गोवा ही करता रहेगा मेजबानी
अभिनेत्री नंदिता दास ने उबाल खाकर बयान दिया कि एक ना एक दिन अपना फिल्म समारोह विश्वस्तर का जरुर हो जाएगा। काफी हद तक सचाई बयान कर गईं। जिस तरह से फिल्म समारोह निदेशालय और गोवा इंटरटेनमेंट सोसाइटी के बीच तालमेल हुआ वो एक अच्छे भविष्य की उम्मीद जताता है। पिछले साल तक दोनों के बीच टसल चलता रहा और श्रेय लेने की जो एक दूसरे से होड़ चलती रही उससे समारोह की गुणवत्ता पर फर्क पड़ता नजर आया था। इस बार लगता है दोनों में बेहतर समझदारी पैदा हुई है. गोवा में फिल्म प्रेमियों के लिए तमाम मुश्किलों के बाबजूद समारोह यहां बना रहेगा। फिलहाल केंदेर सरकार गोवा को ही स्थाई वेन्यु मान रही है. जब समारोह को गोवा लाने का फैसला किया गया था तब केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार थी। निदेशालय को इस बात का अहसास है कि गोवा की वजह से नेशनल मीडिया दूर हो गया है। इस शहर में विश्व स्तरीय सुविधाओं की कमी है, खर्चीला है। निदेशालय के एक सूत्र ने बताया कि फिलहाल गोवा पर कोई पुर्नविचार संभव नहीं है.जगह बदलना जरुरी होते हुए भी कोई सरकार एक अलोकप्रिय फैसला नहीं लेना चाहती। हालांकि कैबिनेट जब चाहे जगह बदलने का फैसला ले सकती है। लेकिन अब बात सरकार के हाथ से निकल चुकी है क्योंकि कई साल हो गए और दुनिया भर में कांस की तरह गोवा की छवि भी बनती जा रही है।
अभिनेत्री नंदिता दास ने उबाल खाकर बयान दिया कि एक ना एक दिन अपना फिल्म समारोह विश्वस्तर का जरुर हो जाएगा। काफी हद तक सचाई बयान कर गईं। जिस तरह से फिल्म समारोह निदेशालय और गोवा इंटरटेनमेंट सोसाइटी के बीच तालमेल हुआ वो एक अच्छे भविष्य की उम्मीद जताता है। पिछले साल तक दोनों के बीच टसल चलता रहा और श्रेय लेने की जो एक दूसरे से होड़ चलती रही उससे समारोह की गुणवत्ता पर फर्क पड़ता नजर आया था। इस बार लगता है दोनों में बेहतर समझदारी पैदा हुई है. गोवा में फिल्म प्रेमियों के लिए तमाम मुश्किलों के बाबजूद समारोह यहां बना रहेगा। फिलहाल केंदेर सरकार गोवा को ही स्थाई वेन्यु मान रही है. जब समारोह को गोवा लाने का फैसला किया गया था तब केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार थी। निदेशालय को इस बात का अहसास है कि गोवा की वजह से नेशनल मीडिया दूर हो गया है। इस शहर में विश्व स्तरीय सुविधाओं की कमी है, खर्चीला है। निदेशालय के एक सूत्र ने बताया कि फिलहाल गोवा पर कोई पुर्नविचार संभव नहीं है.जगह बदलना जरुरी होते हुए भी कोई सरकार एक अलोकप्रिय फैसला नहीं लेना चाहती। हालांकि कैबिनेट जब चाहे जगह बदलने का फैसला ले सकती है। लेकिन अब बात सरकार के हाथ से निकल चुकी है क्योंकि कई साल हो गए और दुनिया भर में कांस की तरह गोवा की छवि भी बनती जा रही है।
लेकिन गोवन नाराज हैं। उन्हें अपनी संस्कृति खतरे में पड़ी नजर आ रही है। वे मानते हैं कि लोकल लोगो की जानबूझ कर उपेक्षा की जा रही है क्योंकि ये दिल्ली-तमाशा है। जेरी फर्नांडिस ने तो लोकल अखबार में पत्र लिख कर गोवन लोगो की तरफ से गुस्सा जता दिया है। हालांकि इस साल लोकल लोगो ने जमकर फिल्में देखीं। हर बार उन्हें पास बनवाने में दिक्कत होती थी। इस बार सहूलियत थी। समारोह के बीच भी पास बनावने की सुविधा थी। टेनशन लेने का नहीं देने का...नारा देने वाले गोवन लोग इस बार इफ्फी को लेकर टेनशन में दिखें।
पंजिम के रहने वाले जेरी फर्नांडिज का गुस्सा फूटा कि गोवन लोग संगीत प्रेमी हैं फिल्म प्रेमी नहीं। उन्हें दुनिया भर के संगीत की समझ है, फिल्म की नहीं। उन पर फिल्म सामरोह क्यों थोपा जा रहा है। उन्हें लगता है कि समारोह में सिर्फ आर्ट फिल्में ही आती हैं।
जेरी पूछते हैं-फिल्म समारोह से गोवा को क्या लाभ। इससे हमारी संस्कृति खतरें में पड़ जाएगी। अगर से ही आयोजित होता रहा तो हम लोकल लोग अपना सपोर्ट बंद कर देंगे। उनका गुस्सा इस बात पर भी है कि गोवा के मशहूर गायको, रेमो, हेमा सरदेसाई, आलीवर सीन को ना उदघाटन में ना समापन समारोह में बुलाया जाता है। उनकी जानबूझ कर उपेक्षा की जाती है। गोवा के लोगो का ताजा गुस्सा इस बात पर भी है कि कोंकणी फिल्मकार को रेड कारपेट वेलकम का आफर देर से मिला जब उनकी फिल्म को देश से बाहर सम्मान मिला। फिल्मकार ने वेलकम लेने ले इनकार कर दिया। अखबारो में यह खबर प्रमुखता से छपी।
गोवा को खतरा अपनों से नहीं, ड्रग माफिया से होना चाहिए...टूरिज्म से होना चाहिए जो अपने साथ ढेर सारी बुराईया लेकर इलाके में अड्डे जमा चुकी है। जिन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त है। इस पर बात फिर कभी...फिलहाल समारोह समाप्त...लहरें उसी गति से उठ गिर रही हैं...
December 3, 2009 at 10:27 AM
गोवा को नशा मुक्त होने और वहां के बाशिंदों को आपने जिन मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करने की सलाह दी है वह वाकई महत्वपूर्ण है ....फिल्म समारोह का वहां मनाया जाना वहां की संस्कृति को समृद्ध ही करेगा .
Post a Comment