मनीषा तनेजा की कविताएं

Posted By Geetashree On 12:26 AM 19 comments
मनीषा तनेजा की कहानी पर पाठकों की प्रतिक्रिया के लिए सच में आभारी हूं.

अब पेश है मनीषा की कविताएं. मनीषा की इन कविताओं से गुजरते हुए आप पाएंगे कि इन कविताओं में काल का पृष्ठ तनाव गुजरे हुए से लेकर भविष्य तक विस्तारित होता है; हर उस अच्छी कविता की तरह, जिसके आकाश में प्रेम किसी संतूर-सा बजता रहता है. -गीताश्री


मनीषा तनेजा की चार कविताएं

एक
घास पर दो परछाइयां
लंबी होती, बढ़ती हुई साथ-साथ चलती हुई
हरे घास के मैदान से होकर.

तुम्हारे बेहद चौड़े कांधे मेरी दुबली-पतली उंगलियां
दो परछाइयां साथ-साथ
और बीच में सूरज की किरणें
क्षितिज से कितनी दूर
परछाइयों के साथ बैंगनी रंग
जैसे हमारे पीछे डूबता है सूरज
कांधे पर तुम्हारी बाहें मुझे खींच रही है तुम्हारे करीब
जब ढलती है शाम
दोनों परछाइयां मिलकर एक हो जाती हैं.

दो
समय की रफ्तार के साथ साल दर साल गुजरते जाते हैं,
वो रुकते हैं तुम पर मुस्कुराने के लिए
तुम्हें तुम्हारी सुहानी यादों के साथ बांधने के लिए

जिंदगी ने तुम्हें जो खुशियां दी हैं
और तुम जिन्हें खुलकर
अपने हर मिलने वालों के साथ बांटते हो
यही चीज तुम्हारी जिंदगी को मुकम्मल बनाती है
ऐसा करके तुम हमेशा जवान बने रहते हो
क्योंकि तुम्हारे पास देने के लिए काफी कुछ है,
तुम सदा युवा ही रहोगे
क्योंकि तुमने देना सीख लिया है.

तीन
मेरी ख्वाहिश है
इंद्रधनुष को कैद करके
एक बड़े बक्से में डाल दूं
ताकि तुम जब चाहो उसके पास जाकर
एक चमकीला टुकड़ा खींचकर ले लो.

मैं तुम्हारे लिए एक पहाड़ बनाना चाहती हूं
जिसे तुम अपना कह सको,
एक ऐसी जगह
जहां तुम खुद से करीब होने की जरूरत के वक्त जा सको

जब तुम तकलीफ में होगे
या बहुत प्यारे लग रहे होगे
या जब किसी का साथ यूं ही चाहोगे,
चाहती हूं ऐसे पलों में
तुम्हारे साथ रहूं
मैं तुम्हारे लिए वो सब कुछ करना चाहती हूं या
इससे कहीं ज्यादा भी
जो तुम्हारी जिंदगी को खुशियों से भर दे.

पर कभी-कभी ऐसा करना आसान नहीं होता
तब मैं तुम्हारे लिए वो करना चाहूंगी या
तुम्हें वो दूंगी जो मेरी चाहत है

इसीलिए जब तक मैं इंद्रधनुष को कैद करना या
कोई पर्वत बनाना नहीं सीख लेती तब तक
तुम्हारे लिए मुझे वो करने दो जिसे करना
मैं बखूबी जानती हूं-
मुझे बस अपना दोस्त बनने दो.

चार
एक बेजान गुलाबी याद ने मेरे दिल को छुआ
गुलाबी रंग चटक लाल रंग में ढल गया
फिर उसका रंग गहरा बैंगनी हो गया
खिलखिलाती हंसी से आंसू तक के वो दिन
मस्ती और निराशा से भरे
हम इन सबसे गुजर चुके हैं, क्या ऐसा नहीं है?
हल्के रंगों से गहरे चमकीले रंगों की ओर
हर बार मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं
मेरी मुस्कान सारी भावनाओं को व्यक्त कर देती है.