वो कहते हैं ना कि शादी लाइसेंस प्राप्त वेश्यावृति है। या यूं कहें कि शादी के बाद पुरुषों को एक स्त्री का जीवन भर रेप करने का लाइसेंस प्राप्त हो जाता है। यानी सामाजिक स्वीकृति की मुहर लग जाती है..स्त्री की इच्छा अनिच्छा बेमानी है। इस मान्यता के बावजूद सिमोन द बोउआर की तरह मैं भी यह मानती हूं कि स्त्री पुरुष के बीच यौन संबंध हमेशा दमनकारी नहीं होते। एसे दैहिक संबंधों को अस्वीकर करने के बजाए उस संबंध में मौजूद दमनकारी तत्वों के विनाश की कोशिश क्यों ना की जाए।
एक स्त्री अपने मनपसंद पुरुष के साहचर्य मे अपनी यौनिकता की खोज करती है। दुनिया के सबसे सुंदर रिश्ते में जब जबरदस्ती जैसे तत्व घुस आए तो क्या होगा।
हाल ही में एक खबर ने औरतों की दुनिया में फिर हलचल मचाई। अफगानिस्तान एक तरफ चुनाव झेल रहा है वही वहां औरतो को लेकर बन रहे नए नए कानून उसे डरा रहे है। वहां के नए कानून ने पुरुषों को यह हक दिया है कि अगर बीबी शौहर की यौन संबंधी मांग पूरी नहीं करती, इनकार करती है तो उसका खाना पीना बंद किया जा सकता है। यानी सेक्स नहीं तो खाना नहीं..उनकी भूख मिटाओ नहीं तो अपनी भूख से जाओ..।
क्या शानदार कानून है। कानून के नए मसौदे में पिता और दादा को ही बच्चों का अभिभावक माना गया है। अगर महिला को नौकरी ही करनी है तो उसे अपने शौहर से इजाजत लेनी होगी। कानून में बलात्कारी को मुकदमे से बचने का भी एक असरदार तरीका दिया गया है। बलात्कार के दौरान जख्मी हुई लड़की को खून का भुगतान कर बलात्कारी लड़की को खून का भुगतान कर आसानी से बच सकता है।
यह विधेयक वहां पहले भी पास हुआ था। इसके मूल स्वरुप का भारी विरोध हुआ था। तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई ने इसे वापस ले लिया था। मगर मौजूदा संशोधित विधेयक अब भी महिला विरोधी है। सीधे सीधे इसके पीछे वहां की चुनावी राजनीति काम कर रही थी। चुनाव में शिया समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए करजई ने यह बर्बर कानून पास किया था। क्योंकि यह सिर्फ शिया समुदाय पर ही लागू होती है। बर्बरता का आलम ये था कि पहले जो मूल विधेयक बनाया गया था उसके अनुसार शिया महिलाओं को अपने शौहर के साथ सप्ताह में कमसेकम चार बार सेक्स करना जरुरी था। मानों औरत ना हुई, सेक्स करने की मशीन हो गई। पति ना हुआ सेक्स को गिनने वाला गणितज्ञ हो गया। गिनना ही पड़ेगा, सरकार चाहती है। हैरानी होती है कि कोई एसा मुल्क भी हो सकता है जहां सरकारें चिंता करें कि शौहर की सेक्स लाइफ कैसे आबाद रहे।
लगता है अब पत्नी के नियंत्रित करने के लिए पतिनुमा जीव विस्तर पर विधेयक की कापी लेकर सोएगा। स्त्री को नियंत्रित करने के लिए मर्द कानून का सहारा लेने लगे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव सही ही तो लिखते है,---आदमी ने मान लिया है कि
औरत शरीर है, सेक्स है, वहीं से उसकी स्वतंत्रता की चेतना और स्वच्छंद
व्यवहार पैदा होते हैं, इसीलिए हर तरह से उसके सेक्स को नियंत्रित करना
चाहता है।
कवि पंत के अनुसार--योनि मात्र रह गई मानवी।
एक स्त्री अपने मनपसंद पुरुष के साहचर्य मे अपनी यौनिकता की खोज करती है। दुनिया के सबसे सुंदर रिश्ते में जब जबरदस्ती जैसे तत्व घुस आए तो क्या होगा।
