
किस कदर उलझे रहते हैं वे
एक-दूसरे में,
किस कदर तेज चलती हैं उनकी सांसें
किस कदर बेफिक्र हैं वे दुनिया के हर खौफ से
किस कदर बेफिक्र हैं वे दुनिया के हर खौफ से
कि दुनिया को उनसे ही लगने लगा है डर,
कि उन पर ही लगी हैं सबकी निगाहें
कि उन पर ही लगी हैं सबकी निगाहें
वे कोई आतंकवादी नहीं,
न ही सभ्यताओं के हैं दुश्मन
न ही उनके दिमाग में है कोई षडयंत्र
फिर भी दुनिया को लग रहा उनसे डर.
पंचायतों की हिल गई हैं चूलें
पंचायतों की हिल गई हैं चूलें
पसीने आ रहे हैं समाज के मसीहाओं के
कैसे रोकें वे उन दोनों को
कैसे उलझायें उन्हें दूसरे कामों में
कि उनकी दिशायें ही बदल जायें
कौन से जारी किये जाएं फरमान
कौन से जारी किये जाएं फरमान
कि खत्म हो सके उनका प्रेम
कितने खतरनाक हैं
वे इस दुनिया के लिए, सचमुच?
प्रतिभा कटियार
