किस कदर उलझे रहते हैं वे
एक-दूसरे में,
किस कदर तेज चलती हैं उनकी सांसें
किस कदर बेफिक्र हैं वे दुनिया के हर खौफ से
किस कदर बेफिक्र हैं वे दुनिया के हर खौफ से
कि दुनिया को उनसे ही लगने लगा है डर,
कि उन पर ही लगी हैं सबकी निगाहें
कि उन पर ही लगी हैं सबकी निगाहें
वे कोई आतंकवादी नहीं,
न ही सभ्यताओं के हैं दुश्मन
न ही उनके दिमाग में है कोई षडयंत्र
फिर भी दुनिया को लग रहा उनसे डर.
पंचायतों की हिल गई हैं चूलें
पंचायतों की हिल गई हैं चूलें
पसीने आ रहे हैं समाज के मसीहाओं के
कैसे रोकें वे उन दोनों को
कैसे उलझायें उन्हें दूसरे कामों में
कि उनकी दिशायें ही बदल जायें
कौन से जारी किये जाएं फरमान
कौन से जारी किये जाएं फरमान
कि खत्म हो सके उनका प्रेम
कितने खतरनाक हैं
वे इस दुनिया के लिए, सचमुच?
प्रतिभा कटियार
May 13, 2009 at 10:40 AM
किस कदर उलझे रहते हैं वे
एक-दूसरे में,
किस कदर तेज चलती हैं उनकी सांसें
किस कदर बेफिक्र हैं वे दुनिया के हर खौफ से
कि दुनिया को उनसे ही लगने लगा है डर,
कि उन पर ही लगी हैं सबकी निगाहें
बहुत सुन्दर * * * *
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
May 13, 2009 at 2:14 PM
बहुत उम्दा रचना! आभार प्रस्तुत करने का.
May 14, 2009 at 1:25 AM
sundar kavita hai. Sachmuch aaj ke daur ki sachchai hai ye.
May 14, 2009 at 2:49 AM
हर दिल में इश्क जवां रहता है
हर दिल जमकर धड़कता है
दीवाने तो दीवाने ही होते हैं
विरोधी भी दीवाने होते हैं
आप ही बताइए इसे क्या कहें
ये दीवाने ही दीवानों का विरोध करते हैं
May 14, 2009 at 8:47 AM
न ही उनके दिमाग में है कोई षडयंत्र
इस लाइन में न छूट गया है, कृप्या जोड़ लें गीता जी. शुक्रिया नुक्कड़ में शामिल करने के लिए.
प्रतिभा
May 15, 2009 at 10:16 AM
कितना सच है ! ये आज की वो हर एक जोड़ी समझ सकती हैं जिन्हें हजारों आँखें सिर्फ इसलिए घूरती हैं क्योंकि वो साथ होते है.
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