गीताश्री
तो सुख-दुख, आकांक्षा
तो सुख-दुख, आकांक्षा
और हार,उदासी और उत्साह,
वर्तमान भविष्य के अनुभव को धीमा कर देना
और हर दो तस्वीरों के बीच
नई राहें और नए शार्टकट ढूंढना,मेरे जीवन में सिगरेटों का यही मुख्य उद्देश्य था,
जब ये संभावनाएं नहीं रहती,
आदमी खुद को नंगा जैसा महसूस करने लगता है,
कमजोर और असहाय।
- ओरहान पामुक (तुर्की के नोबेल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार)
सिगरेट छोडऩे के बाद पामुक का अनुभव ये था।
लेकिन सिक्किम बिना धुआं उड़ाए, बिना तंबाकू चबाए अपने भविष्य की नई राहें चुनने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। वह खुद को पहले से ज्यादा मजबूत और शक्तिशाली पाने लगा है। उसका उद्देश्य अब धुंआरहित उपादानों से जुड़ गया है। पर्यटकों के लिए स्वर्ग सरीखे सिक्किम की फिजां में बौद्ध तांत्रिको की रहस्यमता आपको आसानी से गिरफ्त में ले लेती है। जैसे जैसे गंगटोक के करीब जाते हैं, आकर्षक लामाओं की कतारें उतनी लंबी दिखती हैं। बौद्ध भिक्षुणियों का मौन कितनी आसक्ति पैदा करता है, देखें तो जानें। एक पल के लिए मुस्कान चमकती और बुझती है।
अमोल पालेकर ने शायद इसी से मंत्रासिक्त होकर फीचर फिल्म बनाई थी-वंस अगेन। बौद्ध भिक्षुणी और सामान्य पुरुष का प्रेम और इनके बीच काव्यात्मक उपस्थिति के साथ पसरा सिक्किम का अनछुआ सौंदर्य। बागडोगरा से गंगटोक तक की यात्रा में ड्राइवर भुवन थापा अपने धुंआरहित राज्य को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित दिखा। स्वभाव से बातूनी लेकिन निगाहें बेहद पैनी। इकत्तीस मई 2010 को जब से उसका राज्य धुएं के जाल से मुक्त घोषित हुआ, उसने सबसे पहले अपनी गाड़ी में नो स्मोकिंग के स्टिकर चिपकाए। उसके बाद उसे आदत सी हो गई है राज्य में आने वाले हरेक यात्री को विस्तार से जानकारी देने की।
भुवन बताता है, ‘नए माहौल में पर्यटक और जनता तो धीरे-धीरे तालमेल बिठा रहे हैं लेकिन जो प्रतिबंध लगाता है, वही सबसे ज्यादा तोड़ता है।’भुवन का इशारा सिक्किम पुलिस की तरफ था।भुवन के पास अपार जानकारी है कि प्रतिबंध के बाद कौन और कहां चोरी छिपे तंबाकू बेचता है। मगर वह जगह बताने से साफ मना करता है।
बागडोगरा से सिक्किम तक की सडक़ बारिश में बेहद खराब हो जाती है। ये अक्टूबर महीने के शुरूआती दिन थे। पहाड़ी झरनों और अभिमंत्रित हवाओं के बावजूद टूटी-फूटी सडक़ों पर सफर बहुत लंबा और ऊबाऊ हो जाता है।
भुवन मूड भांपते हुए कहता है, ‘शुक्र है, आप चार पांच दिन पहले आ गए। जल्दी लौट जाइए, नहीं तो लौट भी नहीं पाएंगे। गोरखालैंड आंदोलन की तैयारी शुरू हो गई है। लोग सडक़ों पर उतर आएंगे। सडक़े जाम हो जाएंगी। जैसे ही पहाड़ों से बारिश उतरती है, सैलानियों के आने का मौसम शुरू होता है, यहां आंदोलन तेज हो जाता है। वे लोगों का ध्यान खींचना चाहते हैं।’
