गीताश्री
अब तक आपने पढा सीरिया की खुशहाली की गाथा। इस बार वो व्यथा जिसकी याद सीरियाई लोगों को उदास कर देती है। सीरिया की राजधानी दमिश्क से दो घंटे की दूरी पर बसा गोलान एक पठार है, जो सीरिया को जॉडर्न, लेबनान और इजरायल से जोड़ता है।
अब वहां सिर्फ सन्नाटा है। यह सन्नाटा टूटता है, प्रत्येक सप्ताह शुक्रवार को जब सीरिया में साप्ताहिक छुट्टी होती है। कुनेत्रा और गोलन के पुराने निवासी यहां अपने परिवार के साथ छुट्टी बिताने आते हैं। इस इलाके में ना अब झरने बचे हैं ना नदियां ना ही वह मकान जो कभी इनका था। अपने अस्तित्व की तलाश में नई पीढ़ी के साथ पूरा परिवार पिकनिक इस उजाड़ में आखिर कैसे मनाता है। आस-पास के कई गांव मलबों में बदल चुके हैं। टूटे मकानों के साए में सीरियाई परिवार पिकनिक के बहाने खुद को इस अहसास से मुक्त नहीं होने देते कि यह जमीन कभी उसकी थी। तबाह हो चुकी जमीन पर बैठकर पुराने लोग नई पीढ़ी के बच्चों को बताते हैं कि उनके साथ क्या हादसा हुआ था और इस्राइल ने उन्हें कैसे तबाह कर दिया। उन्हें इस बात की भी उम्मीद है कि एक न एक दिन उनकी जमीन उन्हें वापस मिल जाएगी। गांव फिर से गुलजार हो जाएंगे।
इन दिनों वहां पूरे इलाके में यूएन के तकरीबन 12 हजार सैनिक तैनात हैं, जिनमें भारत, ऑस्ट्रिया, रुस, जापान और चेक सैनिक प्रमुख है। गौरतलब है कि 1967 में इजरायल ने सीरिया के बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था, लेकिन 1973 के युद्व में सीरिया ने इसका कुछ हिस्सा वापस ले लिया था। वापस लिए हिस्से में गोलान की कुनेत्रा भी शामिल थी। इजरायलियों ने कुनेत्रा को खाली तो कर दिया, लेकिन जाते-जाते वह इस पूरे शहर को तहस नहस कर गए।
तबाही के निशान वहां अब भी मौजूद हैं। देखकर आप सिहर उठेंगे। उस पीढी की कल्पना कर सकेंगे जिसने इस मंजर को देखा और भोगा होगा। उस वीराने में घूमते हुए कुछ लोग मिले..कुछ स्थानीय महिलाएं भी।
टूटे और ध्वस्त घरों के बीच रहना और जीना दर्दनाक तो है मगर यहां अपनी जमीन का आनंद भी है। 53 वर्षीय सईदा की अधेड़ आंखें अपनी जमीन के बारे में बात करते हुए चमकने लगती है। सईदा उन औरतों में से है जो इस्राइल के कब्जे वाले सीरियाई इलाके से बच-बचाकर अपने वतन लौट आई है। कुछ परिवारों के साथ अब भी वह गोलन हाईट्स के पास ही एक गांव में रहती है। चंद परिवार ही वहां किसी तरह रहने की हिम्मत जुटा पाए हैं। बाकी वहां से उजड़ गए हैं।
1973 में इस्राइली हमले ने पूरा इलाका तबाह कर दिया। कुछ गांव तो मिट्टी में मिल गए और कुछ गांव के लोग हमले और कब्जे के डर से घर बार छोड़ दिया। वे फिर कभी नहीं लौटे। वे कभी आते भी हैं तो मेहमान की तरह, बस आंख भर अपनी जमीन को देखने और आह भरने के लिए।
