या हबीबी की तलाश में

Posted By Geetashree On 5:25 AM

सच कहते हैं बड़े बजुर्ग कि अगर किसी देश की संस्कृति और सभ्यता को समझना हो तो वहां की औरतो की स्थिति को जानो. सीरियाई औरतों के देखने के बाद यह यकीन हो गया. परंपरा और आधुनिकता का ऐसा मेल कहीं और नहीं देखा. आधी-आधी रात तक बेखौफ घूमती लड़कियां हुक्के के नशे में झूमती हुई सर्र से गुजर जाती हैं.

सीरियाई लड़कियों से मिलने के बाद देर तक उनकी कजरारी आंखें आपके जेहन में धंसी रहती हैं. काजल प्रेमी सीरियाई लड़कियों के बारे में वहां खूब मजाक चलते हैं. गोरे गोरे चेहरे पर काजल की गहरी रेखाएं बाकी सारे ऐब को ढंक देती हैं. शायद इसी लिए वे बिना काजल लगाएं बाथरुम तक नहीं जाती. हमारी सीरियल की नायिकाओं जिस तरह मेकअप और गहने से लदी रहती हैं, वैसे ही सीरियन लड़कियां अपनी आंखों के सौंदर्य और उनकी मारक क्षमता के प्रति बहुत सजग रहती हैं. 

कजरारी आंखों के कहर के बारे में दमिश्क के सबसे बड़े धार्मिक नेता जिन्हें मुफ्ती कहा जाता है का एक कथन बहुत दिलचस्प है. भारतीय महिला पत्रकारों से मुलाकात में वे बहुत मस्ती से भरे दिखाई दिए. उनका कथन सुनिए और आनंद उठाइए-हमारी मदर ईव ने भी आदम को अपनी आंखों से मारा था. इसीलिए हम अपनी महिलाओं से गुजारिश करते हैं, आप लोग काजल और मस्करे का इस्तेमाल कम करिए और पुरुषों को मारना बंद करिए. 

यहां एक गाना याद आ रहा है...नैन लड़ जइहें त मनवा मा कसक होइबे करी..., हर मौके पर एक गाना याद आ जाने पर हमारी मित्र सुहासिनी हैदर बहुत दिलचस्प तरीके से रिएक्ट करती थीं. चीन यात्रा के दौरान जब भी कोई बात हो मैं एक गाना पेश कर दूं वह ठठा कर हंस पड़े. कभी कोई दिलचस्प बात कहके कई बार सुहासिनी मेरी तरफ देखती और कहती इस पर एक गाना हो जाए. बाद में यह मजाक के तौर पर चल पड़ा है. मेरी याद उसे कोई ना कोई गाना याद दिला देती है. क्या करें. दुनिया गुनगुना रही है हमारे गाने. खैर... 

फिलहाल सीरियन लड़कियों के बारे में कई कई गाने याद आ रहे हैं. किनका किनका जिक्र करुं. गोरी चिट्टी छरहरी, सजी संवरी, फैशनपरस्त लड़कियां इत्र की खूशबू और मुस्कान बिखेरती जब पास से गुजरती हैं तो अंदाजा हो जाता है कि कहीं किसी की शामत आई है या 'या हबीबी' की तलाश जारी है. 

इतनी उन्मुक्तता कि खुले कैफे में बैठी लड़कियों का झुंड ठाठ से हुक्का पी रहा होता है और मस्ती के तराने गा रहा होता है. किसी की फिक्र नहीं, कौन देख रहा है या सुन रहा है. नैतिक पुलिस जैसी कोई शय नहीं यहां. हुक्का उनकी संस्कृति का अंग है इसीलिए ऐसा नजारा आम है. हुई शाम उनका ख्याल आ गया..की तर्ज पर शाम होते ही कैफे में लड़को की तर्ज पर लड़कियों की भीड़ जुटने लगती है, चाय की प्याली से उठती गर्म भाप के साथ हुक्के का धुंआ बतकहियों के बीच खो जाता है. यहां परदानशीं लड़कियां भी बेखौफ-खुलेआम हुक्का पीती रहती हैं, अपने पार्टनर के हाथों में हाथ डाल कर देर रात तक घूमती रहती हैं. काले स्कार्फ में कसा माथा और गोरा चेहरा जब धुंआ उगलता है तो सोचिए क्या नजारा बनता होगा. चांद जैसे धुंए से घिरा हो. हंसी तो जैसे होठो पर बिजली की तरह खेलती रहती है. 

एलेप्पो शहर में किले की सीढियां चढते उतरते मस्त लड़कियों का एक ग्रुप मिला. साथ में मेरी मित्र मंजरी थीं. उसने बिंदी लगा रखी थी. लड़कियां अचानक पलटी और अरबी-इंगलिश मिक्स भाषा में पूछने लगीं, ये क्या है? मैंने बताया--ये साइन है कि आप गॉड से ब्लेसड हैं. मैं जानबूझ कर बिंदी को सुहाग से नहीं जोड़ा. वैसे भी बिंदी अब फैशन स्टेटमेंट हो गई है. मंजरी ने साफ बता दिया, ये सुहाग की निशानी है और शादीशुदा औरतें लगाती हैं. पता नहीं उनकी समझ में अंग्रेजी कितनी आई, लड़कियों में बिंदी लगाने की होड़ मच गई. समूह में सिर्फ एक लड़की काली स्कार्फ (सीरियन लड़कियों को काले रंग से बहुत मोहब्बत है) पहने थी. उसने मना कर दिया. फिर कहा गया-लगा लो, उसने बहुत गंभीर होकर कहा-नो, थैंक्स, हमारे यहां अलाउड नहीं है. 

