गीतांजलिश्री
सबसे पहले मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि कालिया और राय की बर्खास्तगी के कागज पर हस्ताक्षर नहीं दे रही हूं। मगर इस मुद्दे पर सारी औरत विरोधी नजर और मानसिकता पर अपना प्रोटेस्ट दर्ज कर रही हूं।
जिस तरह के उल-जलूल शीर्षक के सहारे नए ज्ञानोदय को लोकप्रियता दिलाए जाने का प्रयास किया जाता रहा है। और जिस छद्म भाषा में ये निंदनीय साक्षात्कार दिया गया है, दोनों उसी गहरे पैठी पुरुष मानसिकता के प्रतिमान हैं जो सदियों से चली आ रही है। न जाने दंभ में या की बेवकूफी में, ये बाते कही गई, मगर इससे फर्क नहीं पड़ता। बल्कि इरादा क्या था या है उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि जब तक आपकी मनसिकता नहीं बदलेगी और औरत के प्रति ‘नजर’ वही पुरानी चलेगी, तब तक आप उसके पक्ष में हों या विपक्ष में, आपकी भाषा यही रहेगी। क्योंकि आपके पास कोई और भाषा है ही नहीं। मजाक, गंभीर विवाद, गाली, तारीफ, सबके लिए शब्द-संपदा एक होगी। भद्दे शब्द, बेहूदा शैली, फूहड़ अंदाज।
इसमें नया कुछ नहीं है। और बोल्ड तो सिरे से ही नहीं। यह वही भाषा है। वही रस-प्रसंग जो कबसे पुरुष इस्तेमाल कर रहे हैं।
(हिंदी अकादमी अश्लील क्या होता है का सबक यहां पढ़ें।यह है अश्लील, न की हमारे कृष्ण बलदेव वैद्य) मुद्दा यही है - कि जेंडर सेंसटिविटी और जेंडर इक्विलिटी का अहसास पुरजोर नारीबाजी और रेडिकल फैमिनिस्ट वक्तव्यों के बावजूद आप की चेतना को अछूता छोड़ सकता है।
नजर वही है, पुरुष-प्रधान, और पैमाना वही है औरत को आंकने का, तो आप पक्ष में हों, विपक्ष में, दोनों सूरत में, यही साक्षात्कार देगा, यही शीर्षक चुनेगा, यही बयानबाजी होगी, यही बवाल उठेंगे।
अफसोस यह की ये नजर और मानसिकता इस कदर फैली हुई है कि जब सफाई अभियान चलाने की बात है, तो कतार-दर-कतार उसी किस्म के लोग नजर आते हैं जिन्हें बर्खास्त करा देना चाहिए। किस-किस को बर्खास्त करना चाहिए? बर्खास्तगी का कायदा क्या होना चाहिए? मैं कम से कम, इसको लेकर आश्वस्त नहीं हूं।
दोनों शख्स अपनी गलती मान के, जिस ओहदे पर आसिन हैं वहां से हट जाएं तो कुछ इज्जत पाएंगे? या फिर माफी मांग कर विनम्रता से कुछ सही और संवेदनशील करें? शायद यह मौका तो उन्हें मिलना चाहिए? (यह भी न भूलें की विभूति ने किसी और क्षेत्र में, संप्रदायों और जातियों के बीच, सराहनीय और हिम्मती काम किया है।)
यह भी हमारी जिम्मेदारी है कि इस मुद्दे से इतर कोई राजनीति यहां शामिल न हो। मैं गलत हो सकती हूं पर यह सारे सवाल मुझे जरूरी लग रहे हैं।
बर्खास्तगी की मांग करने वालों में यह समझ पाने का विवेक होना चाहिए, कि इस मांग से न जुडऩा उस गंदगी की तरफ होना कतई नहीं है, जिसका सिर्फ विरोध ही हो सकता है, और मैं कर रही हूं।
न केवल एक साक्षात्कार, बल्कि बेवफाई का पूरा तस्व्वुर - बेवफाई को एलानिया प्रेम से अलग कर प्रेम विशेषांक के बाद बेवफाई विशेषांक निकालने का सारा आयोजन-- एक घिनौनी मानसिकता दर्शाता है।
