वीएन राय से बड़ा लफंगा नहीं देखा..

Posted By Geetashree On 12:42 AM
मैत्रयी पुष्पा (लेखिका)

मेरी आत्मकथा ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’कोई पढ़े और बताये कि विभूति ने यह बदतमीजी किस आधार पर की है। हमने एक जिंदगी जी है उसमें से एक जिंदा औरत निकलती है, जो लेखन में दखल देती है।

महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति वीएन राय लेखिकाओं को ‘छिनाल’कहकर अपनी कुंठा मिटा रहे हैं और उन्हें लगता है कि लेखन से न मिली प्रसिद्धि की भरपाई वह इसी से कर लेंगे। मैं इस बारे में कुछ आगे कहूं उससे पहले ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया और कुलपति वीएन राय को याद दिलाना चाहुंगी कि दोनों की बीबियां ममता कालिया और पदमा राय लेखिकाएं है,आखिर उनके ‘छिनाल’होने के बारे में महानुभावों का क्या ख्याल है।

लेखन के क्षेत्र में आने के बाद से ही लंपट छवि के धनी रहे वीएन राय ने ‘छिनाल’ शब्द का प्रयोग हिंदी लेखिकाओं के आत्मकथा लेखन के संदर्भ में की है। हिंदी में मन्नु भंडारी,प्रभा खेतान और मेरी आत्मकथा आयी है। जाहिरा तौर यह टिप्पणी हममें से ही किसी एक के बारे में की गयी, ऐसा कौन है वह तो विभूति ही जानें। प्रेमचंद जयंती के अवसर पर कल ऐवाने गालिब सभागार (ऐवाने गालिब) में उनसे मुलाकात के दौरान मैंने पूछा कि ‘नाम लिखने की हिम्मत क्यों न दिखा सके, तो वह करीब इस सवाल पर उसी तरह भागते नजर आये जैसे श्रोताओं के सवाल पर ऐवाने गालिब में।

मेरी आत्मकथा ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’कोई पढ़े और बताये कि विभूति ने यह बदतमीजी किस आधार पर की है। हमने एक जिंदगी जी है उसमें से एक जिंदा औरत निकलती है और लेखन में दखल देती है। यह एहसास विभूति नारायण जैसे लेखक को कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह बुनियादी तौर पर लफंगे हैं।

मैं विभूति नारायण के गांव में होने वाले किसी कार्यक्रम में कभी नहीं गयी। उनके समकालिनों और लड़कियों से सुनती आयी हूं कि वह लफंगई में सारी नैतिकताएं ताक पर रख देता है। यहां तक कि कई दफा वर्धा भी मुझे बुलाया,लेकिन सिर्फ एक बार गयी। वह भी दो शर्तों के साथ। एक तो मैं बहुत समय नहीं लगा सकती इसलिए हवाई जहाज से आउंगी और दूसरा मैं विकास नारायण राय के साथ आउंगी जो कि विभूति का भाई और चरित्र में उससे बिल्कुल उलट है। विकास के साथ ही दिल्ली लौट आने पर विभूति ने कहा कि ‘वह आपको कबतक बचायेगा।’ सच बताउं मेरी इतनी उम्र हो गयी है फिर भी कभी विभूति पर भरोसा नहीं हुआ कि वह किसी चीज का लिहाज करता होंगे।

रही बात ‘छिनाल’ होने या न होने की तो, जब हम लेखिकाएं सामाजिक पाबंदियों और हदों को तोड़ बाहर निकले तभी से यह तोहमतें हमारे पीछे लगी हैं। अगर हमलोग इस तरह के लांछनों से डर गये होते तो आज उन दरवाजों के भीतर ही पैबस्त रहते,जहां विभूति जैसे लोग देखना चाहते हैं। छिनाल,वेश्या जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं और हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं।

हमें तरस आता है वर्धा विश्वविद्यालय पर जिसका वीसी एक लफंगा है और तरस आता है 'नया ज्ञानोदय' पर जो लफंगयी को प्रचारित करता है। मैंने ज्ञानपीठ के मालिक अशोक जैन को फोन कर पूछा तो उसने शर्मींदा होने की बात कही। मगर मेरा मानना है कि बात जब लिखित आ गयी हो तो कार्रवाई भी उससे कम पर हमें नहीं मंजूर है। दरअसल ज्ञोनादय के संपादक रवींद्र कालिया ने विभूति की बकवास को इसलिए नहीं संपादित किया क्योंकि ममता कालिया को विभूति ने अपने विश्वविद्यालय में नौकरी दे रखी है।