रास्ते में भुवन सडक़ के किनारे बने ढाबों, रेस्टोरेंट की तरफ इशारा करता है। जगह जगह नो स्मोकिंग, से नो टू टोबैको... जैसे नारों वाले पोस्टर, बैनर लगे हैं। भुवन हरेक यात्री को यह जानकारी देना अपना परम कर्तव्य समझता है। सिक्किम का मुख्य बाजार। जगह-जगह शराब की दुकानें। विक्रेता ज्यादातर बिहारी हैं। हर दुकान के बाहर नो स्मोकिंग जोन का बोर्ड लगा है। एक विक्रेता हैं, छपरा निवासी रामजी साहू। वह बताते हैं, ‘यहां लोग खूब सिगरेट पीते हैं। गुटका भी खाते हैं। बिक्री भी खूब होती है। जितना चाहिए मिल जाएगा। लेकिन उत्पाद दिखाई नहीं देने चाहिए। खासकर बच्चों की नजर न पड़े, इसका ध्यान रखना पड़ता है।’
सिक्किम यूं ही नहीं हुआ ‘तंबाकू रहित’ राज्य।
दो साल की लंबी कहानी है। दो साल तक जन जागरण अभियान चलाया गया। सरकारी मशीनरी के साथ मिलकर राज्य में वोलंन्टरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने जीतोड़ मेहनत की, तब जाकर इस काम को अंजाम दिया जा सका। वीएचएआई से जुड़ी हारका मोती सुब्बा बताती हैं कि उनके संगठन को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।सिक्किम सरकार के नियोजन, निगरानी एवं मूल्यांकन विभाग के उपनिदेशक सी. खेवा बताते हैं, ‘यह विजन हमारे मुख्यमंत्री का था। उन्होंने सोचा, चाहा और सपना साकार हो गया।’ इसके पीछे एक स्वस्थ राज्य ‘हेल्दी सिक्किम’ बनाने का उद्देश्य था। बताते है कि राज्य के ‘स्वास्थ्य विभाग’ ने राज्य सरकार को एक रिपोर्ट दी जिसमें सर्वाधिक मौत का कारण तंबाकू को बताया गया था। राज्य में होने वाली कुल मौतों में पचहत्तर प्रतिशत मौतें इसके इस्तेमाल से होती थीं। इस सर्वे ने सरकार को चौकन्ना कर दिया। खेवा बताते हैं, ‘गुटखा सिक्किम में सात साल पहले ही प्रतिबंधित हो गया था। उसकी बिक्री पर भी रोक लग गई थी। अब सरकार सिगरेट की खुली बिक्री पर प्रतिबंध के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है।’वह यह भी बताते हैं, ‘बाकी जगह लोग सार्वजनिक जगहों पर मॉनिटर नहीं कर रहे। हमारे यहां होता है। यहां कोई खुले में सिगरेट पीए तो कोई भी नागरिक आपको टोक देगा कि यहां पीना मना है।’ डॉ. पूर्णोमन प्रधान (अतिरिक्त निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं एवं तंबाकू नियंत्रण का राज्य केंद्र) के पास जब्त की गई सिगरेटों के पैकेट्स हैं जिन्हें वे एक-एक कर हमें दिखाते हैं। किसी पर भी सचित्र चेतावनी नहीं छपी हुई है।
ब्रांड के नाम हैं, खुकरी, सहारा, शिखर, ब्लू रिवर, रॉयल आदि-आदि। प्रधान बताते हैं, ‘वर्ष 2008 से पहले सिक्किम का बाजार इसी तरह के सिगरेटों से भरा पड़ा था। यहां ज्यादातर नेपाल की सिगरेट बिकती हैं जिन पर कोई सचित्र चेतावनी नहीं छपी होती है। जब से प्रतिबंध लगा है, 15 प्रतिशत खपत कम हुई है। हमें राजस्व की हानि से ज्यादा लोगों के स्वास्थ्य की चिंता है। गैरकानूनी तरीके से नेपाल से आने वाली इन सिगरेटों पर रोक लगाने पर हमारा ज्यादा जोर है।’प्रधान तंबाकू अधिनियिम का हवाला देते हुए कहते है, ‘कोटपा’ में स्पष्ट लिखा है कि बिना सचित्र चेतावनी के कोई तंबाकू उत्पाद नहीं बेच सकते। हमने इसी नियम को आधार बनाया और इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। पहले जागरूकता अभियान चलाया, फिर कानूनी डंडा। अब समाज की पूर्ण सहभागिता है इसमें।’
