राजनीति नही, घर संभालें महिलाएं
लगता है शिया धर्मगुरु कल्बे साहब का दिमाग खराब हो गया है। तभी वे भयानक किस्म के बयान दे रहे हैं। इनको अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए। उनके मुताबिक औरतें घर संभालें और राजनीति मर्दो की बपौती बनी रहे। सवालिया दिमाग वाले एसी ही बाते करते हैं। आज सभी पेपर में उनका यह खौफनाक बयान छपा है। उस बयान के बाद उन्हें भारत में नहीं स्वातघाटी की राजनीति करना चाहिए या वहां जाकर तालिबानी आंदोलन को मजबूत करना चाहिए। भारत को उनकी जरुरत नहीं...वे गलत मुल्क में हैं। वे हमारी लोकतांत्रिक आधिकारों पर हमला कर रहे हैं। बमुश्किल हासिल की गई आजादी और हको पर हमला बोल रहे हैं। पता नहीं, कोई समाज कैसे बर्दाश्त करता है एसे लोगो को।
पहले तो वह महिला आरक्षण बिल में मुस्लिम महिलाओं के कोटे का विरोध करते हैं फिर बयान देते हैं...महिलाओं को घर गृहस्थी संभालना चाहिए। उन्हें खूबसूरत बच्चे पैदा करना चाहिए। उनका पालन पोषण करना चाहिए। अगर घर में बच्चा रो रहा हो तो वह संसद के गंभीर मुद्दों पर बहस कैसे कर पाएंगी। इसीलिए महिलाओं को चुनाव लड़ने और संसद तक पहुंचने के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए।
अकेले यही नही इनसे पहले दारुल ऊलूम देवबंद ने भी राजनीति में जाने की इच्छुक महिलाओं के गैर इस्लामिक व्यवहार पर सजा देने की बात की थी। पांच साल पहले देवबंद ने चुनाव लड़ने वाली महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया था। कुछ उलेमा एसे हैं जो उदारवादी रवैया रखते हैं। मगर वे भी जमात के विरोध के चलते चुप लगा जाते हैं। उनके अनुसार मुसलिम महिलाएं शरीयत के दायरे में रहकर चुनाव लड़ सकती हैं। क्योकि इस्लाम में महिलाओं के राजनीति में हिस्सा लेने के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।
कल्बे के इस बयान के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। एक बार फिर से मुसलिम महिलाओं की आजादी पर बहस शुरु हो गई है। इस समाज में जब भी औरतो की आजादी की बात होती है तो सारे धर्म गुरु एक सुर में बोलने लगते हैं। सुना है कि उत्तर प्रदेश के कुछ और धर्म गुरु बड़ाबड़ा रहे हैं...महिलाए अपनी हदो से बाहर ना जाएं तो अच्छा होगा...अगर उन्हें राजनीति में आना है तो पहले परदा उतार दें, क्योंकि इस्लाम कही भी परदा उतार कर भाषण देने की इजाजत नहीं देता। इस्लाम मे उन्हें सिर्फ घर में रहकर परिवार और बच्चो की देखभाल करने को कहा गया है... उन्हें पढने लिखने और देशसेवा का अधिकार जरुर दिया गया है लेकिन उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पब्लिक प्लेस पर भाषण देने का इस्लाम इजाजत नहीं देता...जो महिलाए चुनाव लड़ती है वे मुसलमान नहीं है...और भी ना जानें क्या क्या...अधिक तापमान में इनसान बड़बड़ता ही है। धर्मगुरुओं का तापमान इन दिनों फिर बढ गया है।
शाइस्ता अंबर के पीछे हाथ धो कर पड़ गए हैं। कहते हैं वे माफी मांगे। माफी तो आप मांगे जनाब...आपने औरत को औरत बनाए रखने की हिमायत और हिमाकत दोनो की है। कब तक धर्म के नाम पर औरतो को बच्चा पैदा करने की मशीन समझते रहेगें। कब तक चहारदीवारी में नकी आत्माएं चित्कारती रहेंगी। आप दस दस बच्चे पैदा करें..चहे जिनती बीबियां अपने हरम में रख लें...औरत को आजादी के सपने भी देखना गुनाह हो जाता है। यह अलग बात है कि कोटे के अंदर कोटा मिले या ना मिले..यह बिल्कुल अलग मुद्दा है। यहां तो आप असली मुद्दे से ही ध्यान हटाया जा रहा है।
मुसलिम महिलाएं अगर राजनीति में आ गईं तो यकीनन इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। जरा जरा सी बात पर क्या कोई धर्म खतरे में पड़ सकता है। समय के हिसाब से जीने की आदत ही नहीं है इन्हें। ढोए चले जा रहे हैं ढोंग को। वक्त कितना बदल गया,,दुनिया बदल गई। हालात और जरुरते बदल गईं। लगभग सारे समाजो की स्त्रियां मुक्त हो रही है...और आप इस्लाम के नाम पर लगाम कसे जा रहे हैं.
