सम्मान से बड़ा नहीं कोई मुआवजा

Posted By Geetashree On 11:13 PM

ये क्या कह रहा है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग। क्या एक स्त्री की बेइज्जती करने के बाद, उसका रेप करने के बाद, उसका फर्जी एमएमएस और नकली ब्लू फिल्म बनाने और जारी करने के बाद जो उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ होता है उसकी भरपाई चंद रुपये पैसे से की जा सकती है। वो क्या करेगी इन रुपयों का..क्या अपनी गई इज्जत को दुबारा बहाल कर पाएगी। ये पैसा उसके दामन पर लगे दाग को धो पाएगा। वह पहले की तरह अपने घरवालों, समाज में पहले की तरह सिर उठा कर जी पाएगी। नहीं, कभी नहीं। जीवन भर संताप उसका पीछा नहीं छोड़ता।
हाल ही में आयोग ने मिस जम्मू रहीं अनारा गुप्ता की इज्जत से खिलवाड़ करने वाली जम्मू पुलिस से अनारा को मुआवजा देने की मांग की है। यहां बता दें कि जम्मू पुलिस ने अनारा को वेश्या और अश्लील सीडी की कारोबारी और ना जाने क्या क्या घोषित कर रखा था। अब आयोग की रिपोर्ट के बाद उसके सारे आरोप धराशायी हो गए। हैदराबाद की फोरेंसिक लैब ने अपनी रिपोर्ट ने सारे आरोपो को धो दिया है। पुलिस सीडी में जिस लड़की को अनारा बता रही थी वह कोई और निकली। एक महिला की इज्जत के साथ खिलवाड़ पर आयोग ने नाराजगी जताई है और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह अनारा को बेवजह बेइज्जत करने और झूठे केसों में फंसाने पर पर्याप्त मुआवजा दे। पुलिस ने 2004 में अनारा के खिलाफ अनैतिक व्यापार रोकथाम एक्ट, आईटी एक्ट तथा सिनेमाटोग्राफी एक्ट के तहत केस दर्ज किए थे। इसकी जांच के लिए ईमानदार पुलिस अधिकारियों को लेकर बनी एक उच्च स्तरीय टीम की रिपोर्ट के बाद आयोग ने साफ कह दिया कि अनारा को फंसाया गय़ा था।
एक घटना और...हाल ही में यूपी में बलात्कार की एसी घटना हुई जिसने देश की राजनीति के प्याले में तुफान उठा दिया। इलाहाबाद के पास एक गांव की लड़की का बलात्कार होता है और पुलिस अधिकारी मुआवजा देने गांव पहुंचते हैं। पीड़िता के पति को 25000 रुपये का चेक गांव वालों के सामने थमाया जाता है। यह माया सरकार की तरफ दिया जाने वाला मुआवजा है। बलात्कार के बदले रुपये। सरकार का उदारवादी रवैया,,,एक तो इज्जत गई दूसरे उसके पति को सबके सामने चेक देकर रही सही कसर भी पूरी कर दी गई। क्या बीती होगी इस परिवार के दिल पर..क्या रुपया पैसा..मुआवजा किसी स्त्री की इज्जत की बराबरी कर सकता है। क्या इस लड़की का सम्मान वापस आ सकता है इस पैसे से। बलात्कार से एक लड़की की आत्मा घायल होती है...एक लड़की पूरी जवानी इसी भय में गुजारती है...पता नहीं, कब,,कहां..किस मोड़ पर..। जीवन भर यह भय उसकी आत्मा से चिपका रहता है।
कितना बड़ी हो रकम, मुआवजे क्या आत्मा पर लगे घाव का दाग धो पाएंगे।
रीता बहुगुणा ने जो बयान दिया वह भी गलत है। लेकिन गलत बयान देकर वह एक सही बात कह गईं। उन्होंने एक बात तो सही कही कि बलात्कार की कीमत, मुआवजा से नहीं चुकाया जा सकता। बस उन्होंने प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री का नाम गलत ले लिया। यहां भी मुआवजा शब्द का इस्तेमाल कर बैठी...नहीं करना था। बस अपनी बात कहनी थी, बलात्कार के बदले मुआवजे का प्रतिकार करना था, इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी थी ना कि दूसरी औरत को बेइज्जत करना था।
हालांकि जनवरी 2007 में मायावती भी कुछ इसी तरह का बयान दे चुकी हैं। एक पीड़िता को बलात्कार के बाद मुआवजा देने पहुंची थीं उस वक्त वह भी जहर उगल आई थीं। इसकी क्लिपिंग सभी चैनलों के पास है और जो इन दिनों खूब दिखाई गई। तब मुलायम सिंह यादव के रिश्तेदारी की लड़कियों के बारे में एसी अभद्र टिप्पणी मायावती ने की थी। राजनीति में एसे बयानों का सिलसिला बड़ा पुराना है, हम इसकी पड़ताल में नहीं पड़ेंगे। राजनीति में इस आकंठ डूबी महिलाएं पुरुषों की भाषा बोलने लगती हैं।

