मैं पिछले साल सीरिया की यात्रा पर गई थी। 10 दिन वहां रही और वहां के समाज को करीब से देखा समझा. खासतौर से औरतो को। ब्लाग के पुराने पोस्ट देखे तो वहां के समाज पर मैंने कई पोस्ट लिखे मिल जाएंगे। आज फिर से मन हुआ कि वहां के बारे में लिखे। बीच बीच में सीरिया मुझे लिखने को उकसाता रहता है।
पिछले कुछ दिनों से बुर्का प्रकरण खबरो में छाया हुआ है। हमने भी लिखा था, ब्लाग और अखबारो में. फ्रांस के कारण यह मुद्दा बना हुआ था। फ्रांस ने अपने देश में बुर्का पहनने पर रोक लगाई और इसके लिए जुर्माना का प्रावधान भी रखा। इसके साहसिक फैसले के बाद इस्लामिक देशो में रिएक्शन जरुर हुए होंगे। सुखद खबर ये कि सीरिया ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बरकरार रखने के लिए विश्व विधालयो में बुर्के पर प्रतिबंध लगा दिया। एक तरफ यूरोप में एसे कदमो पर मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव करने के आरोप लग रहे हैं, वहीं सीरिया के शिक्षा मंत्रालय ने नकाब पर प्रतिबंध लगा दिया। ये प्रतिबंध सरकारी और निजी विश्वविधालयो में लगाए गए हैं। इसका सीधा सीधा मकसद अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बरकरार रखना है। हालांकि इसमें सिर पर बांधे जाने वाले स्कार्फ शामिल नहीं है। जिसे वहां की ज्यादातर महिलाएं बांधती हैं। हमने देखा है कि वहां पर बुर्का का चलन पहले से ही कम है। परदा के नाम पर ज्यादतर महिलाएं स्कार्फ बांधती हैं। कुछ समुदायो में बुर्का का चलन दिखा था। लेकिन जब हम कई शिक्षा संस्थानों में गए तो वहां स्कार्फ पहनी लड़कियां नजर आईं, बुर्का पहने शायद ही दिखी हों। बाजार में जरुर एकाध बुजुर्ग महिलाएं दिखी थीं। इस फैसले से कठमुल्लों के पेशानी पर बल जरुर पड़ गए होंगे। लेकिन सीरिया ने कभी खुद को इस्लामिक देश नहीं माना है। अत्यंत आधुनिक देश के तौर पर उभरने वाला यद देश बेहद अन्य इस्लामिक देशो के लिए एक उदाहरण बन सकता है। पोस्ट से साथ जो फोटो है, ये एक शिक्षा संस्थान का ही है। यहां के माहौल को देख कर कुछ कुछ दिल्ली विश्वविधालय की मस्ती याद आ गई। थोड़ा फन..थोडी पढाई। यहां तक कि स्कार्फ भी गायब थे लड़कियो के सिर से।
अब जिन घरो में लड़कियो को नकाब पहनने को मजबूर किया जाता होगा, वे अब मुक्त हुईं। कमसेकम शिक्षा प्रांगण में इस बंदिश से आजाद होंगी। जिन्हें पढना है उन्हें इस प्रतिबंध को मानना ही होगा।
मुझे लगता है कि इस्लामिक देशो में धीरे धीरे ही सुधारवादी फैसले लिए जाएंगे। काले चोगे से औरतो की रिहाई का वक्त आ गया है। कुछ हिम्मत औरतो को भी जुटानी होगी। प्रशासन बहरा हो तो चोट इतनी जोर से करनी चाहिए कि कान के परदे झनझना जाएं।
सीरिया ने मन खुश कर दिया। वाह सीरिया।
इस खबर के साथ एक और खबर आई कि एक ब्रिटिश मंत्री ने मुस्लिम महिलाओं के बुर्का पहनने के अधिकारो का बचाव करते हुए तर्क दिया है कि बुर्का पहनने की स्वतंत्रता से महिलाएं सशक्त होती हैं। यह बयान एसे समय में आया है जब पूरे यूरोप में महिलाओं के सावर्जनिक जगहो पर बुर्का पहनने पर बहस छिड़ी है...। मंत्री का तर्क है कि प्रतिबंध ब्रिटिश संस्कृति के खिलाफ होगा और सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान की परंपरा वाले समाज के विपरीत होगा।
मंत्री महोदय के इस मासूम तर्क पर क्या कहें। इतना वाहियात तर्क हमने आज तक नहीं सुना। क्या पारस्परिक सम्मान के नाम पर हम बबर्रता की इजाजत दे सकते हैं। कैद में रखने वाले रिवाज को कायम कैसे रहने दे सकते हैं। ये महज राजनीतिक बयान है..शिगूफा है खुद को एक खास समुदाय में लोकप्रिय़ बनाने का। इससे किसी का भला नहीं होने वाला। बेहतर हो वे अपना ध्यान किसी और दिशा में लगाए।मुक्ति के रास्ते में रोड़े ना अटकाएं।
July 21, 2010 at 7:17 AM
सीरिया ने मन खुश कर दिया। वाह सीरिया
मोहल्ला लाइव ने भी मन खुश कर दिया. वाह...
July 21, 2010 at 8:41 AM
क्यों नहीं व्यवस्थाएं लोगों को अपने ढंग से जीने देतीं. क्यों नहीं लोगों पर छोड़ देतीं उनकी personal choices. कहीं कोई बुर्क़ा/स्कार्फ़ पहनने/पहनाने/उतारने पर अड़ा है तो कोई इसके ख़िलाफ़. भारत में कई जगह साड़ी-जीन-स्कर्ट-सलवार पर जंग छिड़ी है... अभी लोगों को बहुत पैंडा नापना बाक़ी है.
July 21, 2010 at 8:48 AM
aapne sahi likha hai.. mai bhi sayong se aaj kuch aisa hi soch raha tha. aaj apne desh me bhi ek pharman jari hua hai ki cycle chalati ladki islam ki khilafat kr rahi hoti hai.. dukhad hai sb kuch. mujhe aisa lagta hai ki jb quran likha gaya hoga tb cycle ka nam-o-nishan nahi raha hoga.. khair iski barikiyan mulle apni suvidha se batayenge..
July 21, 2010 at 10:56 PM
गीता जी सीरिया की यह बात सुनकर वहां के कवि कब्बानी की कविताएं यकायक याद आ गईं। जों प्रेम के कवि हैं। अगर आप सुंदरता को इस कदर बुर्के में ढक कर रखेंगे तो प्रेम कहां से आएगा। मेरी इस बात का कतई यह अर्थ नहीं लगाया जाए कि प्रेम केवल सुंदरता से उपजता है। मेरा तात्पर्य है प्रकृति ने भी कुछ नियम बनाए हैं उनका हम पालन करें। पर्याप्त है। सचमुच इस बहस के बीच ब्रिट्रेन से यह बयान सामंतवादी व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया कदम लगता है।
July 22, 2010 at 7:09 AM
यक़ीनन कुछ खिडकिया ओर खुलेगी आहिस्ता आहिस्ता
Post a Comment