ये संयोग है कि आज ही कल्बे का बयान आया और जनसत्ता अखबार में साहित्यकार मित्र मुशर्ऱफ आलम जौकी का एक लेख छपा है जो इस मसले पर बेहद मौजूं है। यहां उसको रख रही हूं...
इस्लाम में औरत को जो भी मुकाम दिया गया हो, मौलवियो ने हर बार धर्म की आड़ लेकर औरत को अपने पैर की जूती बनाने की कोशिश की है। लगातार अत्याचार कई कई पत्नियों का रिवाज, आजादी के पहले तक बीबी की मौजूदगी में दाश्ता रखने और कोठो पर जाने का रिवाज, इस बारे में अपने मर्दाना होने ढेरो तर्क, शहजादों नवाबो और बड़े लोगो के हजारों लाखों किस्मों में औरत सचमुच खेती बन गई थी। मर्द औरत की धरती पर हल चला सकता था, रोलर चला सकता था, धरती को चाहे तो जरखेज या बंजर बना सकता था। क्योंकि वह मर्द की खेती थी। उसे बोलने की बात तो दूर उफ करने का भी कोई हक नहीं था। मर्द उसका कोई भी भी इस्तेमाल कर सकता था। लेकिन बदलते समय के साथ शिक्षित मुसलिम महिलाओं ने स्वंय को पहचानना शुरु कर दिया है, और इसे शुभ संकेत माना जाना चाहिए।
जौकी साहब का लेख बहुत बड़ा है और वे अपने ही समुदाय के धर्मगुरुओं के पाखंड की धज्जी उड़ाते हैं। जिस बदलाव को जौकी साहब शुभ संकेत मान रहे हैं कल्बे उस पर दहाड़ रहे हैं। उन्हें मंच से ललकारती हुई स्त्री डरा रही है। अगर स्त्री के हाथ सत्ता आई तो इनकी दूकाने बंद हो जाएंगी। इनके फरमान कौन सुनेगा। वे अपने आंगन से उठती हुई लहरें देख रहे हैं...डर रहे हैं। एक स्वतंत्र स्त्री सबको मर्दवादी मानसिकता को किसी चुनौती की तरह डराती है। ये सारे पाखंडी जहां तहां मस्जिदो, मदरसो पर कब्जा जमा कर बैठे हैं उनका क्या होगा। सारे रौब तो स्त्री समाज के लिए है। अपनी अय्याशी के लिए सामान की तरह औरते कहां से जुटाएंगे। उनके फरेब में जागरुक औरते नहीं आएगी। ये भयभीत..भीरु मर्दो का विलाप है....इन्हें अनसुना करने की जरुरत है...तभी तो जावेद अख्तर कहते हैं...यह मुसलिम महिलाओं को तय करना है कि वे एसे गुरुओं की बातें माने या फिर खुद फैसला करें।
March 14, 2010 at 12:18 AM
इनको जरा भी समझ नही होती
March 14, 2010 at 12:37 AM
आपने नाम गलत लिखा है.....कलवे जव्वाद नहीं....कलवे जल्लाद है.
लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com
March 14, 2010 at 4:35 AM
गोया धर्म न हुआ ...कई तारो का जाल हो गया के औरत ने वहां पाँव रखा तो फ्यूस ......यहाँ रखा तो फ्यूस......बस उकडू होकर बैठी रहे......