बताते हैं, तंबाकू लॉबी ने यहां भी अपना जोर लगाया होगा। लेकिन उसे भनक नहीं लगने दी गई।
राज्य को पूर्णत: धुंआरहित घोषित करने से पहले इसका ज्यादा प्रचार नहीं किया गया। प्रधान कहते हैं, ‘हमने धीरे-धीरे जमीनी स्तर पर काम किया। मीडिया को भी ज्यादा कुछ नहीं बताया। काम होने से पहले उसका ढोल नहीं पिटा।’
वोलन्टरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ सिक्किम के कार्यकारी निदेशक वी.वी. राय इस सफलता से बेहद उत्साहित हैं। उन्हें लक्ष्य मिल गया है। वह बताते हैं कि जो पहले तंबाकू का धंधा करते थे, वह किसी और धंधे में लग गए हैं। सिगरेट पीने वालों पर उनकी बेहद तल्ख टिप्पणी है, ‘मेरी नजरों में सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीने वाले आतंकवादी हैं जो धुंए से दूसरों को मार रहे हैं और खुद भी मर रहे हैं।’वी.वी. राय के टेबल पर आवेदन पत्रों का ढेर लगा है। वह ‘पत्र अभियान’ चला रहे हैं। राज्य भर से पत्र इकठ्टा कर रहे हैं जिसमें केंद्र सरकार से तंबाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनी में देर न करने की अपील की गई है। यह अभियान देशव्यापी चलाया जा रहा है ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। तंबाकू लॉबी के दबाव में आकर एक बार सरकार ने घोषणा के बाद अपने कदम पीछे खींच लिए थे।
गंगटोक से पहले रंगपो एक बड़ा कस्बा है।
वहां बिहारी जागरण मंच बेहद सक्रिय है। न सिर्फ अपने राज्य की संस्कृति बचाए रखने के लिए बल्कि तंबाकू उन्मूलन के लिए भी। रंगपो के व्यापारी स्वामीनाथ प्रसाद का इस अभियान ने हृदय परिवर्तन ही कर दिया है। उन्होंने तंबाकू आपूर्ति का धंधा बदल कर राशन का काम शुरू कर दिया है। एक और व्यापारी रतन कुमार हैं। वह बाकायदा अभियान से जुड़ गए हैं। वह लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वह बताते हैं, ‘लोग कहते हैं कि हाईवे पर कानून लागू नहीं होता। हमने मैदान संभाला और हाईवे को दुरुस्त कर लिया।’ मंच के एक सदस्य अजित कुमार इस बात से चिंतित हैं कि रंगपो से पं. बंगाल की सीमा मिलती है। एक पुल पार करते ही नेपाल के सिगरेट खुलेआम बिक रहे हैं। लोग वहीं से भर-भर कर ले आते हैं। बंगाल की वजह से हम चुनौतियां झेल रहे हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार सुन रही है ना..।
December 13, 2010 at 3:46 AM
sundar lekh
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
December 13, 2010 at 5:56 AM
पश्चिम बंगाल आपकी आवाज़ चाहे सुने या न सुने लेकिन आपके तमाम प्रशंसक पाठकों को आपकी आवाज़ ने प्रभावित किया ... बधाई।
December 14, 2010 at 6:16 AM
पोस्ट जल्दी ख़त्म हो गयी......दिलचस्प है उस हिस्से को जानना ....जारी रखिये
December 15, 2010 at 11:02 AM
आपकी पोस्ट ...काफ़ी रोचक है. बधाई।
Post a Comment