हाल ही में एक खबर ने औरतों की दुनिया में फिर हलचल मचाई। अफगानिस्तान एक तरफ चुनाव झेल रहा है वही वहां औरतो को लेकर बन रहे नए नए कानून उसे डरा रहे है। वहां के नए कानून ने पुरुषों को यह हक दिया है कि अगर बीबी शौहर की यौन संबंधी मांग पूरी नहीं करती, इनकार करती है तो उसका खाना पीना बंद किया जा सकता है। यानी सेक्स नहीं तो खाना नहीं..उनकी भूख मिटाओ नहीं तो अपनी भूख से जाओ..।
क्या शानदार कानून है। कानून के नए मसौदे में पिता और दादा को ही बच्चों का अभिभावक माना गया है। अगर महिला को नौकरी ही करनी है तो उसे अपने शौहर से इजाजत लेनी होगी। कानून में बलात्कारी को मुकदमे से बचने का भी एक असरदार तरीका दिया गया है। बलात्कार के दौरान जख्मी हुई लड़की को खून का भुगतान कर बलात्कारी लड़की को खून का भुगतान कर आसानी से बच सकता है।
यह विधेयक वहां पहले भी पास हुआ था। इसके मूल स्वरुप का भारी विरोध हुआ था। तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई ने इसे वापस ले लिया था। मगर मौजूदा संशोधित विधेयक अब भी महिला विरोधी है। सीधे सीधे इसके पीछे वहां की चुनावी राजनीति काम कर रही थी। चुनाव में शिया समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए करजई ने यह बर्बर कानून पास किया था। क्योंकि यह सिर्फ शिया समुदाय पर ही लागू होती है। बर्बरता का आलम ये था कि पहले जो मूल विधेयक बनाया गया था उसके अनुसार शिया महिलाओं को अपने शौहर के साथ सप्ताह में कमसेकम चार बार सेक्स करना जरुरी था। मानों औरत ना हुई, सेक्स करने की मशीन हो गई। पति ना हुआ सेक्स को गिनने वाला गणितज्ञ हो गया। गिनना ही पड़ेगा, सरकार चाहती है। हैरानी होती है कि कोई एसा मुल्क भी हो सकता है जहां सरकारें चिंता करें कि शौहर की सेक्स लाइफ कैसे आबाद रहे।
लगता है अब पत्नी के नियंत्रित करने के लिए पतिनुमा जीव विस्तर पर विधेयक की कापी लेकर सोएगा। स्त्री को नियंत्रित करने के लिए मर्द कानून का सहारा लेने लगे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव सही ही तो लिखते है,---आदमी ने मान लिया है कि
औरत शरीर है, सेक्स है, वहीं से उसकी स्वतंत्रता की चेतना और स्वच्छंद
व्यवहार पैदा होते हैं, इसीलिए हर तरह से उसके सेक्स को नियंत्रित करना
चाहता है।
कवि पंत के अनुसार--योनि मात्र रह गई मानवी।
यहां एक छोटी सी कहानी का उल्लेख करना जरुरी लग रहा है--एक बार जरथुस्त्र
एक बुढिया से पूछता है, बताओ, स्त्री के बारे में सच्चाई क्या है। वह
कहती है, बहुतसी सच्चाईयां एसी है जिनके बारे में चुप रहना ही बेहतर है।
हां, अगर तुम औरत के पास जा रहे हो तो अपना कोड़ा साथ ले जाना मत भूलना।
यह कोड़ा अब विधेयक के रुप में औरतों में खौफ भर रहा है। स्त्री पुरुष दोनों के लिए जो आनंद का पल है, वो खौफ में बदल रहा है।
बहरहाल, विधेयक के मूल स्वरुप का वहां इतना विरोध हुआ कि इसमें संशोधन करना पड़ा और चालाकी देखिए कि संशोधित विधेयक को चुपचाप पारित कर दिया गया। हैरानी होती है कि भारतीय समाज की खुली पाठशाला में जीवन का पाठ पढने वाले उदारवादी करजई महज चुनावी फायदे के लिए आधी दुनिया के मन और इच्छाओं से कैसे खेल सकते हैं। वैसे भी अरब देशों में पहले से ही औरतों के विऱुध ढेर सारे कानून और सामाजिक पाबंदियां हैं जहां उनका दम घुट रहा है। हिम्मत जुटा कर महिलाएं प्रदर्शन भी कर रही हैं। फिर भी उनकी आवाजें, उनके गुहार अनसुने हैं...वहां रोज महिलाओं के अधिकारो के हनन के नए नए कानून ढूंढे जाते हैं। सामंती उत्पीड़न से अभी तक उनकी मुक्ति नहीं हो पाई है। एसी यंत्रणादायक परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए वहां की औरत को सामूहिक ल़ड़ाई लड़नी पड़ेगी। अपने शरीर को लेकर आखिर कितनी यातना झेलेगी औरत।
