हर कहानी के बाद,
खाली पड़े हिस्से में,
रक्तबीज के वेश में सवाल रक्तपात मचाते हैं,
कहीं कोई अपने कपड़े ठीक कर रही होती है,
तो कोई जीतने का भ्रम पाल,
अपनी मुंछों पर ताव देता है,
कुछ रुदालियां रोती हैं,
कुछ लाशें जमीन पर बीती रात का सच बताती हैं।
अखबारों के पन्नों में भी कभी कभार,
किसी कहानी के बाद की कहानी छप जाती है,
और कोने में खून की कुछ बुंदें या फ़िर कभी,
फ़ुलों का गुच्छा लिये गजगामिनी की तस्वीर,
आंखों के सामने कहानी का अंत बताने का प्रयास करती है,
लेकिन कहानियां तो कहानियां ही हैं,
उनका आदि क्या और अंत क्या,
यह सच वह भी जानती हैं,
समझती हैं इसलिए मौन हैं,
एक बुत के जैसे किताब के शक्ल में,
या फ़िर रंग बिरंगे अखबारों के पन्नों में,
जैसे कोई खुबसूरत सी टिकुली,
ललाट के जगह रुम्पा के गालों को चूम रही हों,
चौपाल की नायिका भी “बन्द गली के आखिरी मकान” के पास,
रुकती है और देखती है उन सभी को,
जिनके लिए एक हसरत है वो,
वह रचना बने या फ़िर प्रार्थना,
दुनिया से ताल ठोककर सवाल करती है,
सोन पुष्प लाने गये राजा की कहानी,
बहुत कुछ कहना चाहती है,
लेकिन अलफ़ाज तब कहां उसे इसकी इजाजत देते हैं,
दुनियावी दस्तूर भी तो नहीं है ऐसा,
हर कहानी के खत्म होने के बाद,
एक नयी कहानी की परंपरा निभानी ही पड़ती है।
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