एकाकीपन के कुछ साल

Posted By Geetashree On 8:36 PM

--करीब चार करोड़ अकेली महिलाएं
--आपबीती बताने दिल्ली पहुंची
--कुरीतियां थोपे जाने का विरोध
--घरेलू हिंसा का चिठ्ठा खोलेंगी

अब अकेली रहने वाली महिलाओं ने अपनी चुप्पी तोड़ने का फैसला किया है और एक मंच पर आ पहुंची हैं, जहां से उठाएंगी अपनी आवाज, जो शायद बहरे कानों को भी भेद सके। एकल महिला काना कोई घर होता है ना कोई रिश्तेदार।जिस घड़ी वह अकेले चलने का फैसला करती है उसे सचुमुच अकेले छोड़ दिया जाता है। इस फैसले के साथ कोई नहीं होता...आप जानते हैं ये कौन हैं एकल जीवन जीने वाली महिलाएं। इनमें शौकिया कम...मजबूरीवश एकल जिंदगी जीने वाली महिलाएं ज्यादा हैं। सबके अपने अपने सामाजिक कारण हैं। कोई विधवा होकर घरवालों द्वारा संपत्ति से बेदखल कर दी गई है, किसी के बच्चे छोड़ गए हैं, किसी का पति त्याग कर चुका है, किसी की शादी नहीं हुई या नहीं की, किसी को डायन या मनहूस बताकर समूचे समाज से काट दिया गया है... , इसी तरह की एकल महिलाएं अपनी चुप्पी तोड़ेंगी। विदेशी मूल की सामाजिक कार्यकर्त्ता डा. गिन्नी श्रीवास्तव और नारी शक्ति संस्थान की अगुआई में राष्ट्रीय मंच बना कर 14 राज्यों से करीब डेढ सौ महिला संगठनों की प्रतिनिधि अपना मांग-पत्र केंद्र को देंगी।

इन महिलाओं से मिले तो पता चलता है कि समाज-प्रशासन उन्हें सामान्य नागरिक तक मानने को तैयार नहीं ना ही उस नाम पर मिलने वाली सुविधाओं का हकदार उन्हें मानते हैं। इनके पास कोई परिवार नहीं, इसलिए अलग से कोई राशन कार्ड नहीं। ये चाहती है कि एकल महिला को भी अलग पारिवारिक इकाई माना जाए तथा उसका राशन कार्ड बनाया जाए। सभी एकल महिलाओं उनके बच्चों को निशुल्क स्वास्थ्यसेवा उपलब्ध कराई जाए, उन्हें पैतृक व ससुराल की भूमि एवं संपत्ति में बराबर का अधिकार मिले। बजट में इनके लिए अलग से प्रावधान हो र 2011 का जनगणना रिपोर्ट में एकल महिलाओं की विभिन्न श्रेणियों--विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, अविवाहित आदि को अलग वर्ग के रुप में दरशाया जाए।

अभी तक एसी महिलाए हाशिए पर रहती आई हैं..जाहिर उनका दर्द बहुत बड़ा है। यह सच किसी से छुपा नहीं है कि एक अकेली महिला को समाज किस नजरिए से देखता है। वैसे भी औरत ने चौखट से कदम बाहर निकाला नहीं कि सबसे पहला हमला उसके चरित्र पर किया जाता है। एसे में कोई स्त्री अकेली रहने का फैसला करे या विवशतावश अकेली रह जाए तो सोचिए...किन किन खिताबो से उसे नवाजा जाता है। उसकी पीठ पर संदेह की चिप्पी किसी इश्तेहार की तरह टांक दी जाती है...

यह सम्मेलन कई कोणों से बेहद महत्वपूर्ण है...हम एक आधुनिक-समकालीन समाज में सांस ले रहे हैं..वक्त आ गया है कि एकल महिलाओं के बारे में समाज अपना दृष्टिकोण और रवैया बदले, उन्हें हाशिए से उठा कर मुख्यधारा से जोड़े।

दो दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन पर होगी हमारी नजर..और हम रोज इसकी खबर आप तक पहुंचाएंगे...आज से शुरु हो रहा है..चुप्पी का विस्फोट...

Rangnath Singh
October 6, 2009 at 10:48 PM

यह एक सराहनीय कदम है। मीडिया को भी इनके सम्मेलन का कवरेज देनी चाहिए। लोगों में संवेदनशीलता बढ़ेगी। आगे की रिपोर्ट का इंतजार रहेगा।

Dr. Zakir Ali Rajnish
October 6, 2009 at 11:52 PM

सार्थक प्रयास है। दुनिया ऐसे ही प्रयासों से बदलती है।
करवाचौथ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

Sanjay Grover
October 6, 2009 at 11:57 PM

तस्वीर देखकर डर लग रहा है। ऊंचाई पर इतना अकेलापन होता है या अकेलेपन में ही इतनी ऊंचाई संभव है ? यह मैं किसी और से क्यों पूछ रहा हूं !?

अन्तर सोहिल
October 7, 2009 at 3:31 AM

"वक्त आ गया है कि एकल महिलाओं के बारे में समाज अपना दृष्टिकोण और रवैया बदले"

सचमुच जरूरत है इस चुप्पी के विस्फोट की

प्रणाम स्वीकार करें

rashmi ravija
October 7, 2009 at 7:02 AM

यह एक बहुत ही अच्छी खबर है,...किसी ने तो इन एकाकी महिलाओं की सुध लेने की सोची. आपने अपने आलेख में इनके एकाकीपन के सभी पक्षों पर अच्छी रौशनी डाली है....किस तरह इन्हें ज़िन्दगी के जद्दोजहद से रोज जूझना पड़ता है,ये बस वही जानती हैं... उम्मीद है यह सम्मलेन सिर्फ भाषण,पर्चों और नारों तक ही सिमित न रह जाए,और सचमुच कुछ सार्थक कदम उठाये जाएँ.

सुशीला पुरी
October 7, 2009 at 7:23 AM

आह !!!!!!! चुप्पी का विस्फोट ........सन्नाटे की हत्त्या........मौन की चीख ........आवाजों का मेला ........याकि एक नई सुबह ?

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
October 11, 2009 at 4:49 AM

नया बात थी..कभी इस तरफ सोचा न था.

Anonymous
October 12, 2009 at 10:08 PM

बिलकुल सही बात है गीता जी !
ये अकेले रहने वाली महिलाएं ,अपनी
मेहनत हिम्मत और जुझारूपन से तो
देश के मुख्य धारा से जुडी हैं ,लेकिन
समाज से उन्हें हर स्तर पर अवमानना मिलती है !
इसके पहले की चुप्पियाँ तेजाब बनें ,लोग सुन लें तो अच्छा है !

प्रज्ञा पांडेय
November 2, 2009 at 8:29 PM

aurat samaj ki ek swatantra ekaai jab tak maani nahin jaayegi tab tak hamara samaan apang hi rahega ..iss baat ko hum sab tak pahunchaane ke liye aapko badhayi geetasree ji