पर्वत राग का नया अंक पढ रही थी,,,इस अंक में कई सामग्री पठनीय है। मगर मेरा ध्यान खींचा निर्मला पुतुल की कविता ने. मैं अब नयी चीज शुरु करने जा रही हूं...अपने इस ब्लाग पर अपना लिखा बहुत हुआ. अब स्त्री द्वारा स्त्री पर लिखी जाने वाली कविता, कहानी, लेख, साक्षात्कार भी इसमें शामिल करुंगी. खासकर जो चीजें सिर्फ अखबारो या पत्रिकाओं में छप कर रह जाती है..उन्हें यहां अपने दोस्तो को पढवाना मेरा दायित्व है...जो मुझे अच्छा लगता है शायद आपको भी रुचे. ना रुचे तो बताएं..रुचे तो एक कमेंट डाल दें..
मैं जानती हूं...यहां भी मुझ पर घोर स्त्रीवादी होने का आरोप लगाया जाएगा. क्या करें..हम हैं ही एसे. कोई पुरुष साथी की रचना जंची तो शामिल कर लेंगे..फिलहाल दूर दूर तक स्त्री के हक में लिखने वाले ही दिख रहे हैं...शुरुआत कविता से कर रहे हैं..उनकी तस्वीर गूगल में नहीं मिली, ना ही मैं उनसे परिचित हूं,,एक स्त्री का दूसरी स्त्री से अपरिचय भी कैसा..वो जिस स्त्री की बात अपनी कविता मे करती है..शायद मैं हूं..आप हैं..
निर्मला जी जानी मानी कवयित्री हैं, हिंदी-संथाली की. पर्वत राग में साक्षात्कार समूह(निरंजन देव शर्मा, अजेय, प्रतिमा) ने इनके बारे में लिखा है---सचमुच निर्मला पुतुल की कविताएं पाठक से संवाद स्थापित करने के मामले में कविता के क्षेत्र में पसरे सन्नाटे को बखूबी तोड़ती हैं..निर्मला खुद कहती हैं कि वह प्रायोजित कविताएं नहीं लिखतीं...आप पढिए देखिए..निर्मला एक स्त्री जीवन के अंधेरे से कैसे जूझती हैं..
मैं जानती हूं...यहां भी मुझ पर घोर स्त्रीवादी होने का आरोप लगाया जाएगा. क्या करें..हम हैं ही एसे. कोई पुरुष साथी की रचना जंची तो शामिल कर लेंगे..फिलहाल दूर दूर तक स्त्री के हक में लिखने वाले ही दिख रहे हैं...शुरुआत कविता से कर रहे हैं..उनकी तस्वीर गूगल में नहीं मिली, ना ही मैं उनसे परिचित हूं,,एक स्त्री का दूसरी स्त्री से अपरिचय भी कैसा..वो जिस स्त्री की बात अपनी कविता मे करती है..शायद मैं हूं..आप हैं..
निर्मला जी जानी मानी कवयित्री हैं, हिंदी-संथाली की. पर्वत राग में साक्षात्कार समूह(निरंजन देव शर्मा, अजेय, प्रतिमा) ने इनके बारे में लिखा है---सचमुच निर्मला पुतुल की कविताएं पाठक से संवाद स्थापित करने के मामले में कविता के क्षेत्र में पसरे सन्नाटे को बखूबी तोड़ती हैं..निर्मला खुद कहती हैं कि वह प्रायोजित कविताएं नहीं लिखतीं...आप पढिए देखिए..निर्मला एक स्त्री जीवन के अंधेरे से कैसे जूझती हैं..
कविता
क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न
एक स्त्री का एकांत
घर-प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी जमीन
के बारे में बता सकते हो तुम.
बता सकते हो
सदियो से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को
उसके घर का पता.
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में
किस तरह एक ही समय में
स्वंय को स्थापित और निर्वासित
करती है एक स्त्री.
सपनो में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तो के कुरुक्षेत्र में
अपने...आपसे लड़ते.
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गांठे खोलकर
कभी पढा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास
पढा है कभी
उसकी चुप्पी की दहलीज पर बैठ
शब्दो की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को.
उसके अंदर वंशबीज बोते
क्या तुमने कभी महसूसा है
उसकी फैलती जड़ो को अपने भीतर.
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण
बता सकते हो तुम
एक स्त्री को स्त्री -दृष्टि से देखते
उसके स्त्रीत्व की परिभाषा
अगर नहीं
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में......।
पुरुष से भिन्न
एक स्त्री का एकांत
घर-प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी जमीन
के बारे में बता सकते हो तुम.
बता सकते हो
सदियो से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को
उसके घर का पता.
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में
किस तरह एक ही समय में
स्वंय को स्थापित और निर्वासित
करती है एक स्त्री.
सपनो में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तो के कुरुक्षेत्र में
अपने...आपसे लड़ते.
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गांठे खोलकर
कभी पढा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास
पढा है कभी
उसकी चुप्पी की दहलीज पर बैठ
शब्दो की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को.
उसके अंदर वंशबीज बोते
क्या तुमने कभी महसूसा है
उसकी फैलती जड़ो को अपने भीतर.
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण
बता सकते हो तुम
एक स्त्री को स्त्री -दृष्टि से देखते
उसके स्त्रीत्व की परिभाषा
अगर नहीं
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में......।
September 20, 2010 at 9:42 AM
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गांठे खोलकर
कभी पढा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास
सुंदर पंक्तियां, इतनी अच्छी रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद
http://veenakesur.blogspot.com/
September 21, 2010 at 4:41 AM
बता सकते हो
सदियो से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को
उसके घर का पता.
..................!
nirmala putul ka kavita sanklan --' nagaade ki tarah bajte shabd' mere paas hai , ve ek samarth rachnakaar hain , aur unke kahan me jo aag hai wo gajab ki hai !!!
September 21, 2010 at 10:01 AM
" नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द " की कवयित्री निर्मला पुतुल की यह बहुत अच्छी कविता है । तस्वीर ढूँढकर भेजने की कोशिश करता हूँ .
September 21, 2010 at 10:13 AM
http://kavikokas.blogspot.com/2009/09/blog-post_27.html#comments
इस लिंक पर देखियेगा मैंने निर्मला जी की एक कविता और तस्वीर अपने ब्लॉग पर दी थी
February 4, 2011 at 7:56 AM
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में......।
सार्थक कविता पढ़वाने के लिये आभार
July 20, 2014 at 5:45 AM
सुंदर
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