ध्वस्त मकानों से अभी तक बारूद की गंध गई नहीं है। गोलन क्षेत्र के पब्लिक रिलेशन डायरेक्टर मोहम्मद अली इसी इलाके के रहने वाले हैं। उन्हें अपने समय की बस इतनी याद है कि उनके गांव के आकाश में दिनभर लड़ाकू हवाई जहाज मंडराते रहते थे और रह-रहकर गोलियो और बमों के धमाके सुनाई देते थे। अपनी तरफ से पूरा इलाका तबाह कर जब लड़ाकू विमान चले गए तब जो सौभाग्यशाली लोग बचे, उन्होंने अपने बच्चों के साथ घर छोड़ दिया और दमिश्क या दूसरे ठिकानों पर चले गए।
कुनेत्रा के सरकारी अस्पताल की ध्वस्त इमारत आज भी बर्बरता की कहानी बताती है। दीवारों पर गोलियों और बमों के हमले के निशान अब भी मौजूद हैं। सीरिया सरकार ने ध्वस्त मलबों को इतने वर्षों में हाथ तक नहीं लगाया। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार तबाह हुए गांवों में से 11 गांव को दुबारा बसाया जा चुका है। पांच गांव अब तक बचे हैं। इनके पुर्नवास के लिए सीरियाई सरकार ने प्लान तैयार कर लिया है। सूत्र बताते हैं कि ये प्लान ही रहेगा। जल्दी बसाने का कोई इरादा नहीं। क्योंकि सीरिया सरकार दुनिया को तबाही का ये भयावह मंजर दिखाना चाहती है। जब तक अपनी जमीन को इजरायल के कब्जे से वापस नहीं ले लेते तब तक कुछ गांव वैसे ही मलबा बने रहेंगे जो उनके जख्मों की याद दिलाते रहेंगे।
एक उदास इतिहास
जैसे ही आप नेट पर सीरिया के गोलन पेज को खोलेंगे...स्लाइड शो ऊपर ही चलता दिखाई देगा...जादुई प्रकृति, मॉडरेटर वेदर, संर्घषरत लोग, एक उदास इतिहास...हमारा घर गोलन।
गोलन का उदास इतिहास की कहानी बहुत दर्दनाक है। नुकीले तारों के बाड़ों की एक लंबी श्रृंखला के बीच लोहे के मजबूत दरवाजों के खुलने पर शुरुआत होती है, एक नई दुनिया की, नई जिंदगी की। इस जिंदगी में आंसू और मुस्कान के साथ-साथ अपनों से बिछुड़ने का गम है तो नई जिंदगी और रिश्तों को शुरू करने का रोमांच भी। सेना व पुलिसवालों के सपाट चेहरों और चौकन्नी निगाहों के साए में आंसू और हंसी के ऐसे फूल तब खिलते हैं, जब कोई दुल्हन शादी के बाद इस दरवाजे से गुजरती है, जब कोई बच्चा पढने या युवा रोजी-रोटी की तलाश में घर से निकलता है। धरती के एक खूबसूरत टुकड़े अल छाआल, जिसे आज पूरी दुनिया गोलान के नाम से जानती है। 1866 वर्ग किमी में फैले इस सीरियाई इलाके के एक बड़े हिस्से पर इजरायल का कब्जा है, जो आज इजरायल अधिकृत गोलान के नाम से जाना जाता है।
इजरायल अधिकृत गोलान में यूं तो 244 गांव आते हैं, लेकिन पांच गांव ऐसे हैं, जिनमें सीरियाई नागरिक रहते हैं। इन पांच गांवों में रहने वाले 30 हजार द्रूज मुस्लिमों के लिए जिंदगी मुश्किलों का एक पहाड़ बन चुकी है। तार के बाड़ों से घिरे ये गांव वाले लगातार मौत, मुश्किलों, यातनाओं और शोषण का शिकार हो रहे हैं। इन गांव में रहने वाले बच्चों और युवाओं के लिए न तो शिक्षा और ना ही स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं हैं। इन्हें पड़ने और रोजी रोटी कमाने के लिए अपने वतन सीरिया का मुंह देखना पड़ता है। यूएन शांति सेना और इजरायली सुरक्षा के बीच इनका सीरिया आना-जाना अपने आप में एक दुरुह प्रक्रिया होती है। पढ-लिख कर लौटे इन युवकों के पास जहां खेती के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं हैं, वहीं इन गांवों में आज तमाम विवाह योग्य कन्याएं बेहतर जीवन साथी की तलाश में कुंवारा जीवन जीने को विवश हैं।
