0 गीताश्री 0 कबीरदास को अब तक हम सब एक संत कवि के रुप में जानते रहे हैं, लेकिन कबीर का एक नया रुप भी है. स्त्रियों को गरियाते, उनकी लानत मलामत करते कबीर... धमकाते हुए कबीर कि अगर तुमने अपनी आजादी या चुनाव या स्वेच्छा की बात सोची भी तो पीट-पीट कर नीली कर दी जाओगी...
स्त्री की सारी आजादी छीन ली क्योंकि उसका कंत बहुत गुणों वाला पहले ही घोषित कर दिया गया है. और बेगुणी, बेलच्छनी, बेशऊर स्त्री को अब उसे ही सर्वस्व मान लेना है......
February 23, 2010 at 1:05 AM
प्रेममार्ग में स्वयं को ईश्वर की कामना करने वाली नारी मानने की परम्परा रही है। इस दृष्टि से कबीर ने जो कुछ भी लिखा है वह सामान्य नारी के लिये नहीं बल्कि स्वयं के लिये है क्योंकि अपने इष्ट के विरह के कारण है।
अब यदि कोई अर्थ का अनर्थ निकालना चाहे तो क्या किया जा सकता है?
February 23, 2010 at 10:25 AM
बिल्कुल ठीक पहचाना आपने कबीर को और इसके कृत्य के लिए उन्हें उनकी सारी संतई से वंचित कर देना चाहिए ........मगर मेरी समझ में एक बात नहीं आती कि जब आजकल धडल्ले से धारावाहिकों में , विज्ञापनों में , फ़िलमों में , सभी जगह ....नारी को अपमानित किया जा रहा है ....अब इसे यदि अपमान माना ही न जाए तो और बात है ....तो ऐसे में आप जैसी लेखिकाओं की कलम कुछ क्यों नहीं कहती .....शायद बाज़ार कहने नहीं देता ....कबीर को ही कोसना ठीक रहेगा ....कौन सा कबीर आपसे अपनी नाइत्तेफ़ाकी रखने वाले हैं , और हां मोडरेशन के कारण अक्सर बहस को दिशा नहीं मिल पाती है , इसलिए टीपों के छपने में ्ज्यादा विलंब न हो तो अच्छा रहता है
अजय कुमार झा
February 23, 2010 at 12:52 PM
जगजाहिर है कि प्रातःस्मरणीय संत कबीर ने स्वयं को दासी और निर्गुण, निराकार ईश्वर को अपना प्रेमी या स्वामी माना है... प्रसिद्धि बटोरने के लिए आज कल बुद्धिमान लोग भी अपनी कुबुद्धि को सक्रिय करने में लगे हैं... ये उसी का परिणाम है..
जय हिंद...
February 25, 2010 at 3:04 AM
अजय जी, कबीर पर जो बहस चल रही है, मैं अभी उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही हूं...मैं चाहती हूं लोग बहस करें,कोई नई बात निकल कर सामने आए।
जहां तक माडरेशन की बात है..थोड़ी देर हो जाती है। हमेशा आन लाइन नहीं रहती। जैसे ही मौका मिलता है, माडरेट कर देती हूं। देर के लिए माफी चाहूंगी। वैसे आपको नहीं पता कि कितने अजीब और अश्लील टिप्पणियां शुरुआती दौर में मैं झेल चुकी हूं। अभी भी झेलती हूं, मुख्य पेज पर गपशप कालम में लोग बाग क्या नहीं कह जाते। चाहूं तो पता भी कर सकती हूं कि कहां से मेल किए गए। एकाध बार मन आहत हुआ। फिर लगा कहीं कोई करीबी निकल आया तो...। रहने दिया। खैर...
जन मुद्दों की बात आप कर रहे हैं मैं लगातार ब्लाग में लिख रही हूं। हो सके तो एक बार खंगाल डालिए। मैं बाजार नियंत्रित विचार नहीं रखती। रखती होती तो इतना विरोध ना झेलती। कबीर पर भी एक संदर्भ मिला तो बात कर ली। जानबूझ कर खोद कर नहीं निकाला है।
फिर भी आपका शुक्रिया।
गीताश्री
February 25, 2010 at 7:48 AM
Kabir ne nishchit hi apnee rachnaaon mei kuch aisaa wyakt kiya hai jis'se aaj ki aadhunik naaree ka DIL aahat ho saktaa hai Lekin mera vinamra nivedan hai ki hume us kaal ke sandarmbh ko bhi dekhanaa chaahiye ... ho saktaa hai kuch rachaanye kaal ke sandarmbh mei naaree ke virodh mei lihi gayee ho ... Lekin Ajay kumar Jha ke iss kathan se katayee itefaaq nahi rakha ja saktaa ki SANT KABIR ko unki saari santayee se vanchit kar dena chaahiye ...
March 2, 2010 at 8:32 AM
aap ydi aurt ki bat kr rhin hain to smpoornta se kriye kbir ne kevl islam aane ke bad ki aurt ki sithiti vrnn ki hai prntu islam me aurt ke bare me kya likha hai yh nhi vykt nhi kiya hai kya aap naitikta ke nate vh bhi vykt kr payengi ya nhi ydi nhi to fir kyo nari vad ka jhooth moot jhnda utha kr mt vishesh pr tomt lgane ki thekedari kr rhai hain
dr.ved vyathit
March 8, 2010 at 2:51 AM
'अकथ कहानी प्रेम की ' के जरिये आपने कबीर के जिस पहलू से अवगत कराया है उससे इनकार नही किया जा सकता पर समग्रता की नज़र से कबीर से हम दूर भी नही जा सकते ....कबीर जनमानस मे इस कदर घुले हैं की उनका उजला पक्ष ही दिखता है ,अब पुरुषोत्तम जी की किताब ने यदि इस बात को उठाया है तो बहस तो होनी ही चाहिए . स्वस्थ बहस के बजाय लोग तुलना करने मे क्यों लग जाते हैं ?
March 17, 2010 at 2:06 AM
Mei intezaar kar rahaa hoon Geetashree G ke final comments ka ........
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