प्रतिभा की दुनिया से चंद सांसे

Posted By Geetashree On 5:26 AM 6 comments
सीरिया की गाथा के बीच प्रतिभा की यह कविता मेरे हाथ लगी। उन्होंने लिखा था-जरा देख कर बताइए..पढने के बाद मैं खुद को रोक नही पाई। ये कविता वो आईना है जिसमें दुनिया, समाज का प्रेम से डरा हुआ लेकिन खौफनाक चेहरा दिखाई पड़ता है।--गीताश्री
किस कदर उलझे रहते हैं वे
एक-दूसरे में,
किस कदर तेज चलती हैं उनकी सांसें
किस कदर बेफिक्र हैं वे दुनिया के हर खौफ से
कि दुनिया को उनसे ही लगने लगा है डर,
कि उन पर ही लगी हैं सबकी निगाहें
वे कोई आतंकवादी नहीं,
न ही सभ्यताओं के हैं दुश्मन
न ही उनके दिमाग में है कोई षडयंत्र
फिर भी दुनिया को लग रहा उनसे डर.
पंचायतों की हिल गई हैं चूलें
पसीने आ रहे हैं समाज के मसीहाओं के
कैसे रोकें वे उन दोनों को
कैसे उलझायें उन्हें दूसरे कामों में
कि उनकी दिशायें ही बदल जायें
कौन से जारी किये जाएं फरमान
कि खत्म हो सके उनका प्रेम
कितने खतरनाक हैं
वे इस दुनिया के लिए, सचमुच?

प्रतिभा कटियार