जिस तरह के उल-जलूल शीर्षक के सहारे नए ज्ञानोदय को लोकप्रियता दिलाए जाने का प्रयास किया जाता रहा है। और जिस छद्म भाषा में ये निंदनीय साक्षात्कार दिया गया है, दोनों उसी गहरे पैठी पुरुष मानसिकता के प्रतिमान हैं जो सदियों से चली आ रही है। न जाने दंभ में या की बेवकूफी में, ये बाते कही गई, मगर इससे फर्क नहीं पड़ता। बल्कि इरादा क्या था या है उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि जब तक आपकी मनसिकता नहीं बदलेगी और औरत के प्रति ‘नजर’ वही पुरानी चलेगी, तब तक आप उसके पक्ष में हों या विपक्ष में, आपकी भाषा यही रहेगी। क्योंकि आपके पास कोई और भाषा है ही नहीं। मजाक, गंभीर विवाद, गाली, तारीफ, सबके लिए शब्द-संपदा एक होगी। भद्दे शब्द, बेहूदा शैली, फूहड़ अंदाज।
इसमें नया कुछ नहीं है। और बोल्ड तो सिरे से ही नहीं। यह वही भाषा है। वही रस-प्रसंग जो कबसे पुरुष इस्तेमाल कर रहे हैं।
(हिंदी अकादमी अश्लील क्या होता है का सबक यहां पढ़ें।यह है अश्लील, न की हमारे कृष्ण बलदेव वैद्य) मुद्दा यही है - कि जेंडर सेंसटिविटी और जेंडर इक्विलिटी का अहसास पुरजोर नारीबाजी और रेडिकल फैमिनिस्ट वक्तव्यों के बावजूद आप की चेतना को अछूता छोड़ सकता है।
नजर वही है, पुरुष-प्रधान, और पैमाना वही है औरत को आंकने का, तो आप पक्ष में हों, विपक्ष में, दोनों सूरत में, यही साक्षात्कार देगा, यही शीर्षक चुनेगा, यही बयानबाजी होगी, यही बवाल उठेंगे।
अफसोस यह की ये नजर और मानसिकता इस कदर फैली हुई है कि जब सफाई अभियान चलाने की बात है, तो कतार-दर-कतार उसी किस्म के लोग नजर आते हैं जिन्हें बर्खास्त करा देना चाहिए। किस-किस को बर्खास्त करना चाहिए? बर्खास्तगी का कायदा क्या होना चाहिए? मैं कम से कम, इसको लेकर आश्वस्त नहीं हूं।
दोनों शख्स अपनी गलती मान के, जिस ओहदे पर आसिन हैं वहां से हट जाएं तो कुछ इज्जत पाएंगे? या फिर माफी मांग कर विनम्रता से कुछ सही और संवेदनशील करें? शायद यह मौका तो उन्हें मिलना चाहिए? (यह भी न भूलें की विभूति ने किसी और क्षेत्र में, संप्रदायों और जातियों के बीच, सराहनीय और हिम्मती काम किया है।)
यह भी हमारी जिम्मेदारी है कि इस मुद्दे से इतर कोई राजनीति यहां शामिल न हो। मैं गलत हो सकती हूं पर यह सारे सवाल मुझे जरूरी लग रहे हैं।
बर्खास्तगी की मांग करने वालों में यह समझ पाने का विवेक होना चाहिए, कि इस मांग से न जुडऩा उस गंदगी की तरफ होना कतई नहीं है, जिसका सिर्फ विरोध ही हो सकता है, और मैं कर रही हूं।
न केवल एक साक्षात्कार, बल्कि बेवफाई का पूरा तस्व्वुर - बेवफाई को एलानिया प्रेम से अलग कर प्रेम विशेषांक के बाद बेवफाई विशेषांक निकालने का सारा आयोजन-- एक घिनौनी मानसिकता दर्शाता है।
August 11, 2010 at 7:31 PM
बेहतरीन उम्दा पोस्ट
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
चेतावनी-सावधान ब्लागर्स--अवश्य पढ़ें
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