ओम निश्चल
गीताश्री हिंदी पत्रकारिता में एक सुपरिचित नाम है। एक अरसे से पत्रकारिता से जुड़ कर उन्होंने परतंत्रता में जकड़ी स्त्री और मुक्ति के स्वप्न देखती स्त्रियों की मनोभूमि की बारीक पड़ताल की है। बिहार के एक कस्बे में पैदा गीताश्री ने बचपन से ही अपनी शख्सियत को समाज के चालू ढर्रे की स्त्रियों से अलग करने का निश्चय कर लिया था। बचपन में अकेली स्त्री के जीवनावलोकन और स्त्रियों पर पुरुष वर्चस्व के तमाम उदाहरणों से उनके भीतर की स्त्री का तेवर विद्रोही बनता गया। फलत: दिल्ली आकर और पत्रकारिता के पेशे से जुड़ कर वे स्त्री समस्याओं-वर्जनाओं को भूल नहीं गयीं बल्कि स्त्री-विमर्श की आबोहवा को अपने ढंग से परिचालित किया। मूलत: भीतरी संवेगों से कवयित्री गीताश्री की पकड़ समाज, राजनीति, साहित्य, कला, संस्कृति, सिनेमा सभी पर है किन्तु स्त्री जगत उनका प्रिय विषय है।
स्त्री आकांक्षा के मानचित्र समय-समय पर प्रकाशित उनके लेखों, अध्ययनों और फीचर का संचयन है जिसमें अपने अस्तित्व और सम्मान की रक्षा के लिए निरंतर संर्षरत स्त्री का नया चेहरा उजागर होता है। गीताश्री स्त्रियों को किसी दैन्य के प्रतीक के रूप में चित्रित न कर पुरुष वर्चस्व की जड़ीभूत मानसिकता पर प्रहार करती है। अपने समकालीनों के बीच उनकी पहचान इसलिए ज्यादा है कि वे अपने विश्लेषणों में क्लासिकी तेवर नहीं अपनातीं बल्कि आम फहम भाषा में सीधे मुद्दे पर बात करती हैं।
स्त्री-विमर्श के लटकों-झटकों में प्राय: आयातित विचारों का बोलबाला रहा है। जर्मन ग्रियर, वर्जीनिया वुल्फ, और सीमान द बोउआ जैसी स्त्रीवादी लेखिकाओं के विचारों की रोशनी में भारतीय स्त्रियों की नियति का भविष्यफल बांचा जा रहा है। गीताश्री खबरों की दुनिया की स्त्री हैं, इसलिए दुनिया भर के स्त्री आंदोलनों और स्त्रीवादी साहित्य से अपरिचित नहीं हैं लेकिन वे पत्रकारिता की सुलझी भाषा में स्त्री-विमर्श के मुद्दे उठाती रही हैं, जिससे आधी आबादी उन्हें पूरी तरह आत्मसात कर सके।
गीताश्री की इस पुस्तक में कुल 31 लेख हैं। मुक्ति की छटपटाहट, बौद्धिक स्त्री की बेकदरी, अहम फैसलों में स्त्री की भागीदारी, राजनैतिक वजूद, भ्रूण हत्या, तलाक, वेश्यावृत्ति, स्त्री देह के विपणन, घरेलू हिंसा, प्रौढ़ स्त्रियों की पीड़ा, पंचायतों में स्त्री, लेस्बियन संबंधों, देह और दिल के रिश्ते, औरत का घर, ईरान में स्त्री, टेलीफोन चैटिंग, स्त्री-स्वास्थ्य, पुरुष और स्त्री की चाहत तथा छोटे परदे पर स्त्री--इतने सारे विषयों पर सरल और छू लेने वाली भाषा में गीताश्री ने इन्हें स्त्री विषयक वृत्तांत में बदल दिया है। गीताश्री साहित्यिकों की आखेटक वृत्ति का भी जायजा समय-समय पर लेती रही हैं। उठो कवियों कि नई कवयित्री आई है ऐसा ही वृत्तांत है जिसमें आज के कुछ साहित्यकारों के तथाकथित चारित्रिक विचलन की झांकी मिलती है। साहित्य की दुनिया में जिस तरह स्त्रियों की प्रतिमा को खराद कर उन्हें कवयित्री और कथाकार बनाने के उद्यम में आज कुछ कवि-कथाकार-आलोचक लगे हुए हैं, गीताश्री ऐसे समस्त गोपनीय और अलक्षित अभियानों की खबर लेती हैं।
सच कहा जाए तो इन लेखों में स्त्री सुबोधिनी के मूल मंत्र छिपे हैं। गगन गिल ने अपने कविता संग्रह का नाम रखा था: यह आकांक्षा समय नहीं । अनामिका की पुस्तक का शीर्षक था: स्त्रीत्व का मानचित्र । किन्तु इससे दो कदम आगे बढ़ कर गीताश्री ने स्त्री आकांक्षा का एक नक्शा उकेरना चाहा है तथा कहना न होगा कि वे इसमें कामयाब रही हैं। हालाकि कुछ आलेखों पर फौरी पत्रकारिता की स्टोरी-शैली का खासा असर है। फिर भी व्यापक पाठक संसार तक पहुंच बनाने के लिए आज ऐसी ही स्टोरीज की आवश्यकता है जिसके लिए कोश की शरण में न जाना पड़े। एक बात जो थोड़ा अखरने वाली है वह यही कि वे स्त्रियों को जहां निहायत मासूम और गुड़िया समझती हैं, पुरुष की चरित्रपंजी पर सदैव संदेह की कुहनी टिकाए रखती हैं।
गीताश्री की भाषा में वाचिक असर है, कहीं-कहीं वे बिन्दास शैली में अपने आलेख की शुरुआत करती हैं किन्तु जब तथ्यात्मकता, विश्लेषण और जिरह की कसौटी पर अपने तर्क रखती हैं तो उनकी खिलंदड़ी छवि ओझल हो उठती है और वे एक धीर-गंभीर स्त्री चिंतक में बदल जाती हैं। गीताश्री की यह पुस्तक पढ़ते हुए अनायास हमारे जेहन में सुपरिचित कवि ऋतुराज की ये पंक्तियां कौंध उठती हैं--
मां ने कहा पानी में झांक कर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियां सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री-जीवन के
मां ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना
(लीला मुखारविंद/कन्यादान)
गीताश्री
प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन, जटवाड़ा
नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य : 200
----------------------------------------------------------
ई-मेल : omnishchal@gmail.com / omnishchal@yahoo.co.in
मो : 09955774115
साभार- http://shabdsrijan.blogspot.com/
July 10, 2008 at 6:47 PM
इसे सिर्फ़ बेहतरीन कहूँ या बेहतरीन समिक्षा..आप तय कर लेना..ओके.
July 24, 2008 at 8:31 PM
Geeta sree ka lekhan hamesha hi achha hota hai.aage aur bhee badhia likhe.subhkamna.
July 24, 2008 at 8:31 PM
Geeta sree ka lekhan hamesha hi achha hota hai.aage aur bhee badhia likhe.subhkamna.
July 30, 2008 at 10:32 AM
गीताश्री जी ब्लॉगों की दुनिया में आपका स्वागत है। बधाई एवं शुभकामनाएं।
Post a Comment