वह काले-चमकीले रंगत और मिचमिची आंखों वाला बच्चा था। उसके होश उड़े हुए थे। एजेंट ने लगभग उसे दबोच रखा था। मैडम जी..देखिए, ऐसे लड़के मिलेंगे सेवा के लिए। जब तक आप चाहे पास रखें। काम की गारंटी मैं लेता हूं, हर तरह का काम करेगा, अभी नया है...आप सिखा देना....चबा चबा कर अंग्रेजी बोलता हुआ मल्लू एजेंट दांत निपोर रहा रहा था।
मैंने गौर से देखा..उसकी उम्र कोई 13 साल की रही होगी। देह पर पुराने कपड़े, नंगे पांव, एकटक मुझे घूरे जा रहा था। मैने पूछा, कोई अनुभवी नहीं मिलेगा। मैडम ..खाली नहीं हैं बच्चे। सीजन पीक पर है..सब काम पर लगे हुए हैं...उसने विवशता जताई।
त्रिवेंद्रम के सबसे सनसनीखेज कोवलम तट पर मैं स्टोरी के लिए लोकल लोगो के साथ घूम रही थी। मैं पिछले दिनों केरल गई थी तंबाकू पर स्टोरी के लिए, वहां हमारे होस्ट ने केरल के बारे में कुछ चौंकाने वाली बातें बताई और कहा आप खुद वहां जाकर, खरीदार बनकर मामले की तह तक जाओ। मलयालमभाषी राजू मेरे साथ सहयोग के लिए तैयार हो गए।
मैंने अपने लिए कोवलम बीच पर एक कमरे का अर्पाटमेंट और एक सेवक की तलाश करने लगी। राजू मेरे भारतीय एजेंट के रुप में मेरे लिए सौदा पटा रहे थे। तट पर ही स्थित एक ट्रेवेल एजेंट मुझे गैरभारतीय समझ कर खुल गया और हाथ के हाथ सौदा पट गया। आधे घंटे के अंदर मनचाहे लोकेशन पर सारी सुविधाओं से लैस अर्पाटमेंट भी दिखाया और सेवक भी पकड़ लाया। सेवक के लिए 20,000 रुपये महीना तय हुआ और अर्पाटमेंट भी लगभग उसी मूल्य पर वो भी नगद एडवांस। मुझे मामले की तह तक जाना था सो गहरे गई। मेरे एजेंट बने राजू ने कहा ट्रेवेल एजेंट को भरोसा दिया कि हम अभी एटीएम से पैसे निकाल कर आते हैं...और हम वहां से किसी दूसरे ट्रेवेल एजेंट के पास फिर ऐसा ही सौदा पटाने चल पड़े।
राजू एक स्वंयसेवी संगठन में काम करते हैं। उस दिन त्रिवेंद्रम से मेरे साथ हालात का जायजा लेकर घर लौटे। एक बार बदहवास से राजू ने घर में घुसते ही अपनी बीबी को पहला वाक्य बोला, बी केयरफुल्ल....अपने दोनों बेटों को कभी किसी अजनबी के साथ ना घुलने-मिलने देना ना ही कहीं बाहर भेजना। राजू का परिवार तब से बहुत चिंतित हैं। अपने दो किशोर होते बेटो की चिंता उन्हेंसता रही है। उन्हें लगता है उनके बेटो की अस्मत सुरक्षित नहीं है। आमतौर पर घरों में लड़कियों को लेकर चिंताएं देखी गई हैं। यहां उल्टा माजरा दिखाई देता है। राजू स्पष्ट कहते हैं, ईश्वर के अपने देश में केरल में लड़कियां सुरक्षित हैं लड़के नहीं। वजह स्पष्ट है, गोवा के बाद त्रिवेंद्रम का कोवलम बीच सेक्स टूरिज्म का दूसरा सबसे बड़ा गढ बन गया है।जब चार्टर्ड विमानों से पर्यटकों के आने का सिलसिला शुरु हुआ तो कोवलम बीच पर पर्यटन का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। इस तरह के पर्यटकों का खुले बाजार से कोई वास्ता नहीं था। इनके लिए पहले से ही होटल के कमरे और घूमने के लिए टैक्सियां बुक होती थी। ऐसे में सिर्फ बड़े-बड़े होटलों को ही भारी मुनाफा हो रहा था। पर्यटक आमतौर पर होटल में ही रहते थे और उनके लिए आवश्यक सेवाएं एवं सुविधाएं होटल में ही उपलब्ध करा दी जाती थी।
इस तरह के पर्यटकों से कोवलम बीच में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े आम स्थानीय लोगों की कमाई में भारी कमी आई और उन्होंने इसकी भरपाई के लिए गैर कानूनी तरीक अपनाने शुरु कर दिए। इसका परिणाम यह निकला कि कोवलम बीच पर शराब, मादक पदार्थ और सेक्स का धंधा शुरु हुआ। कोवलम बीच के आसपास रहने वाले लोग अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए इस गैर कानूनी धंधे का संचालन करने लगे। शुरुआती दौर में इस धंधे से सिर्फ पुरुष जुड़े लेकिन समय बीतने के साथ महिलाएं भी इसमें लिप्त हुईं। इससे माहौल ऐसा बना कि जो लोग पर्यटन के धंधे से जुड़े नहीं थे, वे भी पर्यटकों को सेक्स सेवाएं उपलब्ध कराने वाले लोगों को सहानुभूति की नजर से देखने लगे। कोवलम बीच पर दलाली का काम करने वाले राममूर्ति के अनुसार कम उम्र के ऐसे दर्जनों लड़के हैं जो बड़ी उम्र के पुरुष पर्यटकों के साथ सेक्स करते हैं। यह सही काम नहीं है लेकिन ये लड़के चूंकि गरीब हैं इसलिए वे मजबूरी में ऐसा काम करते हैं और किसी को इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। कोवलम बीच पर मुख्य रूप से छोटी उम्र के लड़के ही पर्यटकों को उपलब्ध कराते हैं।