ये लड़की उस वर्ग से आती है जो अभी भी अपनी पंरपरा को ढो रहा है. सीरिया का एक पारंपरिक वर्ग ऐसा है जहां परदा प्रथा अभी तक है. कुछ तबके की महिलाएं बुर्का भी पहनती हैं, कुछ सिर्फ स्कार्फ लगाती हैं. एक स्कार्फ वाली महिला ने हमें बताया कैसे उसके प्रेमी से दो साल बाद जब उसकी शादी हुई तब पहली बार प्रेमी-शौहर ने प्रेमिका-पत्नी की खुली जुल्फे देखीं. जब पहली बार देखा होगा काली जुल्फों को तब उसके शौहर को कैसा लगा होगा? वह बताती है, पहले तो वह इतने घने और रेशमी बालों को देख कर सन्न रह गया, फिर आहें भरीं...और करता भी क्या. कभी कहने का साहस ही जुटा पाया कि स्कार्फ उतारो. वह उसकी काली काली आंखों में ही तमाम सौंर्दय तलाशता रहा होगा. दो साल के प्रेम-संबंध में कभी वह अपना स्कार्फ उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. यह बताते हुए उसकी आंखें थोड़े अफसोस से भरी थीं. यह इनके समाज की तरफ से थोपी गई पाबंदी थी ना कि सरकार की तरफ से. यहां ईरान जैसा सलूक नहीं होता. आपकी मर्जी है, परदा मानो या ना मानो.  

या हबीबीः ओ मेरे प्रेम

Pratibha Katiyar
April 23, 2009 at 6:29 AM

बढिय़ा लेख है गीता जी. इसके कई डयमेंशंस हमारे यहां भी जुड़ते हैं. कितनी ही महिलाएं, लड़कियां सारी बंदिशों से पार हो रही हैं और वहीं कुछ अब तक बंदिशों में कैद हैं. नहीं क्या? कई तो पार होने की कोशिश के बावजूद कैद हैं. धुआं उगलते चांद वाली बात मजेदार है.

P.N. Subramanian
April 23, 2009 at 6:43 AM

पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा. गनीमत है की अभी भी ऐसा एक इस्लामी देश है जहाँ तालिबानी नहीं पहुँच पाए हैं.

Udan Tashtari
April 23, 2009 at 6:54 AM

आभार इतनी जानकारी का. अब तक सिर्फ सुना पढ़ा है ..कभी जाने का मौका नहीं हुआ.

Pankaj Narayan
April 25, 2009 at 4:33 AM

बशीर बद्र ने एक शेर कहा है-

चिरागों को आंखों में महफूज रखना,
अभी दूर तक रात ही रात होगी।
मुसाफिर हैं हम भी, मुसाफिर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी।

थोड़ रीमिक्स करके कहता हूं-

यादों को पोस्ट में महफूज रखना,
अभी दूर तक बात ही बात होगी।
ब्लॉगर हैं हम भी, ब्लॉंगर हो तुम भी
अगले पोस्ट में फिर मुलाकात होगी।

पंकज नारायण

Nirmal Vaid
April 25, 2009 at 6:31 AM

गीता, कमाल लिखती हो। सीरिया को शब्दों में देखना अच्छा लगा। काजल वाला प्रसंग मजेदार है। अब सीरिया जाने की इच्छा हो रही है। आपके लेखों से पर्यटन को बढ़वा मिलेगा।
निर्मल वैद

सुशीला पुरी
April 25, 2009 at 8:09 AM

kash INDIA me aisa ho pata ,HAVIVI ki tlash to har jagah chalti hai par aankhon ka kajal jab tak mardo ko ham se khatra dilata rahega tab tak baat bnegi nahi..........

amitabh agnihotri
April 26, 2009 at 7:57 AM

geetaji,aapke lekhan me shavdo ka jharna bahta hai,jo budhi ke saath saath man ko bhi bhigota hai... badhai...

अनंत विजय
April 30, 2009 at 6:05 AM

अब तो लगता है सीरिया जाना ही पड़ेगा ।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'
April 30, 2009 at 6:34 AM

पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा|सीरिया को शब्दों में देखना अच्छा लगा।
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।आप मेरे ब्लाग
पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।

सुशीला पुरी
May 1, 2009 at 12:42 PM

गीता जी बहुत - बहुत धन्यवाद, आप मेरे ब्लॉग पर गयीं और मेरी रचना की तारीफ़ की .

gurmit bedi
May 1, 2009 at 10:02 PM

AAPKE BLOG SE GUJARKAR MEIN SYRIA GHOOM AAYA. AAPKI KALAM KO NAMAN.

YEH JANKAR SUKHAD LAGA KI SYRIA MEIN ISLAM KI BANDHISOO NE MAHILAYOON KE PAIRONN MEIN JANJEEREIN NAHI DAAL RAKHI OR NA HI WAHAN KA SAMAJ KATHMULLAPAN SE GRAST HAI.

GURMIT BEDI