March 14, 2010 at 7:33 AM
कल्बे ने क्या ग़लत कहा ! (उसे सिखाया ही यही गया है ).
March 14, 2010 at 6:29 PM
दलितों,पिछड़ों की चिंता से उपजे इस आकुल बयान पर भी गौर करें-
मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में कहा है कि इस विधेयक के पारित होने के बाद संसद में पुरुष सदस्यों की संख्या नगण्य रह जाएगी.
उन्होंने तर्क दिया कि विधेयक पारित होने के बाद पहले चुनाव में 33 फ़ीसदी सीटों पर महिलाओं काबिज होंगी और उसके अगले चुनाव में आरक्षित सीटों को बदला जाएगा लेकिन जीती हुई महिलाएँ अपनी पुरानी सीट से चुनाव लड़ेंगी, इस तरह तीन चुनावों के बाद संसद में महिला सदस्यों की संख्या 80 से 85 फ़ीसदी होगी.(स्रोत बीबीसी हिंदी डॉटकाम)
March 15, 2010 at 10:16 AM
विचारणीय मुद्दे हैं आपके इस आलेख में ।
March 19, 2010 at 10:38 AM
'कल्वे जल्लाद' हमारे शहर लखनऊ के नाम पर धब्बा है........कितने शर्म की बात !!!!!ये बौखलाए हुये लोग तय करेंगे करेंगे की स्त्री की जगह कौन सी है ........, अरे पहले ये तो जान लो की तुम आए कहाँ से हो ? जौकी जी को दिल से शुक्रिया .
March 26, 2010 at 3:06 AM
jabardast lekh ... badhai ho aapko..
March 27, 2010 at 11:36 AM
geetasriji,
kalve javvaad ke bayaan par hamara kuch bhi bolna koi arth nahin rakhta.yah muslim mahilaon ko sochna hai ki ve aise pakahandiyon ko kya sabak sikhayen.maine hans mein do lekh likhe hain jinke chhapne par jahan mere muslim doston ne mubarqbad dee vaheen kuch leegee muslimon ne mere khilaf bhi likha.maine bahut sochne ke baad yah faisla kiya hai ki islam se sambandhit kisi bhi mamle par koi rai nahin doonga.mujhe lagta hai ki vahan sach sun sakne kee taab kisi mein nahin hai.sach kadva hota hai aur har kisi ko bura lagta hai.mujhe bhi bura lagta hai jab koi meri ninda karta hai lekin ek vaqt par samajh mein aata hai ki main galat tha tabhi meri ninda hui.islam mein galat kuch bhi nahin hai.aisa uski vyakhya karne wale kahte hain.to sahi hi kahte honge.kyonki kuch bhi kahne ke liye ve islam ka hi sahara lete hain.islam ke baare mein meri jaankari nahin hai.kalve sahab shiya sampraday ke neta hain,jaroor unhone addhyayan kiya hoga aur ve sahi pravakta hone ka haq rakhte honge.yadi unke anusaar muslim mahilaon ko ghar mein rahkar bacche paida karna chahiye to unhone sahi hi kaha hoga.islam ke anusaar koi saccha musalmaan jhooth nahin kah sakta.kalve sahab se bada musalmaan kaun hai?
krishnabihari
March 30, 2010 at 6:54 AM
कृष्णबिहारी जी की पीड़ा उनके शब्दों मे व्यक्त हो रही
है ....उन्होने न कहते हुये भी क्ल्वे जव्वाद के लिए
बहुत कुछ कह दिया है ....पर कल्वे जव्वाद जैसे लोग सिर्फ फतवे करना जानते हैं किसी भी सामाजिक समस्या से उनका कोई सरोकार नही है .
March 30, 2010 at 10:33 AM
जो औरत को खूबसूरत बच्चा पैदा करने की नसीहतें दे रहें हैं और संसद में आने से रोक रहे हैं वे जानवर से भी बदतर नही हैं क्या ? जानवर तो अपनी सहगामिनी के साथ सहृदय होता है .क्यों न ऐसा होंकि ये कोठरी में रहें और खूबसूरत बच्चे पैदा करने से ज्यादा कुछ ना करें !!
Post a Comment