पूरी दुनिया में छोटी उम्र के लड़कों के साथ सेक्स करने वाले पर्यटकों का बाजार लगातार बढ़ रहा है। विकसित देशों में चूंकि इस पर प्रतिबंध लगाने और इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नए-नए कानून बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं इसलिए ऐसे पर्यटक मौज-मस्ती का सिलसिला जारी रखने के लिए नए-नए पर्यटन स्थलों की तलाश करते हैं। इस तलाश का एक परिणाम कोवलम बीच भी है। छोटे बच्चों के साथ मौज-मस्ती करने के लिए कोवलम बीच पर सैकड़ों देशी-विदेशी पुरुष पर्यटक नियमित रूप से आते हैं। ऐसे कई विदेशी पर्यटक तो कोवलम बीच के आसपास बस गए हैं और उन्होंने घर तक खरीद लिया है। इन घरों में वे छोटी उम्र के बच्चों के साथ रहते हैं। चूंकि विदेशी अकेले यहां घर नहीं खरीद सकते, इसलिए उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ साझेदारी में घर खरीदे हैं। पूरा पैसा विदेशी ही देते हैं। इस तरह का सौदा स्थानीय लड़कों और उनके परिवारों के लिए अक्सर फायदेमंद साबित होता है। परिवार के सदस्य या मध्यस्थ ही कम उम्र के लड़कों को इस तरह का सौदा करने के लिए उपलब्ध कराते हैं। सौदा होने पर इससे जुड़े कई लोगों को मोटा कमीशन मिलता है। इसके अलावा बेहद गरीब परिवार के लड़के कम उम्र में ही सड़कछाप हो जाते हैं। वे अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए हर तरह का काम करने को तैयार रहते हैं। इनमें से कुछ संबंध लंबा नहीं चलता है। लेकिन अधिकतर संबंध काफी लंबे समय तक चलता है। क्योंकि कम उम्र के बच्चों के साथ मौज-मस्ती करने वाले पर्यटक घर खरीदने के लिए मोटी रकम खर्च करते हैं और जिसके और जिसके साथ मौज-मस्ती करते हैं उसके पढऩे का खर्च उपलब्ध कराते हैं।
पुलिस और स्थानीय लोगों को भी यह मालूम है कि सैकड़ों पर्यटक छोटी उम्र के लड़कों के साथ मौज-मस्ती के लिए कोवलम बीच आते हैँ लेकिन यहां के गरीब लोगों को इससे इतनी अधिक आर्थिक मदद मिलती है कि वे भी इस तरह की गतिविधियों से अपनी आंखें फेर लेते हैं। कोवलम बीच पर तैनात एक पुलिसकर्मी के अनुसार, 'यहां सेक्स का धंधा होता है। इस धंधे से अधिकतर छोटी उम्र के लड़के जुड़े हैं। इस धंधे में महिलाएं भी लिप्त हैं। कहा जाता है कि तिरुवनंतपुरम के आसपास के पर्यटन स्थलों के अलावा अन्य जगहों पर पहले से ही सेक्स का व्यावसायिक कारोबार फल-फूल रहा था और इसी वजह से देशी-विदेशी पर्यटकों ने कोवलम बीच को अपनी मौज-मस्ती का अड्डा बनाया। कई मामलों में कम उम्र के लड़कों के साथ सेक्स करने वाले देशी-विदेशी पर्यटक अपनी निगरानी में लड़कों के समूह रखते हैं जिन्हें यहां 'स्टेबलÓ (घुड़साल) के नाम से जाना जाता है। ये पर्यटक अपने समूह के लड़कों को जोश दिलाने और अपने ऊपर निर्भरता बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में शराब पिलाते हैं और मादक पदार्थों का सेवन करवाते हैं।अक्सर यह होता है कि ये लड़के जब बड़े होते हैं तो इनका आकर्षण कम हो जाता है और उन्हें समूह से निकाल दिया जाता है। इन लड़कों को समूह से बाहर निकलने के बाद गुजर-बसर अपने बूते पर करना पड़ता है। इस समय तक उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो चुकी होती है। उन्हें शराब और मादक पदार्थों की लत लगी होती है। इसलिए उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिलती। ऐसे में जिंदा रहने के लिए उनके पास गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में उन्हें बीच 'बीच ब्यायजÓ बनकर पर्यटकों को सेक्स सेवाएं उपलब्ध कराने वाला दलाल बनना पड़ता है या फिर छोटी उम्र के लड़कों को पर्यटकों के समक्ष मौज-मस्ती के लिए परोसना पड़ता है।