कैसा समाज होगा वह जहां एक कानून औरतों को बीवी से वेश्या में बदल दे वो भी अपने घर में। वेश्याएं तो खुलेआम दैहिक श्रम से अपने लिए खाना पीना जुटाती हैं, घरों में बीबियां भी अपने पेट की भूख मिटाने के लिए शौहर के साथ दैहिक श्रम करेंगी। क्या फर्क है..सिर्फ मर्द ही तो बदल रहे हैं...चरित्र तो वही है...दमनकारी। इस संदर्भ में भारतीय समाज को याद किया जाना लाजिमी है।
शहर हो या गांव औरत हर जगह सेक्स एक उपादान है। ज्यादातर पतियों का मुंह इसलिए सूजा रहता है कि बीवी ने सेक्स करने से मना कर दिया। मियां का मूड बिगड़ गया। संबंधों में कुंठा और लड़ाई की पहली सीढी यही होती है जो बाद में घरेलू हिंसा में बदल जाती है। लोग लड़ाई की जड़ तक नहीं पहुंच पाते कई मामलो में। झु्ग्गियों में झांके, ज्यादातर औरतों की कुटाई इसीलिए होती है, क्योकि वे रोज रोज अपने शराबी पति की हवस मिटाने से मना कर देती हैं। मध्यवर्ग में सीधे सीधे वजह यह नहीं बनता मगर बड़ी वजह यही होती है। पुरुष कुंठित होने लगता है और औरतें घुटने लगती है..छोटी छोटी बात पर झगड़े हिंसक रुप ले लेते हैं..भीतर में सेक्स-कुंठा इस झगड़े को हवा देती रहती है।
एक बुढिया से पूछता है, बताओ, स्त्री के बारे में सच्चाई क्या है। वह
कहती है, बहुतसी सच्चाईयां एसी है जिनके बारे में चुप रहना ही बेहतर है।
हां, अगर तुम औरत के पास जा रहे हो तो अपना कोड़ा साथ ले जाना मत भूलना।
यह कोड़ा अब विधेयक के रुप में औरतों में खौफ भर रहा है। स्त्री पुरुष दोनों के लिए जो आनंद का पल है, वो खौफ में बदल रहा है।
बहरहाल, विधेयक के मूल स्वरुप का वहां इतना विरोध हुआ कि इसमें संशोधन करना पड़ा और चालाकी देखिए कि संशोधित विधेयक को चुपचाप पारित कर दिया गया। हैरानी होती है कि भारतीय समाज की खुली पाठशाला में जीवन का पाठ पढने वाले उदारवादी करजई महज चुनावी फायदे के लिए आधी दुनिया के मन और इच्छाओं से कैसे खेल सकते हैं। वैसे भी अरब देशों में पहले से ही औरतों के विऱुध ढेर सारे कानून और सामाजिक पाबंदियां हैं जहां उनका दम घुट रहा है। हिम्मत जुटा कर महिलाएं प्रदर्शन भी कर रही हैं। फिर भी उनकी आवाजें, उनके गुहार अनसुने हैं...वहां रोज महिलाओं के अधिकारो के हनन के नए नए कानून ढूंढे जाते हैं। सामंती उत्पीड़न से अभी तक उनकी मुक्ति नहीं हो पाई है। एसी यंत्रणादायक परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए वहां की औरत को सामूहिक ल़ड़ाई लड़नी पड़ेगी। अपने शरीर को लेकर आखिर कितनी यातना झेलेगी औरत।
कैसा समाज होगा वह जहां एक कानून औरतों को बीवी से वेश्या में बदल दे वो भी अपने घर में। वेश्याएं तो खुलेआम दैहिक श्रम से अपने लिए खाना पीना जुटाती हैं, घरों में बीबियां भी अपने पेट की भूख मिटाने के लिए शौहर के साथ दैहिक श्रम करेंगी। क्या फर्क है..सिर्फ मर्द ही तो बदल रहे हैं...चरित्र तो वही है...दमनकारी। इस संदर्भ में भारतीय समाज को याद किया जाना लाजिमी है।