एक घटना और..दिल्ली के करीब दादरी क्षेत्र में एक महिला का कुछ गुंडों ने नहाते वक्त एमएमएस बना लिया। मामला थाना तक पहुंचा, तो पुलिस का रवैया देखिए..दोषियों को कोई सजा देने या दंडित करने के बजाए महिला को 200 रुपये मुआवजे के तौर पर देने की बात कर दी। पुलिस को यह बहुत छोटी बात लगी, इसीलिए रिपोर्ट भी दर्ज तक नहीं की। महिला ने जब दबंगों का विरोध किया था तब उसके साथ छेड़छाड़ भी की गई थी। क्रूर पुलिस के लिए एक गरीब घर की स्त्री के मान सम्मान का कोई अर्थ नहीं। उसकी कीमत लगाई 200 रुपये। ये सोचा होगा कि 200 रुपये से मुंह बंद किया जा सकता है। स्त्री चाहे गरीब परिवार से हो या अमीर...सम्मान सबका एक सा होता है।
अब मुआवजे की बात छोड़िए...और दोषियों को कड़ा दंड देने के बारे में सोचिए। मुआवजे से किसी स्त्री का खोया सम्मान, उसकी खोई मुस्कान, वापस नहीं लाई जा सकती।
बकबकिया
July 21, 2009 at 1:55 AM

संजय कुमार मिश्र
आपका कहना सही है कि मुआवजे से खोया हुआ सम्मान नहीं दिलाया जा सकता लेकिन और किया ही क्या जा सकता है। मुकदमा दर्ज ही है बिना दर्ज हुए तो मुआवजा भी नहीं मिलना है। अब तो जो कुछ भी करना है कानून को ही करना है। ऐसी स्थिति में मुआवजा थोडा मरहम का काम तो करता ही है। यह बात भी सही है कि मुआवजा देने की प्रक्रिया गंदी है जो बलात्कार से होने वाली क्षति के बराबर ही है। इसलिए इसमें तो कुछ सुधार की जरूरत हैं।

संदीप
July 21, 2009 at 2:01 AM

अरे आप क्‍या बात कर रही हैं। ठीक तो है, हत्‍या करो, बलात्‍कार करो, दंगे करो, जलाओ, बम फोड़ो मतलब कुछ भी करो सरकार-प्रशासन तो अपना काम तन्‍मयता और जिम्‍मेदारी से कर ही रहे है, मुआवजा देकर। अब भई या तो सम्‍मान मिल सकता है या मुआवजा। यह क्‍या कम है कि सरकार मुआवजा दे रही है। मुआवजा वैसे भी मुंह बंद करने की एवज (मुआवजा) में दिया जाता है।

निर्मला कपिला
July 21, 2009 at 2:48 AM

बिलकुल सही कहा आपने बहुत बडिया आभार्

बकबकिया
July 21, 2009 at 2:54 AM

संजय कुमार मिश्र
आपका कहना सही है कि मुआवजे से खोया हुआ सम्मान नहीं दिलाया जा सकता लेकिन और किया ही क्या जा सकता है। मुकदमा दर्ज ही है बिना दर्ज हुए तो मुआवजा भी नहीं मिलना है। अब तो जो कुछ भी करना है कानून को ही करना है। ऐसी स्थिति में मुआवजा थोडा मरहम का काम तो करता ही है। यह बात भी सही है कि मुआवजा देने की प्रक्रिया गंदी है जो बलात्कार से होने वाली क्षति के बराबर ही है। इसलिए इसमें तो कुछ सुधार की जरूरत हैं।

सुशीला पुरी
July 21, 2009 at 5:48 AM

कितना अपमान जनक है ........बलात्कार के एवज में मुवावजा .....माया का मुवावजा .....,ये तो सच है की राजनीत में आकर
महिलाएं मर्दवादी- जुबान बोलने लगती हैं .....इसलिए ही शायद ये मुहावरा नही बदल पाया की महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन
होती हैं .

UNBEATABLE
July 21, 2009 at 6:10 AM

Geetashree ji aapne mahilaaon ke samman ko thes pahuchaane waalen doshiyon ko kadi saja ki baat ki ...... Mei Purn roop se sahmat hoon ... Lekin mei us se bhi pehle ki baat karnaa chaahoonga ... Sarkaar aur Samaaj mil kar aisee Kade kadam uthaane ki kyon nahi sochati jis'se aisaa karne waale hatotsaahit ho ... Samaaj mei ek swasth mahaul bane aur mahilaaon ke prati samman bade .... aur is shetra mei sabhi nagrik apnee jimmedaari ka ehsaas kare.

बकबकिया
July 23, 2009 at 2:50 AM

संजय कुमार मिश्र
गीताश्री जी, आप मुझे अभी तक नहीं पहचान पाईं हैं। मैं इलाहाबाद में हूं और मेरी आपसे मुलाकात इलाहाबाद में ही हुई थी। अब तो दिमाग पर जोर डालिए, शायद कुछ याद आ जाए। अगर याद न आया तो मैं तो बताउंगा ही कि मैं कौन हूं।

प्रज्ञा पांडेय
July 23, 2009 at 7:56 PM

बलात्कार के बदले पैसे देकर स्त्री का जो अपमान है वह बेहद तकलीफ देह है .उस से भी बढ़कर महिला होकर भी मुख्य मंत्री इस अपमान और वेदना नहीं जानतीं यह विडम्बना नहीं तो और क्या है .