सलाखो के पीछे कैद स्वाधीनता

Posted By Geetashree On 9:25 AM
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तो आज था कि अभय ने अपने ब्लौग-- निर्मल आनन्द-- में जो सवाल उठाया है : हिन्दी में सितारा कौन है ? -- उस पर कुछ विचार किया जाये, लेकिन आज एक ऐसी बात हुई कि आप से किसी और विषय की चर्चा करने को मन हो आया है.
आज हमारी युवा मित्र सीमा आज़ाद और उनके पति विश्वविजय की १४ दिन की रिमाण्ड की अवधि पूरी हो रही थी और उन्हें पुलिस फिर से रिमाण्ड में लेने के लिये अदालत में पेश करने नैनी जैल से लाने वाली थी. बात को आगे बढ़ाने से पहले मैं आपको यह बता दूं कि सीमा आज़ाद मानवाधिकार संस्था पी.यू.सी.एल. से सम्बद्ध हैं, साथ ही द्वैमासिक पत्रिका "दस्तक" की सम्पादक हैं और उनके पति विश्वविजय वामपन्थी रुझान वाले सामाजिक कार्यकर्ता हैं. अपनी पत्रिका "दस्तक" में सीमा लगातार मौजूदा जनविरोधी सरकार की मुखर आलोचना करती रही है. सीमा ने पत्रिका का सम्पादन करने के साथ-साथ सरकार के बहुत-से क़दमों का कच्चा-चिट्ठा खोलने वाली पुस्तिकाएं भी प्रकाशित की हैं. इनमें गंगा एक्सप्रेस-वे, कानपुर के कपड़ा उद्योग और नौगढ़ में पुलिसिया दमन से सम्बन्धित पुस्तिकाएं बहुत चर्चित रही हैं. हाल ही में, १९ जनवरी को सीमा ने गृह मन्त्री पी चिदम्बरम के कुख्यात "औपरेशन ग्रीनहण्ट" के खिलाफ़ लेखों का एक संग्रह प्रकाशित किया. ज़ाहिर है, इन सारी वजहों से सरकार की नज़र सीमा पर थी और ६ तारीख़ को पुलिस ने सीमा और विश्वविजय को गिरफ़्तार कर लिया और जैसा कि दसियों मामलों में देखा गया है उनसे झूठी बरामदगियां दिखा कर उन पर राजद्रोह का अभियोग लगा दिया.
वैसे यह कोई नयी बात नहीं है. जनविरोधी सरकारें सदा से यही करती आयी हैं. हाल के दिनों में मौजूदा सत्ताधारी कौंग्रेस ने जिस तरह देश को बड़े पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों गिरवी रखने के लिये क़रार किये हैं और कलिंगनगर, सिंगुर, नन्दीग्राम, लालगढ़, और बस्तर और झारखण्ड के आदिवासियों को बेदखल करना शुरू किया है, वह किसी भी तरह की आलोचना को सहन करने के मूड में नहीं है. और इसीलिये हमारी तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था लोकतंत्र को लम्बा अवकाश दे कर अपनी नीतियों के विरोधियों को कभी "आतंकवादी" और कभी "नक्सलवादी" या "माओवादी" घोषित करके जेल की सलाखों के पीछे ठूंसने का वही फ़र्रुख़ाबादी खेल खेलने लगी है. इस खेल में सब कुछ जायज़ है -- हर तरह का झूठ, हर तरह का फ़रेब और हर तरह का दमन. और इस फ़रेब में सरकार का सबसे बड़ा सहयोगी है हमारा बिका हुआ मीडिया. इसीलिए हैरत नहीं हुई कि सीमा की गिरफ़्तारी के बाद अख़बारों ने हर तरह की अतिरंजित सनसनीख़ेज़ ख़बरें छापीं कि ट्रक भर कर नक्सलवादी साहित्य बरामद हुआ है, कि सीमा माओवादियों की "डेनकीपर" (आश्रयदाता) थी और विश्वविजय माओवादियों के कमाण्डर हैं. यही नहीं, पुलिस और अख़बारों ने मिल कर ऐसा ख़ौफ़ का वातावरण पैदा करने की कोशिश भी की जिस से सीमा के परिवार और मित्रों का मनोबल टूट जाये.
अभय ने अपने ब्लौग मॆं पुस्तक मेले का ज़िक्र किया है. मज़े की बात है कि पांच फ़रवरी को उसी पुस्तक मेले में अभय, मैं और सीमा साथ थे और जिस साहित्य को पुलिस और अख़बार नक्सलवादी बता रहे हैं वे पुस्तक मेले से ख़रीदी गयी किताबें थीं.
बहरहाल, आज की तरफ़ लौटें तो सीमा और विश्वविजय की रिमाण्ड के चौदह दिन आज पूरे हो रहे थे और आज दोनों को अदालत में पेश होना था. हम ग्यारह बजे ही अदालत पहुंच गये. लगभग दो घण्टे के इन्तज़ार के बाद सीमा और विश्वविजय को अदालत में लाया गया. मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई कि दोनों इन चौदह दिनों में थोड़े दुबले भले ही हो गये थे लेकिन दोनों का मनोबल ऊंचा था. सीमा के चेहरे पर एक दृढ़्ता थी और विश्वविजय के चेहरे पर मुस्कान. सीमा हमेशा की तरह मुस्कराती हुई आयी और उसने गर्मजोशी से हाथ मिलाया. लगा जैसे सलाख़ों के पीछे क़ैद स्वाधीनता चली आ रही हो.
हम लोग काफ़ी देर तक सीमा से बातें करते रहे, बिना फ़िकर किये कि सरकार के तमाम गुप्तचर किसी-न-किसी बहाने से आस-पास मंडरा रहे थे और . जब हम आने लगे तो सीमा ने ख़ास तौर पर ज़ोर दे कर कहा कि उसे तो बयान देने की इजाज़त नहीं है, इसलिए वह पुलिस और मीडिया के झूठ का पर्दाफ़ाश नहीं कर पा रही, लेकिन मैं सब को बता दूं कि पुलिस की सारी कहानी फ़र्ज़ी है जैसा कि हम बार-बार देख चुके हैं
सो दोस्तो, यह रिसाला जैसा भी उखड़ा-उखड़ा है सीमा की बात आप सब तक पहुंचाने के लिए भेज रहा हूं. सीमा की रिमाण्ड की अर्ज़ी खारिज हो गयी है. २२ तारीख़ को उसे ज़मानत के लिए पेश किया जायेगा और आशंका यही है कि उसे ज़मानत नहीं दी जायेगी. आशंका इस बात की भी है कि स्पेशल टास्क फ़ोर्स सीमा और विश्वविजय को अपनी रिमाण्ड में ले कर पूछ-ताछ करें और जबरन उनसे बयान दिलवायें कि वे ऐसी कार्रवाइयों में लिप्त हैं जिन्हें राजद्रोह के अन्तर्गत रखा जा सकता है. हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहां सब कुछ सम्भव है-- भरपूर दमन और उत्पीड़न भी और जन-जन की मुक्ति का अभियान भी. यह हम पर मुनस्सर है कि हम किस तरफ़ हैं. ज़ाहिर है कि जो मुक्ति के पक्षधर हैं उन्हें अपनी आवाज़ बुलन्द करनी होगी. अर्सा पहले लिखी अपनी कविता की पंक्तियां याद आ रही हैं :