शहर हो या गांव औरत हर जगह सेक्स एक उपादान है। ज्यादातर पतियों का मुंह इसलिए सूजा रहता है कि बीवी ने सेक्स करने से मना कर दिया। मियां का मूड बिगड़ गया। संबंधों में कुंठा और लड़ाई की पहली सीढी यही होती है जो बाद में घरेलू हिंसा में बदल जाती है। लोग लड़ाई की जड़ तक नहीं पहुंच पाते कई मामलो में। झु्ग्गियों में झांके, ज्यादातर औरतों की कुटाई इसीलिए होती है, क्योकि वे रोज रोज अपने शराबी पति की हवस मिटाने से मना कर देती हैं। मध्यवर्ग में सीधे सीधे वजह यह नहीं बनता मगर बड़ी वजह यही होती है। पुरुष कुंठित होने लगता है और औरतें घुटने लगती है..छोटी छोटी बात पर झगड़े हिंसक रुप ले लेते हैं..भीतर में सेक्स-कुंठा इस झगड़े को हवा देती रहती है।
August 22, 2009 at 10:47 PM
आपका ये आलेख शायद उन लोगों को कुछ नयी सीख दे सके....जो अभी भी ना जाने धर्म के नाम पर क्या क्या लिखे जा रहे हैं..रही बात इस फ़ैसले की तो इस तरह के फ़ैसले ...उस समाज की सोच को परिलक्छित करते हैं...सर्वथा निंदनीय ...
August 22, 2009 at 10:51 PM
अफगानिस्तान में बने इस कानून या अरब देशों में नारी उत्प्रीड़न को भला कौन अच्छा कहेगा? आपका यह कहना कि - इस मान्यता के बावजूद सिमोन द बोउआर की तरह मैं भी यह मानती हूं कि स्त्री पुरुष के बीच यौन संबंध हमेशा दमनकारी नहीं होते। - सही लगा।
अच्छी चर्चा गीताश्री जी।
August 22, 2009 at 11:43 PM
गीता जी आपकी लेख हमेशा स्त्रियो को लेकर होती है, अच्छी बात है। आप ने लिखा है कि शादी लाइसेंस प्राप्त वेश्या वृत्ति है मै आपके इस बात से सहमत नही हूं , शादी हमारे समाज की एक परंपरा है जो की सदियों से चलती आयी है और चलती रहेगी। हमारे समाज मे इस को धर्म से जोङकर देख जाता है और इसको वेश्या वृत्ति से जोङकर देखना कहाँ का न्याय है। अप कह रही है कि शादी के बाद पुरुषो को बलात्कार करने का लाइसेंस मिल जाता है ये तो नागवार सा लगता है, आप पति और पत्नी के बिच होने व वाले सम्बन्ध को बलात्कार की सज्ञां दे रही है जो की सरासर गलत है शादी के बाद पुरुष का स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने का अधिकार होता है और आप उसपर बलात्कार का अवक्षेप लगा रही है। मेरा ये नही मानना है की औरतो को जबरजस्ती सेक्स के लिए कहा जाये ये अन्याय है। हा मै आपके इस बात सहमत हूं की अफगानिस्तान मे जो रहा है वह महिलाओ के साथ बहुत गलत है। हा आपका ये भी कहना सरासर सही है कि हमारे यहाँ अक्सर शौहर और बीबी के साथ सेक्स को लेकर झगङे होते रहते है। मै इस पक्ष मे बिल्कुल नही हूं नही कि औरतो के साथ किसी भी प्रकार की जोरजबरजस्ती की जाये। आप औरतो को लेकर बहुत अच्छा लिखती है। एसे ही लिखती रहें।
August 22, 2009 at 11:55 PM
सच का सामना में भी तो यही हो रहा है। वहां सच का सामना को सेक्स का सामना बनाया जा रहा है या सेक्स का सामान बनाया जा रहा है जिसे मिले टी आर पी। ये टी आर पी का गणित बहुत उलझा हुआ है। अब तो सेक्स पर भी गिनती का गणित यानी मीटर। इन टरटराहटों पर रोक लगानी होगी।
August 23, 2009 at 12:05 AM
