत हुई है। मजे की बात ये कि इस विवादास्पद इंटरव्यू का कोई रिकार्ड किसी के पास मौजूद नहीं है। ना लेने वाले के पास ना देने वाले के पास.अब ये दोनो ही जानते होंगे कि सच कौन बोल रहा है. रवींद्र कालिया खलनायक हैं या विभूति...दोनो जल्दी फैसला करले और जनता के बता दें, तो अच्छा होगा. दोष तो तय करना ही होगा। बात अब तक इतनी बिगड़ चुकी है कि विभूति की पत्नी और ममता कालिया तक पर छीनाल के छींटे पड़ रहे हैं। ये ठीक नहीं..हम प्रतिशोध में वही गल्तियां दुहरा रहे हैं..जो मर्दवादी मानसिकता वाले लोग कर रहे हैं. ये लड़ाई अब सीधे सीधे कहीं स्त्री-पुरुष के बीच की लड़ाई ना बन जाए. लेकिन जिस तरह से इस लड़ाई को स्त्रियां कम और पुरुष ज्यादा लड़ रहे हैं वो काबिले तारीफ है. मगर कुछ कुंठित लोग भी हैं जिनकी तड़पती आत्मा को चैन मिला होगा इस बयान से. विभूति उन्हें मौका दिया कि वे अपनी कुंठा शांत कर सके।