चुप्पी सबसे बड़ा ख़तरा है ज़िन्दा आदमी के लिए
तुम नहीं जानते वह कब तुम्हारे ख़िलाफ़ खड़ी हो जायेगी और सर्वधिक सुनायी देगी
तुम देखते हो एक ग़लत बात और ख़ामोश रहते हो
वे यही चाहते हैं और इसीलिए चुप्पी की तारीफ़ करते हैं
वे चुप्पी की तारीफ़ करते हैं लेकिन यह सच है
वे आवाज़ से बेतरह डरते हैं
इसीलिए बोलो,
बोलो अपने हृदय की आवाज़ से आकाश की असमर्थ ख़ामोशी को चीरते हुए
बोलो, नसों में बारूद, बारूद में धमाका,
धमाके मॆं राग और राग में रंग भरते हुए अपने सुर्ख़ ख़ून का
भले ही कानों पर पहरे हों, ज़बानों पर ताले हों, भाषाएं बदल दी गयी हों रातों-रात
आवाज़ अगर सचमुच आवाज़ है तो दब नहीं सकती
वह सतत आज़ाद है.

Rangnath Singh
February 20, 2010 at 9:49 AM

बहुत जरूरी लेख।

bhootnath
February 20, 2010 at 12:05 PM

ek baat kahun geeta....is jaise desh men seema jaisiyon ke saath yahi sab hona hota hai....sarkaar jab tak jivan deti hai...tab tak kee umra ko bonas samajh lo....baaki sach kahane vale log to apnon kee aankhon me bhi baba aadam jamaane se khatakte aayen hain....to doosron kee kya kahen.... !!

अजित वडनेरकर
February 20, 2010 at 1:34 PM

कुछ तो हो रहेगा।
बहुत दिन बीते हैं यूं ही।
रीसेशन के नाम पर
न टूटी जो खामोशी
तो अब
कैसे टूटेगी?
टूटनी तो चाहिए फिर भी....

प्रज्ञा पांडेय
February 20, 2010 at 7:07 PM

सीमा और विश्वविजय की कहानी पढ़कर दिल दहल गया ....ये जनतंत्र नहीं है क्या ? अगर आवाज़ उठेगी तो चुप्पी खुद ही खामोश हों जाएगी .आप आवाज़ उठाईये हम साथ है .

विजय प्रताप
February 20, 2010 at 10:23 PM

हम सभी सीमा की गिरफ़्तारी के खिलाफ हैं.
यहाँ भी देखे
http://naipirhi.blogspot.com/2010/02/blog-post_14.html

http://naipirhi.blogspot.com/2010/02/blog-post_10.html

http://naipirhi.blogspot.com/2010/02/blog-post_09.html

सूर्य गोयल
February 21, 2010 at 12:01 AM

महिलाओ पर बहुत ही बढ़िया ब्लॉग. आपके ब्लॉग का पूरा चक्कर लगा कर आया हूँ. लगा की महिलाओ की बात करने वाला कोई है. मेरी बधाई स्वीकार करे. फर्क मात्र इतना है की आप अपने भावो से महिलाओ की बात करती है और मैं अपने भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगूमें स्वागत है.
www.gooftgu.blogspot.com