जहॉ कहीं भी नारी को छुपा कर रखा जाएगा वहॉ पर यौन आकर्षण प्रबल होगा और कालान्तर में दोषपूर्ण हो जाएगा। क्या यह सच नहीं है कि महिलाओं की सुप्तता भी कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। कोई कुछ भी कहे यथार्थ यही है कि विपरीत लिंगी में एक सहज और स्वाभाविक आकर्षण होता है तथा यदि इसका दमन किया जाएगा तो विक्षिप्त मानसिकता निर्मित होगी। जब भी नारी अपनी सबलता से उठी है तब वहॉ इतिहास भी ठगा सा खड़ा रह गया है।
कल तक यदि नारी साड़ी पिंडलियों तक उठ जाती थी तो चौराहा पगला जाता है आज नारी विभिन्न ढंग से कपड़े पहन कर चल रही हैं और भयहीन है। ऑचल का ढलकना आजकल कामुकता के बजाए उस महिला की असभ्यता को दर्शाता है अतएव नारी को अपनी शक्ति पर भरोसा रख संगठित होना चाहिए। सब कुछ बदल जाएगा उनके मनमाफिक।
August 23, 2009 at 12:37 AM
देह की भूख पेट की भूख की तरह आवश्यक है। महिलाओं पर पुरूष की दैहिक ज्यादती के कई कारण हैं जिनका उल्लेख प्रगतिशील और उन्नत समाज में अब भी होते रहता है। महिलाओं को जिस भी समाज में केवल जिस्म समझकर सजाया, छुपाया जाएगा वगॉ पर कामुकता स्वाभाविक लक्षणों को खोते हुए विक्षिप्त हो जाएगी।
आजकल किसी महिला का पल्लू सरकना कामुकतापूर्ण भावना के बजाए उस महिला की लापरवाही और असभेयता को प्रबलता से उकेरता है। इस विश्व में ऐसा भी समाज है जहॉ किसी महिला की पिंडली तक दिख जाए तो पूरा चौराहा पागल हो जाए। जिस दिन नारी अपनी पूरी क्षमता और दृढ़ इरादे के साथ खड़ी हो जाएगी उस दिन वह मनोवांछित परिवर्तन लगा देगी।
August 23, 2009 at 2:03 AM
शादी लाइसेंस प्राप्त वेश्यावृत्ति है...बिलकुल ठीक बात है. बीवी और वेश्या में फर्क ही क्या है सिर्फ मर्द ही तो बदल रहे हैं. दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता लहूलुहान हो रहा है. इसे नष्ट करने वालों को इसका अहसास भी नहीं है, न ही $जरूरत है शायद. गीता जी बहुत गंभीर सवाल है. संदर्भ भले ही अफगानिस्तान का हो लेकिन इस तरह की सोच की जड़ें समूचे विश्व में फैली हैं. यह वैश्विक मुद्दा है. सही बात है, एक रिक्शेवाला यह कहकर अपनी पत्नी को पीटता है कि उसकी पत्नी उसकी हवस नहीं मिटाती और मध्य या उच्च वर्गीय इसी बात को दूसरे मुद्दों में डॉल्यूट कर देता है. बड़ा खतरनाक खेल है. उफ! औरत का शरीर ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है.
August 23, 2009 at 3:01 AM
bahut badhiya lekh likha hai.......aaj ke samaaj ke moonh par ek tamacha hai.......jab tak mansikta nhi badlegi aise faisle apne hit ke liye liye jate rahenge aur aurat bhogya hi bani rahegi.......apne liye use khud ladna hoga....jab bhi kranti huyi hai tabhi lakshya bhi hasil hua hai........ek jut hokar hi kuch kiya ja sakta hai varna to halat apne aap kabhi nhi badalte.
August 23, 2009 at 4:22 AM
एक विचार को दर्शाअती है यह लेख ........जिसमे पुरुष का औरत का सम्बन्ध पर अधारित लेख इस समाज से बहुत कुछ कहने मे सक्षम है .........बधाई
August 23, 2009 at 4:58 AM
अफगानिस्तान में बने इस कानून और ऐसे ही कई कानून सिरफिरों की उपज है जो निन्दनीय हैं.
August 23, 2009 at 5:52 AM
अफगानिस्तान के नए कानूनों की निंदा करने के बाद यह भी की जीवन में सेक्स की अहमियत और अनिवार्यता को उपेक्षित कर ही मानो सिमोन द बोउआर की भारतीय पीढी - तथाकथित प्रगतिशील नारियों की निजी दमित कुंठाए अभिव्यक्ति पाती हों -हद है !