मैं साहित्य समाज और संवेदनशील लोगों से मांग करती हूं कि इस पर व्यापक स्तर पर चर्चा हो और विभूति और रवींद्र बतायें कि कौन सी लेखिकाएं ‘छिनाल’हैं। मेरा साफ मानना है कि ये लोग शिकारी हैं और शिकार हाथ न लग पाने की कुंठा मिटा रहे हैं। मेरा अनुभव है कि तमाम जोड़-जुगाड़ से भी विभूति की किताबें जब चर्चा में नहीं आ पातीं तो वह काफी गुस्से में आ जाते हैं। औरतों के बारे में उनकी यह टिप्पणी उसी का नतीजा है।

(अजय प्रकाश से हुई बातचीत पर आधारित)
जनज्वार से साभार
Anonymous
August 1, 2010 at 7:33 AM

छिनाल,वेश्या जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं और हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं। धन्यवाद मैत्रेयी जी !पीछे मुड़ के देखने को कुछ नही ! जीवन लड़ाई है तो लड़ाई ही सही !

प्रज्ञा पांडेय
August 1, 2010 at 11:54 AM

मैत्रेये जी बात वही है कि अब स्त्रियाँ चौहद्दियों से बाहर हैं तो छिनाल और वेश्या हैं लेकिन कितने दिन यह शब्द गाली होगा !छिनाल का विलोम तो पतिव्रता है और पतिव्रता शब्द यानी संस्कारों परम्पराओं और घरों की चौहद्दियां !चोहद्दियाँ तो टूटेंगी ही आज नहीं तो कल !.छिनाल शब्द अर्थहीन है ! .पुरुष को तो सारी स्त्रियाँ लुभावनी लगतीं हैं ! पाप और पुण्य का सारा दारोमदार स्त्री के ऊपर डाल ये पुरुष जब स्वच्छंद रमण करते हैं तब वे क्या किसी वेश्या से कम हैं क्यों नहीं सोचते ?बलात्कारों, घरेलू हिंसाओं, सरे आम यौन उत्पीड़नों के बारे में अगर ये इमानदार होते और स्त्री क़ी अस्मिता को सम्मान देते तो छिनाल शब्द पैदा भी नहीं हुआ होता .यह इन्ही के मानसिक फितूर की उपज है ..उसी फितूर को जब स्त्रियों ने लिखना और कहना शुरू किया है तब वे छिनाल और वेश्या कही जाने लगीं ! सीमंतिनी उपदेश लिखनेवाली के पास अपना नाम बताने का साहस नहीं था लेकिन अब वह समय लद गया है अब स्त्री अपने साथ बीते हुए की कलयी खोल रही है तो छिनाल हों गयी है ! स्त्री लेखिकाओं को छिनाल कहने से पहले ज़रा आइना सामने रख लीजिये .

सुशीला पुरी
August 1, 2010 at 9:08 PM

नया ज्ञानोदय के अगस्त अंक मे साक्षातकार के दौरान बी एन राय साहब ने जो कुछ अपने पूर्वाग्रहों या दुराग्रहों के वशीभूत होकर कहा उसपर कुछ कहने से पहले मै उस पत्रिका के संपादक रवीद्र कालिया जी से पूछना चाहती हूँ कि- संपादन का मतलब क्या होता है ? नया ज्ञानोदय पत्रिका की मै नियमित पाठिका हूँ और उस पत्रिका के मंच से यदि विभूति नारायण राय जी ने 'लेखिकाओं'को लेकर इतनी अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया तो उसको पत्रिका मे जगह देने का औचित्य ही क्या था ? विभूति जी का 'शहर मे कर्फ्यू ' , 'तबादला',और ' घर ' मैंने भी पढ़ा है और उस आधार पर मै उनसे ऐसी उम्मीद नहीं रखती थी ,अब यदि ऐसा उन्होने कहा है तो इसकी जवाबदेही भी उनकी है ,और उनको इससे बजाय मुँह चुराने के ,अपनी बात रखनी चाहिए । सभी सम्मानित बड़ी लेखिकाओं से मेरा अनुरोध है कि बी एन राय के अशोभनीय वक्तव्य के जवाब मे पदमा राय जी और ममता कालिया जी का नाम लेकर कुछ सवाल -जवाब करना बेहद शर्मनाक है और हिन्दी साहित्य की गरिमा को मिट्टी मे मिलाने जैसा है । 'हंस' की वार्षिक गोष्ठी मे ऐसे अनर्गल और अशोभनीय बातों का उठना हम सभी हिन्दी भाषी लोगो के लिए तकलीफदेह और शर्म से चुल्लू भर पानी मे डूब मरने जैसी स्थिति है ।