कोवलम बीच पर 'होमोसेक्सुएलÓ टूरिज्म के रूप में एक नई सेक्स गतिविधि सामने आई है। स्थानीय लोग पुरुषों के बीच सेक्स संबंधों को स्वीकार नहीं करते और 'गे कल्चरÓ को बुरी निगाह से देखते हैं। तिरुवनंतपुरम में रहने वाले जी.एस.पी. रामास्वामी के अनुसार 'गे कल्चरÓ पर्यटन से पैदा हुआ है। पहले यहां ऐसा नहीं होता था। लेकिन किसी भी सेवा के लिए मोटा पैसा मिलने की वजह से सेक्स टूरिज्म के नए-नए और घिनौने रूप सामने आ रहे हैं।कोवलम बीच पर तैनात एक पुलिसकर्मी ने भी बताया कि यहां 'गे सेक्सÓ की ज्यादा मांग है। पश्चिमी देशों के लोग यहां आते हैं और लड़कों के लिए खूब पैसा खर्च करते हैं। पहले यहां यह सब नहीं होता था लेकिन अब आप जहां भी नजर दौड़ाएंगे यही सब हो रहा है। पर्यटक यहां सिर्फ छोटी उम्र के बच्चों के साथ मौज-मस्ती के लिए आते हैं।पश्चिमी देशों के बूढ़े पर्यटकों के साथ कम उम्र के भारतीय लड़के, यह एक बहुत बड़ा सेक्स बाजार बन गया है। ये पर्यटक मौज-मस्ती के लिए साल में कई बार कोवलम बीच का चक्कर लगाते हैं। इस तरह के पर्यटक 16 साल या इससे भी कम उम्र के लड़कों की तलाश में रहते हैं, वे घर किराए पर लेते हैं, लड़कों को नौकरी देते हैं और उनके साथ सेक्स करते हैं। यह बहुत गंदा काम है लेकिन पैसे के लिए सब कुछ चलता है।दर्जनों बीच ब्वॉयज पुरुषों और महिलाओं दोनों के साथ सेक्स संबंध रखते हैं। उन्हें इस काम के लिए पैसा, तोहफा, लजीज खाना, शराब, मादक पदार्थ मिलता है। इस तरह के लड़के विदेशी पर्यटकों को खुश कर पश्चिमी देशों का वीजा प्राप्त करने के चक्कर में रहते हैं। ऐसे हालात में यह हैरानी की बात नहीं है कि ये लड़के अधिक से अधिक पैसा कमाने और फायदा उठाने के लिए जरूरत के हिसाब से अपने सेक्स का इस्तेमाल करते हैं।
आउटलुक (हिंदी), दिसंबर अंक में प्रकाशित
December 14, 2009 at 2:55 AM
जीवन का विकृत स्वरूप।
------------------
ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
December 14, 2009 at 4:05 AM
ये सच्चाई है
December 14, 2009 at 6:02 AM
साल भर पहले इंडिया टुडे में भी यह बात उजागर हुई थी.. यहाँ दिल्ली के पोश इलाकों में भी यह चलता है... पर साऊथ में ज्यादा है...
December 14, 2009 at 6:39 AM
क्या कहां नहीं होता
कहीं कहीं का होता है
सब कहीं का बयां नहीं होता
December 14, 2009 at 6:40 AM
हद है... अब देखना है कि आपकी स्टोरी के बाद प्रशासन क्या कदम उठाता है ?
December 14, 2009 at 7:01 AM
गीता जी आपकी सनसनीखेज पड़ताल पढ़कर तो रोंगटे खड़े हों गए . वास्तव में इंसान की विकृतियों का अंत नही है ..अपने सुख के लिए वो जानवर से भी बदतर दिखाई दे रहा है .
December 16, 2009 at 2:45 AM
ऐसी विकृति मानव समाज में ही है. ऐसी विकृति न तो पशुओ में है और न ही प्रकृति के किसी अन्य जगह ही देखने को मिलता है. बच्चो के साथ ऐसा घिनौना कृत्या करने वाले ही समाज के ठेकेदार बने हुय है. इनका विरोध किया जाना चाहिए. पर्यटन स्थलों की पोल खोलती है आप की स्टोरी.
धन्यवाद !
December 24, 2009 at 11:07 PM
स्थिति चिंताजनक तो है ही। समाज के हर हिस्से में इतनी तेजी से बदलाव हो रहा है कि संभलना मुश्किल होता जा रहा है।
December 25, 2009 at 3:04 AM
यहाँ जो कुछ भी होजाए कम है.
रत्नेश विधौलिया
December 29, 2009 at 7:14 AM
kya kahe....kuch kahte nahi banta..itna jarror kah sakte hai..ki napunsak sarkar. aur garibi ke nam par ye ghinauna dhnada...logo ne khud kiya hua hai...
Post a Comment