August 23, 2009 at 5:53 AM
गीताश्री जी किसी ने कहा है औरत ही औरत की दुश्मन होती है! शायद सही ही कहा है!किसी भी सभ्यता मे मर्द को औरत का दमनपथ औरत ही दिखाती है! "जोरु का गुलाम" जैसे शब्द औरतों की तर्कष से ही निकले वाले शब्द है जो एक औरत के जीवन को धव्नश करने को उकसाते है....
कुछ ऐसे ही अच्छी भली पत्नी का दर्जा वेश्या का हो चलता है!
August 23, 2009 at 7:50 AM
geetashree ji ye lagataa hai ki aapna desh fir bhi bahut behatar hai kam se kam iss tarah se kaanoon toh nahin banate aur aisee baaten jo sankeernata paida kerenewali hain unaka virodh toh hota hai ..
August 23, 2009 at 1:40 PM
Bahut Bariya!
August 23, 2009 at 9:26 PM
एक नजर इधर भी देखें
देह की भूख के आगे सब बेमानी
August 24, 2009 at 3:53 AM
Kaphi kuch Likha ja chuka hai Geetashree ke aalekh par .... aur yeh jaankar prasannata hui ki sabhi paathko ne ek sur mei Afganistaan mei bane is kaanoon ki NINDA ki hai ... Geetashree ka Prayaas sarahniya hai ... aur yeh bhi ehsaas dilwaata hai ki bhale hi humaare desh mei isthiti kahi behtar hai ..... lekin Bahut door jaana hai abhi .... Manjiley door hain.
August 25, 2009 at 9:21 PM
धन्यवाद गीताश्री जी ! आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है !आपका लेखन बहुत परिपक्व और दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट लगा ! अब तो आपके यहां आते रहना होगा ..!
August 26, 2009 at 7:42 AM
शर्मनाक कानून है यह! न जाने कैसे लोगों ने इसे पास कर दिया।
September 29, 2015 at 6:14 AM
गीता जी मेरा ये लेख कड़वा लगेगा लेकिन ये सच है.
आप सब महिलांए ने पुरुष को गलत ठहरा दिया. में आपसे एक सवाल पूछता हु । क्या महिलओं और लड़कियों में सेक्स की भूख नहीं होती. सबसे पहले बॉलीवुड से सुरुआत करता हु. बॉलीवुड की अधिकतर अभिनेत्रियां और मॉडल्स सेक्स की भूखी होती है और वो मर्द बदल बदल कर सेक्स का मजा लेती है. यहाँ तक की मुख और गुदा मैथुन भी दिल खोलकर करती है और पुरुष वीर्य को चाटकर अपनी हवस की भूख मिटाती है. और जो पैसे के लिए करती है उनकी तो बात अलग है. रोज होटलों में पकड़ी जाती है. इसके बाद नंबर आता है हाउस वाइफ्स का जो अपने सेक्स की भूख मिटने के लिए अपने पति से बेवफाई तक करती है. इसके आलावा कॉलेज गर्ल्स होस्टल्स में अपने बॉयफ्रेंड के साथ खुलकर सेक्स करती है. इसके बाद रिश्तेदारियों में अवैध सम्बन्ध और रंगरेलियां रोज जगजाहिर होते रहते है. यहाँ तक की अपने प्यास को मिटने के लिए अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति, बच्चों, माँ, बाप, भाई का भी मर्डर करती है. इसके बाद नंबर आता है अच्छे अच्छी घरानों की लड़कियां और महिलाये अंधभक्ति में लिप्त होकर ढोंगी बाबाओ के बिस्तर गर्म करती है जैसे आशा राम और नारायण साईं जिनके सैकड़ों लड़कियों और महिलांए से अवैध सम्बन्ध थे. में पूछता हु क्या ये सभी लड़कियों और महिलाओं का जबरदस्ती बलात्कार हुआ था. आज आम आदमी के बलात्कार करते ही वो अख़बारों में आ जाता है. ये लड़कियां और महिलाये खुलकर सामने आ जाती है. तो फिर इन बाबाओं के सामने ये अपना मुख बंद क्यों रखती है. क्या ये सभी अनपढ़ होती है. इसके बाद नंबर आता है नाबालिग लड़कियों का जो कच्ची उम्र में ही सेक्स का स्वाद चख लेती है. और माँ बाप के मुख पर कालिख पोत कर भाग जाती है. में ये नहीं कहता की सभी लड़कियां और महिलाये ऐसे होती है लेकिन अधिकतर ऐसी ही होती है. जो सेक्स की भूखी होती है. सिर्फ पुरुष में ही हवस की भूख नहीं होती है औरतों में भी हवस की आग बराबर लगती है.