मोहम्मद अली के अनुसार, इजराइल इन सीरियाई लोगों को दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह देखता है। उनकी कोशिश है कि सीरिर्याइ लोग या तो यहां से वापस चले जाएं या फिर इजरायली नागरिकता स्वीकार कर लें; लेकिन गांव वालों ने इनकार कर दिया। मोहम्मद अली बताते हैं कि इजरायल ने सीरियाई लोगो को एक तरह से नजरबंद कर रखा है। वे उन पर भारी भरकम टैक्स थोपते हैं। कब्जे में एक गांव है जिसका नाम है, अलगजब, वहां हर घर के बाहर एक इजरायली सैनिक पहरा देता है। इसका कारण सीरियाई सरकार को समझ में नहीं आता। अली बताते हैं कि सीरिया में पांच तरह की नागरिकता है, जापानी, पोलिश, इंडियन, स्लोवाक, आस्ट्रेलिया। फिर इजरायल अपनी नागरिकता थोपने की कोशिश क्यों कर रहा है?
शाउटिंग वैली
इस इलाके का सबसे बड़ा गांव है मजदल षम्स, जहां आर-पार जाने वाला गेट बना है। दोनों ओर एक उंचा जगह बनी है, जहां पर खड़े होकर दोनों तरफ के लोग लाउडस्पीकर के जरिए खास मौके पर आपस में बातचीत करते है। चिल्ला-चिल्ला कर बात करने के कारण ही इस पॉइंट का नाम शाउटिंग वैली पड़ गया है। यह वैली सीरिया और इजराइल को बांटने वाली 74 किमी लंबी एक सड़क के दोनों स्थित है, जो दोनो ओर नोमेंस लैंड का भी काम करती है। इसी नोमेंस लैंड के पास रहने वाले एक सीरियाई गांव वाले के अनुसार जमीन के इस बंटवारे ने मां और बच्चों और भई बहनों तक को जुदा कर दिया। इसी शाउटिंग वैली पर बेटों के लिए तड़पती और चिल्लाती कई मांएं अपनी जिंदगी से हार बैठीं।
May 14, 2009 at 10:31 PM
अच्छी जानकारी मिली
यह भी पता चला है कि
रविवार कहीं कहीं पर
होता है शुक्रवार को।
May 15, 2009 at 12:56 AM
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है...शुक्रिया आपका...बहुत से अनछुए पहलु सामने आये...
खुदा ऐ बरकत तेरी ज़मीं पर, ज़मीं की खातिर ये जंग क्यूँ है....(साहिर)
नीरज
May 15, 2009 at 4:00 AM
सीरिया के गोलन शहर की मार्मिक जानकारी देने के लिए आपको शुक्रिया
युद्द्ग किस तरह नष्ट करता है सबको .... घर रिश्ते ज़मीं इंसान सब कुछ ... प्रकृति ज़रूर रोटी होगी हमारे ढंग देख कर.
May 16, 2009 at 5:51 AM
इस्राइली पड़ोस की समूची कहानी ही दुखदायी है.
May 17, 2009 at 10:13 AM
आपकी भाषा में जबरदस्त रवानगी है । फैन तो मैं पहले से था आपका लेकिन अब तो आपके लेखन का दीवाना हूं । सीरिया की आपकी सीरीज बेहतरीन है । रश्क होता है आपकी भाषा से
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