जनसंख्या कम करने के लिए क्या शानदार फार्मूला दिया दै हमारे आजाद ख्याल के स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने। उनका सुझाव है कि लोग शादी देर से करें तो देर तो तेजी से बढती हुई जनसंख्या पर जल्दी से काबू पाया जा सकेगा। तब लोग देर होने की वजह से कम बच्चे पैदा करेंगे। कितना सीधा सुझाव है। इसमें नई बात क्या है। मंत्री जी का एक और मजेदार सुझाव सुनें..गांवों में बिजली होने से भी जनसंख्या की समस्या पर काबू पाया जा सकता है। लोग रात के 12 बजे तक टीवी देखेंगे और बच्चे कम पैदा करेंगे। बहुत हल्के फुल्के मूड में मंत्री जी ने दो अलग अलग दुनिया की सच्चाईयों की तरफ ध्यान खींच दिया है। शहरो में लोग पहले से ही शादी देर से कर रहे हैं और जीवन की आपाधापी, काम के तनाव और व्यस्तता की वजह से रिश्तों में दूरियां वैसे ही आ गई है। कई रिश्ते टूट गए, कुछ टूट के कगार पर हैं तो कुछ ढोए जा रहे हैं। जहां समझदारी है वहां घुटन भी है जो सिर्फ एक को खाए जा रही है, वह है सिर्फ स्त्री। तमाम सेक्स सर्वे उठा कर देख लीजिए। इसकी भयावहता का अंदाजा लग जाएगा।
कामकाजी महिलाएं तो किसी तरह वक्त काट ले रही हैं, उनसे पूछिए जो घरेलु मोर्चे परतैनात हैं। यहां हम उनकी तरफ से विलाप नहीं करेंगे लेकिन कुछ सवाल उठाए जाने लाजिमी हैं। निपट देहात और झुग्गियों में वैसे भी स्त्रियां मनोरंजन का पर्याय हैं। एक अमेरिकी फिल्मकार का कोटस याद आ रहा है---जिन लोगों को अपने हिस्से का प्यार नहीं मिला सेक्स उनके लिए सांत्वना भर है। बिजली पंहुचा दे तो टीवी आसानी से उनकी जगह ले सकता है, मंत्री जी का इशारा शायद इसी तरफ था।
जहां तक देर से शादी की बात है तो बड़े शहरों में ज्यादतर लड़के लड़कियां शादी देर से कर रहे हैं..छोटे शहरो में नहीं। महनगरो की बात तो ना ही करें। यहां लोग बच्चे भी अपनी हैसियत देख पैदा कर कर रहे हैं। लेकिन इसकी असली जड़ तो छोटे शहर, कस्बा और गांव में है। वहां कौन समझाएं। मैं पिछड़े राज्यों की बात कर रही हूं, जहां आज भी लड़कियों को सिर्फ इसलिए पढाया लिखाया जाता है कि किसी अच्छे, कमाऊ लड़के से शादी हो जाए, कोई संपन्न परिवार मिल जाए और उनका पीछा छूटे। कुछ मां बाप को जमाने की हवा लगी तो सोचने लगे, थोड़ा पढ लिख जाएगी तो कभी ऊंच नीच(मतलब, परित्यक्ता, तलाकशुदा या विधवा) हुआ तो कमा खा लेगी। रोटी के लिए जमाने का मुंह नहीं जोहना पड़ेगा।
छोटे कस्बे में आज भी यही मानसिकता है। मां बाप अभी तक इसी सोच के हैं कि पढा लिखाकर मालिको (पति-ससुराल) के हाथों सौंप दो, भाग्यविधाता तय करेंगे कि आगे और पढाई जारी रखनी है या उन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन में बदल देना है। गांव और छोटे कस्बे में देर से शादी के बारे में लड़की फैसले नहीं ले सकती। मां बाप चाहे तो भी नहीं ले सकते। वहां समाज बहुत प्रभावी होता है। उन्हें हर दिन सवालों के जबाव देने पड़ते हैं। लड़की को कब तक बिठा कर रखोगे, शादी क्यों नहीं हो रही, लड़की में कहीं खोट तो नहीं..ज्यादा उम्र हो गई तो कुंवारे लड़के मिलने मुश्किल है...जल्दी जो मिल रहा है कर दो। गांव-कस्बे के मध्यवर्ग में लड़की मैट्रिक पास करने के बाद से ही शादी के लायक हो जाती है। तभी से लडको पर नजर रखने लगते हैं लोग। आज भी ज्यादातर बीए पास करने से पहले लड़कियों की शादी हो जा रही है। एमए पास करने का मतलब लड़की का उम्रदराज हो जाना है। वहां तक पहुंचने का रिस्क मां बाप नहीं ले सकते। लड़के भले जिस उम्र में शादी करे। उनपर कोई हुकुम नहीं चलता। वे चाहे कितनी देर से शादी करें, उन्हें लड़की तो कमसिन-सी मिल ही जाएगी।
अब जिस समाज में लड़कियां अपनी शादी का फैसला नहीं कर सकती वहां बच्चा देर से पैदा करने के बारे में सोच भी कैसे सकती हैं। रहना उन्हें उसी समाज में है। महानगरों में लड़कियों का जीवन ज्यादा खुला और आजाद है। वे अपने लिए लड़-भिड़ लेती हैं। जब रहना हो कस्बे में तो कैसे लड़े-भिड़े। यहां कवि मित्र आलोक श्रीवास्तव की कविता की कुछ पंक्तियां सुनाती हूं..