September 29, 2015 at 6:14 AM
गीता जी मेरा ये लेख कड़वा लगेगा लेकिन ये सच है.
आप सब महिलांए ने पुरुष को गलत ठहरा दिया. में आपसे एक सवाल पूछता हु । क्या महिलओं और लड़कियों में सेक्स की भूख नहीं होती. सबसे पहले बॉलीवुड से सुरुआत करता हु. बॉलीवुड की अधिकतर अभिनेत्रियां और मॉडल्स सेक्स की भूखी होती है और वो मर्द बदल बदल कर सेक्स का मजा लेती है. यहाँ तक की मुख और गुदा मैथुन भी दिल खोलकर करती है और पुरुष वीर्य को चाटकर अपनी हवस की भूख मिटाती है. और जो पैसे के लिए करती है उनकी तो बात अलग है. रोज होटलों में पकड़ी जाती है. इसके बाद नंबर आता है हाउस वाइफ्स का जो अपने सेक्स की भूख मिटने के लिए अपने पति से बेवफाई तक करती है. इसके आलावा कॉलेज गर्ल्स होस्टल्स में अपने बॉयफ्रेंड के साथ खुलकर सेक्स करती है. इसके बाद रिश्तेदारियों में अवैध सम्बन्ध और रंगरेलियां रोज जगजाहिर होते रहते है. यहाँ तक की अपने प्यास को मिटने के लिए अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति, बच्चों, माँ, बाप, भाई का भी मर्डर करती है. इसके बाद नंबर आता है अच्छे अच्छी घरानों की लड़कियां और महिलाये अंधभक्ति में लिप्त होकर ढोंगी बाबाओ के बिस्तर गर्म करती है जैसे आशा राम और नारायण साईं जिनके सैकड़ों लड़कियों और महिलांए से अवैध सम्बन्ध थे. में पूछता हु क्या ये सभी लड़कियों और महिलाओं का जबरदस्ती बलात्कार हुआ था. आज आम आदमी के बलात्कार करते ही वो अख़बारों में आ जाता है. ये लड़कियां और महिलाये खुलकर सामने आ जाती है. तो फिर इन बाबाओं के सामने ये अपना मुख बंद क्यों रखती है. क्या ये सभी अनपढ़ होती है. इसके बाद नंबर आता है नाबालिग लड़कियों का जो कच्ची उम्र में ही सेक्स का स्वाद चख लेती है. और माँ बाप के मुख पर कालिख पोत कर भाग जाती है. में ये नहीं कहता की सभी लड़कियां और महिलाये ऐसे होती है लेकिन अधिकतर ऐसी ही होती है. जो सेक्स की भूखी होती है. सिर्फ पुरुष में ही हवस की भूख नहीं होती है औरतों में भी हवस की आग बराबर लगती है.
September 29, 2015 at 6:18 AM
गीता जी मेरा ये लेख कड़वा लगेगा लेकिन ये सच है.
