सभ्यता की पुर्नखोज में
अर्चना के चित्र
-गीताश्री
समकालीन चितेरी अर्चना
सिन्हा के चित्रों से इसी काल में गुजरी हूं। बड़ा गुमान था कि कला पर लिखती हूं
और कलाकारो को जानती हूं। पिछले 25 वर्षों से चित्रकारी कर रही अर्चना के चित्रों
को कैसे न देख पाई थी। वो छुपी थीं या मैं बेपरवाह थी। दोनों के कदमों में
हिचकिचाहट थी। नाम से जानते थे, काम से नहीं। जब काम यानी कला पास आती है तब काल भूल
जाते हैं। मैं काल लांघ कर चित्र-यात्रा कर रही हूं।
बरसात की सिंदूरी सांझ में
मैं अर्चना के सिंदूरी चित्रों से गुजर रही हूं...और हरेक शय पर उसकी छाप पड़ती जा
रही है।
छाप से याद आया...अर्चना “छापा कला” की कलाकार थीं। सालो तक
छापा कला में खूब काम किया, अपना मुकाम हासिल किया, फिर पिछले एक दशक से पेंटिंग
की तरफ मुड़ी और तो साथ लाई सिंदूरी रंग। ब्याहता स्त्रियों की पहचान का रंग। उनकी मांग
से होते हुए सिंदूर कैनवस पर उपस्थित हो गया, एक पावरफुल प्रतीक के रुप में।
छापा कला से बहुत से लोग
परिचित होंगे। भारत में पुर्तगीज मिशनरियों के लकड़ी के प्रिंटिंग प्रेस के साथ यह
कला आई और ब्रिटिश काल में छा गई। भारतीय कलाकारों ने इस माध्यम की संभावनाओं को
पहचान कर इसे अपनाया और इससे बड़े बड़े कलाकार जुड़े। आर एन चक्रवर्ती, नन्दलाल
बोस, सोमनाथ होर, विनोदबिहारी मुखर्जी, हरेन दास जैसे बड़े नामी कलाकारो के छापा
चित्रों ने कला जगत में धूम मचाई। चितेरी अर्चना उसी परंपरा से जुड़ी थीं। छापा
कला में सहजता है, जो संप्रेषणीयता है, वो उन्हें आकर्षित करती होगी।
आज बात करेंगे उनकी
पेंटिंग्स की। गौर से देखिएगा-
रंग और रुपाकार बहुत कुछ
कहते हैं। मूर्तिकार मृणालिनी मुखर्जी अपने चित्रों के बारे में कहती थीं- “ये मेरे निजी देवता हैं।“
अर्चना की पेंटिंग्स भी
उनके निजी देवता की तरह दिखाई देते हैं जिनके लिए वे मंत्रों का पाठ करती दिखाई देती
हैं। जिनके लिए वे भारतीय वांग्मय से मंत्रों की खोज करती हैं। चित्रों में सिंदूर
को लेकर अनेक प्रयोग किए हैं और चितेरी को भारतीय मिथको में गहरी आस्था दिखाई देती
है। जो अपने लोक में गहरे धंसा हो वो जीवन भर अपनी कला में उसकी पुनर्खोज करता है
या नये सिरे से अविष्कार भी करता है। कैनवस पर मंत्रों की लिपियां हैं। उसके
पारंपरिक रंग हैं। छापा कला में भी वे अपने लोक को चित्रित करती थीं, यहां वे
थोड़ा आगे बढ़ कर मंत्रों तक जा पहुंचती हैं। उनकी ताकत पहचानने की कोशिश करती
हैं। हो सकता है चित्रकार का मंत्रों पर गहरी आस्था हो।
इतने बड़े आर्थिक, सामाजिक
संघर्षों और दबावों के बावजूद यदि कुछ चीजें जिंदा हैं तो यही उसकी शक्ति है। उसी
शक्ति की शिनाख्त करती हैं अर्चना।
एक स्त्री जब पेंट करती है
तब वह दुनिया को अपने रंग में रंग देना चाहती है। दुनिया का रंग-रुप अपने हिसाब
से, अपनी स्वैर कल्पना सरीखा कर देना चाहती है। इनके चित्रों में उस फंतासी को
देखा जा सकता है जो मंत्रों की ताकत को खोजने से मिलती है।
मंत्रों पर विश्वास-अविश्वास
के वाबजूद भारतीय चेतना में , एक बड़े वर्ग में इसकी मौजूदगी देखी जा सकती है। सिंदूरी
रंग उसी चेतना से निकला हुआ रंग है। यहां एक स्त्री चित्रकार को महसूस कर सकते हैं
जो अपने परिवेश से रंग उठा लेती है। ये अनुभव का आवेग है, जिसे दबाया नहीं जा सकता।
और अनुभव का आवेग दर्ज होकर रहता है, उसमें झिझक नहीं होती।
अर्चना नालंदा जिले के अपने
गांव “सरमेरा “ से चली थीं, पटना की ओर, शहर में बस गईं मगर गांव छूटा नहीं। उनकी चेतना में गांव बसा
रहा, आज तक बसा हुआ है, अपनी विभिन्न छवियों के साथ। छापा कला में भी गांव चित्रित
होता रहा। एक गंवई लड़की भला कैसे छोड़ सकती है, झुग्गी, झोपड़ी, खेत-खलिहान । अपनी
चित्र-भाषा में तलाशती रही गांव। रचती रही वे घर, कच्चे पक्के, धूल भरी
पगंडंडियां, जिन्हें पीछे छोड़ आई थी।
भूगोल विषय में अच्छे नंबर
लाने वाली अर्चना को गांव का भूगोल कभी भूलता नहीं। बचपन से पढ़ने में मन न लगे।
मन तो रमता था दृश्यों को रचने में। जो दृश्य देखें उनकी छाप दिल दिमाग पर छप जाए।
बाकी सारे विषय उन्हें अरुचिकर लगते थे। अमृता शेरगिल से प्रभावित अर्चना उन्हीं
की तरह अपने परिवेश को चित्रित करना चाहती थी। उसकी चिंताओं से, सरोकारो से कभी
दूर नहीं जा पाईं।
गांव की स्मृतियों से निकल
कर वे भारतीय मिथको की ओर रुख करती हैं, मंत्रों की ताकत को सिंदूरी रंगों की आभा
में ढूंढती हैं। अमूर्तन में एक निरंतर खोज और स्मृतियों का झोंका है यहां।
अर्चना की एक पेंटिग देखते
हुए मुझे प्रसिद्ध चित्रकार जे. स्वामीनाथन का एक कथन याद आता है- “नयी कला की सबसे बड़ी जरुरत
यह है कि कलाकार , कैनवस के सम्मुख उस तरह खड़ा हो, जैसे कि आर्य लोग प्रात:कालीन सूर्य के सामने खड़े
होते थे।“
एक चित्र में धुंधली-सी
आकृति (सेमी आब्सट्रैक्ट) सूर्य के सामने वैसे ही खड़ी है। अर्चना इस सीरीज के
चित्रों में आर्य सभ्यता के रहस्यों को खंगालती हैं।
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-गीताश्री
October 30, 2021 at 11:01 PM
Nice post, thanks for sharing, Free me Download krein: Mahadev Photo
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