इस समाज में / शोषण की बुनियाद पर टिके संबंध भी / प्रेम शब्द से अभिहित किए जाते हैं / एक स्त्री तैयार है मन-प्राण से / घर संभालने, खाना बनाने, कपड़ा धोने, और झाड़ू-बुहारु के लिए / मुस्तैद है पुरुष उसके भरण पोषण में.(कविता संग्रह-वेरा उन सपनो की कथा कहो)
यहीं पर स्त्रीमुक्ति की देवी सीमोन अपने एक इंटरव्यू में कहती हैं, जब पुरुष हमसे कहते हैं, एक अच्छी और सभ्य स्त्री बनने के रास्ते पर चलो। सारी भारी और कठिन चीजें जैसे ताकत, प्रतिष्ठा और कैरियर हमारे लिए छोड़ दो...तुम जैसी हो उसी में खुश रहो, पृथ्वी की लय में निमग्न, अपने मानवीय सरोकारों में तल्लीन....। दरअसल यह बहुत खतरनाक है।
हालांकि यह बहुत ही लंबे लेख और बहस का विषय है। इस पर फिर कभी। फिलहाल देर से शादी का मामला सामने है और इस पर पूरे समाज को गंभीरता से सोचने की जरुरत है। यह चेंज तभी संभव है जब अभिभावक लड़िकयों के बारे में वही रवैया रखें जैसे लड़को के बारे में रखते हैं। पहले लड़की के मन को टटोले और फिर उसकी नौकरी हो जाने तक का सपना देखें। फिर देखिए...
July 13, 2009 at 9:34 PM
देर से शादी करने की बजाय शादी जल्दी की जाय और गृहस्थ आश्रम से सन्यास भी जल्दी ले लिया जाय तो :)
July 13, 2009 at 10:27 PM
एसे मंत्रियों को माफ कर देना चाहिए क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वो क्या कह रहे हैं
July 13, 2009 at 10:44 PM
बहुत सही बात कही है आपने जिस समाज मे लडकी का कोई अस्तित्व ही नहीं--जन्म लेने का अधिकार भी नहीं वहां और क्या आशा की जा सकती है आभार्
July 13, 2009 at 11:28 PM
आपका लेख बहुत ही तथ्य पूर्ण एवं गम्भीर है । इस पर समाज के प्रत्येक व्यकित को सोचना पड़ेगा तभीं इसका निदान सम्भव है । अन्यथा........ ...... . . . . . .. . . .।
July 14, 2009 at 3:34 AM
कहीं शादी से पहले कौमार्य/गर्भ परीक्षण कराया जा रहा है। कोई देर से शादी करने की बात कर रहा है । अपने यहां के नेताओं को लालबुझक्क्डी उपाय ही हमेशा सूझते हैं ।
क्या तरकीब लगाई है जनसंख्या कम करने के लिये देर से शादी करो ।
दूसरे के ऊपर निर्भर रहने वाले चाहकर भी देर से शादी नहीं कर सकते, खासकर लडकियां
July 14, 2009 at 4:03 AM
आपका लेख बहुत अच्छा है ...मंत्रियों का क्या है भक्क से मुंह खोला और उगल दिया ...ज्यादा से ज्यादा बाद में अगर कुछ नाटक हुआ तो माफ़ी मांग लेंगे
July 14, 2009 at 5:03 AM
नेताओं को कुछ न कुछ बोलते रहना चाहिये, इसलिए बोल गये होंगे शायद. विचार करने की क्षमता तो उनमें होती नहीं.
July 14, 2009 at 7:27 AM
sahi kaha sare jatan mahilaon ke khilaf hi hote hain.
July 14, 2009 at 9:50 AM
गीता जी,
पहले भी आपको पढता रहा हूँ..और सच कहूँ तो आपकी लेखनी का कायल भी हूँ, सामयिक विषयों पर आपकी लेखनी क्या खूब चलती है..आज इस देश की सबसे बड़ी बदकिस्मती यही है की उसके केंदिर्य मंत्री ऐसा सोचते और बोलते हैं...आपने प्रश्न बिलकुल सटीक उठाये हैं..और मुझे नहीं लगता की अभी भी भारतीय समाज में इनका उत्तर देने लायक परिपक्वता आयी है...
आभार स्वीकार करें...मगर ..आप लोग सिर्फ लिखते हैं..दूसरों को पढ़ कर कुछ उनका भी तो मार्गदर्शन करें..बहसों का हिस्सा बनें..ब्लॉगजगत को इसकी जरूरत है...
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