आप सब महिलांए ने पुरुष को गलत ठहरा दिया. में आपसे एक सवाल पूछता हु । क्या महिलओं और लड़कियों में सेक्स की भूख नहीं होती. सबसे पहले बॉलीवुड से सुरुआत करता हु. बॉलीवुड की अधिकतर अभिनेत्रियां और मॉडल्स सेक्स की भूखी होती है और वो मर्द बदल बदल कर सेक्स का मजा लेती है. यहाँ तक की मुख और गुदा मैथुन भी दिल खोलकर करती है और पुरुष वीर्य को चाटकर अपनी हवस की भूख मिटाती है. और जो पैसे के लिए करती है उनकी तो बात अलग है. रोज होटलों में पकड़ी जाती है. इसके बाद नंबर आता है हाउस वाइफ्स का जो अपने सेक्स की भूख मिटने के लिए अपने पति से बेवफाई तक करती है. इसके आलावा कॉलेज गर्ल्स होस्टल्स में अपने बॉयफ्रेंड के साथ खुलकर सेक्स करती है. इसके बाद रिश्तेदारियों में अवैध सम्बन्ध और रंगरेलियां रोज जगजाहिर होते रहते है. यहाँ तक की अपने प्यास को मिटने के लिए अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति, बच्चों, माँ, बाप, भाई का भी मर्डर करती है. इसके बाद नंबर आता है अच्छे अच्छी घरानों की लड़कियां और महिलाये अंधभक्ति में लिप्त होकर ढोंगी बाबाओ के बिस्तर गर्म करती है जैसे आशा राम और नारायण साईं जिनके सैकड़ों लड़कियों और महिलांए से अवैध सम्बन्ध थे. में पूछता हु क्या ये सभी लड़कियों और महिलाओं का जबरदस्ती बलात्कार हुआ था. आज आम आदमी के बलात्कार करते ही वो अख़बारों में आ जाता है. ये लड़कियां और महिलाये खुलकर सामने आ जाती है. तो फिर इन बाबाओं के सामने ये अपना मुख बंद क्यों रखती है. क्या ये सभी अनपढ़ होती है. इसके बाद नंबर आता है नाबालिग लड़कियों का जो कच्ची उम्र में ही सेक्स का स्वाद चख लेती है. और माँ बाप के मुख पर कालिख पोत कर भाग जाती है. में ये नहीं कहता की सभी लड़कियां और महिलाये ऐसे होती है लेकिन अधिकतर ऐसी ही होती है. जो सेक्स की भूखी होती है. सिर्फ पुरुष में ही हवस की भूख नहीं होती है औरतों में भी हवस की आग बराबर लगती है.
September 29, 2015 at 6:21 AM
गीता जी मेरा ये लेख कड़वा लगेगा लेकिन ये सच है.
आप सब महिलांए ने पुरुष को गलत ठहरा दिया. में आपसे एक सवाल पूछता हु । क्या महिलओं और लड़कियों में सेक्स की भूख नहीं होती. सबसे पहले बॉलीवुड से सुरुआत करता हु. बॉलीवुड की अधिकतर अभिनेत्रियां और मॉडल्स सेक्स की भूखी होती है और वो मर्द बदल बदल कर सेक्स का मजा लेती है. यहाँ तक की मुख और गुदा मैथुन भी दिल खोलकर करती है और पुरुष वीर्य को चाटकर अपनी हवस की भूख मिटाती है. और जो पैसे के लिए करती है उनकी तो बात अलग है. रोज होटलों में पकड़ी जाती है. इसके बाद नंबर आता है हाउस वाइफ्स का जो अपने सेक्स की भूख मिटने के लिए अपने पति से बेवफाई तक करती है. इसके आलावा कॉलेज गर्ल्स होस्टल्स में अपने बॉयफ्रेंड के साथ खुलकर सेक्स करती है. इसके बाद रिश्तेदारियों में अवैध सम्बन्ध और रंगरेलियां रोज जगजाहिर होते रहते है. यहाँ तक की अपने प्यास को मिटने के लिए अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति, बच्चों, माँ, बाप, भाई का भी मर्डर करती है. इसके बाद नंबर आता है अच्छे अच्छी घरानों की लड़कियां और महिलाये अंधभक्ति में लिप्त होकर ढोंगी बाबाओ के बिस्तर गर्म करती है जैसे आशा राम और नारायण साईं जिनके सैकड़ों लड़कियों और महिलांए से अवैध सम्बन्ध थे. में पूछता हु क्या ये सभी लड़कियों और महिलाओं का जबरदस्ती बलात्कार हुआ था. आज आम आदमी के बलात्कार करते ही वो अख़बारों में आ जाता है. ये लड़कियां और महिलाये खुलकर सामने आ जाती है. तो फिर इन बाबाओं के सामने ये अपना मुख बंद क्यों रखती है. क्या ये सभी अनपढ़ होती है. इसके बाद नंबर आता है नाबालिग लड़कियों का जो कच्ची उम्र में ही सेक्स का स्वाद चख लेती है. और माँ बाप के मुख पर कालिख पोत कर भाग जाती है. में ये नहीं कहता की सभी लड़कियां और महिलाये ऐसे होती है लेकिन अधिकतर ऐसी ही होती है. जो सेक्स की भूखी होती है. सिर्फ पुरुष में ही हवस की भूख नहीं होती है औरतों में भी हवस की आग बराबर लगती है.
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