बोल कि लब आजाद हैं तेरे...

Posted By Geetashree On 8:42 PM Under ,

महिला दिवस पर विशेष....कुछ कविताएं, कुछ टुकड़ें..
गीताश्री

तुम इलाहाबाद के पथ पर
पत्थर तोड़नेवाली बाला नहीं
जिसे निराला ने देखा था

तुम शरत के उपन्यासों की नायिका नहीं,
लारेंस,काफ्का, मंटो और राजकमल की लेखनी ने तुम्हें नहीं रचा,
भीष्म साहनी की बासंती
या आलोकधन्वा की भागी हुई लड़कियों में भी
तुम्हारी गिनती नहीं हो सकती
तुम्हें मैं नारी मुक्ति आंदोलन की नायिकाओं की श्रेणी में भी नहीं पाता
तुम्हें पेट भरने के लिए फलवाले किसी पेड़ की तलाश भी नहीं
लेकिन उड़ने की कद्र की है तुमने
श्रम मूल्य है तुम्हारा पसीना
पसन्द है तुम्हे
यही मुझे अच्छा लगता है सोनचिरैया,यही।
(वेद प्रकाश वाजपेयी की कविता "सोनचिरैया" का अंश)

....बोए जाते हैं बेटे
उग आती है बेटियां
एवरेस्ट की चोटी तक ठेले जाते हैं बेटे
चढ जाती है बेटियां....(कवि का नाम पता नहीं)

महिला सशक्तिकरण के 100 साल पूरे हो गए। 1910 में महिला दिवस की घोषणा के बाद सबसे पहले 19 मार्च 1911 को आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्वीटजरलैंड में यह पर्व मनाया गया।
1975 में अंतराष्ट्रीय महिला वर्ष के दौरान यूएन ने 8 मार्च को महिला दिवस के रुप में मनाना शुरु किया।
इतना लंबा सफर तय करने के बाद भी हमारा लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है..मुक्ति स्वप्न नहीं है..यहां लोहिया का एक कथन सटीक बैठता है..वह कहते हैंकि पुरुष स्त्री को प्रतिभासंपन्न और बुद्दिमति भी बनाना चाहता है और उसे अपने कब्जे में भी रखना चाहता है, जो किसी कीमत पर नहीं हो सकता...जब तक यह गैरबराबरी खत्म नहीं होती....स्वप्न अधूरा, क्रांति अधूरी....
बोल बोल कि लब आजाद हैं तेरे....
Khushdeep Sehgal
March 7, 2011 at 10:45 PM

एक महिला असल में चाहती क्या है...

जय हिंद...

vandana gupta
March 8, 2011 at 2:12 AM

गीता जी बहुत सुन्दर पोस्ट लगाई है……………बहुत पसन्द आई।
महिला दिवस की हार्दिक बधाई ।

देवेन्द्र पाण्डेय
March 8, 2011 at 6:44 AM

यूँ ही लोहिया को समाज वादी नहीं कहा जाता। कितना सही कहा था उन्होने ! अनुयायी इस बात का भी अनुकरण क्यों नहीं करते !

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami
March 8, 2011 at 7:11 AM

"बोए जाते हैं बेटे
उग आती है बेटियां
एवरेस्ट की चोटी तक ठेले जाते हैं बेटे
चढ जाती है बेटियां....
जब तक यह गैरबराबरी खत्म नहीं होती....स्वप्न अधूरा, क्रांति अधूरी...."
बिलकुल सही नब्ज पर हाथ रखा है गीताश्री जी आपने ।

Udan Tashtari
March 8, 2011 at 7:12 PM

...बोए जाते हैं बेटे
उग आती है बेटियां
एवरेस्ट की चोटी तक ठेले जाते हैं बेटे
चढ जाती है बेटियां....


क्या बात कही कहने वाले ने....

महिला दिवस पर बधाई ले लिजिये..:)

Udan Tashtari
March 8, 2011 at 7:14 PM

महिला दिवस पर: http://udantashtari.blogspot.com/2008/09/blog-post_29.html


कैसी चढ़ी जवानी बाबा
मस्ती भरी कहानी बाबा

भूखी रहकर डायट करती
फीगर की दीवानी बाबा

कमर घटायेगी वो कब तक
जीरो साईज़ ठानी बाबा

सिगरेटी काया को लेकर
सिगरेट खूब जलानी बाबा

डिस्को में वो थिरके झूमे
सबको नाच नचानी बाबा

सड़कों पर चलती है ऐसे
हिरणी हो मस्तानी बाबा

लड़के सारे आहें भरते
सबके दिल की रानी बाबा

गाड़ी लेकर सरसर घूमें
ईंधन है या पानी बाबा

बॉयफ्रेंड सब भाग लिये हैं
खर्चा बहुत करानी बाबा

शादी करके हुई विदा वो
छाई है मुर्दानी बाबा!!

-समीर लाल ’समीर’

-सर्जना शर्मा-
March 8, 2011 at 9:02 PM

बहुत अच्छी कविताएं चुनीं महिला दिवस के लिए दोनों के भाव अलग अलग है लेकिन बेहतरीन बधाई गीता

-सर्जना शर्मा-
March 11, 2011 at 9:32 AM

अभी अभी समाचार पढ़ा कि तुम्हे नारी पर ब्लॉग लिखने के लिए सम्मानित किया जा रहा है जान कर बहुत खुशी हुई मेरी तरफ से बहुत बहुत बधाई

Geetashree
March 11, 2011 at 9:38 AM

सर्जना, मुझे भी अभी अभी पता चला. खबर पढी. बेहद खुशी हुई,कई सालो से ब्लागिंग करने के बाद ये सराहना मिली, अच्छा लगा। मेहनत और नियत दोनो सफल हुई। तुम भी खूब लिखो..ब्लाग जगत के लिए ये सम्मान एक सुखद शुरुआत है..जै ब्लौग, जै ब्लौगरस..

vijay kumar sappatti
March 16, 2011 at 1:40 AM

aapki rachna bahut prabhaavshaali hai .... bahut kuch chupa hua hai aapke shabdo me ...!!

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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय