राष्ट्रीय महिला आयोग को इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि मध्य प्रदेश के शहडोल में कन्यादान योजना का लाभ देने से पहले जिला प्रशासन ने आदिवासी एवं अनुसूचित जनजाति की युवतियों का कौमार्य परीक्षण करवाया था। आयोग के समक्ष परीक्षण की प्रक्रिया से गुजरने वाली लड़कियों के बयान से पूरा मामला साफ हो गय़ा है और दोषियों का चेहरा बेनकाब हो गया है। अब क्या जवाब देंगे और कहां जाकर मुंह छिपाएंगे वे लोग, जिन्होंने सरेआम लड़कियों को बेइज्जत किया।
सारा कांड जिलाधिकारी के निर्देश और नेतृत्व में हुआ। प्रशासन की देखरेख में जो घिनौवना खेल खेला गया, उसकी क्या सफाई. उसका क्या पक्ष। संसद में हंगामा हुआ तो कहा गया कि आयोजको का पक्ष तो सुनिए। कितनी हास्यास्पद बात है। पहले इज्जत लूटो फिर कहो हमारा भी पक्ष सुनो, क्योंकि ये जरुरी था...। क्यों सुने आपका पक्ष। चोरो, बेईमानों का भी अपना पक्ष होता है। उनकी सुनें तो अराजकता ना फैल जाएगी। प्रशासन किस मुंह से रखेगा अपना पक्ष, क्या कहेगा कि कैसे चालाकी को औजार बना कर, लालच देकर सौ से ज्यादा लड़कियों को बेईज्जत कर दिया। किसने आपको ये अधिकार दिया कि आप लड़कियों को कौमार्य परीक्षण करें। आपके बेहुदा तर्को का कोई अर्थ नहीं इस लोकतांत्रिक समाज में। आपने पहले लालच दिया, उन गरीब घर की लड़कियों को, कि मेडिकल परीक्षण करवा लो तभी सरकार की तरफ से 6500 रुपये की कीमत का घरेलु सामान दिया जाएगा। ये सरकार की तरफ खुलेआम दिया जाने वाला (गैरकानूनी) दहेज है। जबकि उन्हें दहेज शब्द से ही घिन आनी चाहिए।
इस योजना के लिए जारी सरकारी घोषणा के अनुसार इसमें विधवा, तलाकशुदा या परित्यक्त औरतें भी शामिल हो सकती हैं। बशर्ते वे खुद से अपने विवाह का खर्च उठाने की स्थिति में ना हों। गरीबों के लिए सरकारी खजाने से दी जाने वाली यह बड़ी सहायता है। लोग आसानी से झांसे में आ जाते हैं।
लड़कियां आसानी से मान गईं। वे गरीब थीं, लाचार थीं, जिन्हें मां बाप गाय की तरह किसी खूंटे से बांधने के लिए ले आए थे। उनके सामने रास्ता क्या था। एसी सामूहिक शादियों मे अपनी पसंद की कोई जगह नहीं होती। उन्हें तो यह भी नही पता होता कि उनकी जीवन किस खूंटी में बंधने जा रहा है..क्या लिखा है उनके भाग्य में। कौन होगा जीवन साथी। बस शादी करनी है और उनके होने का मतलब यही है। लड़की हो तो शादी एक अनिवार्य शर्त्त है। ये भारतीय समाज की सच्चाई है। लड़की के पैदा होते ही उसकी शादी के दिन रात सपने देखने वाले मां बाप से और क्या उम्मीद की जा सकती है कि जितनी जल्दी हो एक खूंटा तलाश लें और गंगा नहाए। गांव में दो कहावतो का एक ही मतलब है...आज मैं घोड़ा बेचकर सोया या एसे सोया जैसे बेटी की विदाई कर दी हो।
दोनों में घरवाले एक जैसी नींद लेते हैं।
प्रशासन चला एसे घरवालों का बोझ हल्का करने। जिस वक्त परीक्षण के दौर से लड़कियां गुजर रही थीं तब क्या उनके घरवाले बहरे-गूंगे हो गए थे। उन्हें दिखाई नहीं दिया कि मेडिकल परीक्षण के नाम पर उनकी लड़कियों को नंगा किया जा रहा है।
वैसे भी इस योजना में लाभान्वित होने वाली लड़कियों में ज्यादातर आदिवासी थीं और आदिवासी संस्कृति में यौन वर्जनाएं दूसरे समाजो की तरह नहीं है। आपको यह सच स्वीकारना चाहिए।
उन लड़को का क्यों नहीं परीक्षण करवाया जो शादी के लिए लपलपाए चले आए थे यो सोचकर कि एकदम वर्जिन लड़की मिलेगी। लड़के चाहे किसी समाज के हों, वे क्या दूध के धुले होते हैं। खुलापन तो उनका मौलिक अधिकार है, जिसका वे भरपूर फायदा उठाते हैं और शादी के लिए वर्जिन लड़की तलाशते हैं। एक हिंदी फिल्म का संवाद है जो मुझे कभी नहीं भूलता...ईश्वर ने तुम औरतो को कोख देकर हम मर्दो का काम आसान कर दिया है। क्या लड़कियों को गर्भवती हवा ने कर दिया था। एसी ही मानसिकता वाले लड़को की वजह से हालात एसे बनते हैं। इनको जांचो और पूछो कि क्या ये वर्जिन हैं, किसी लड़की को कभी छुआ नहीं। इनके पास कोख नहीं इसलिए पूछने या शक करने का आधार नहीं।
कुछ लड़कियां गर्भवती पाई गईं इसलिए सारी लड़कियों की जांच हुई।
ये लड़कियों की निजता पर सीधा हमला है। इससे प्रशासन का स्त्री विरोधी रवैया जाहिर होता है। वैसे भी कूपमंडको को औरतो की आजादी पर हमला बोलने का बहाना चाहिए। कभी ड्रेस कोड लागू करो, कभी वैलेंटाइन डे मत मनाने दो...पुरुष मित्रों के साथ हाथ में हाथ डाल कर मत घूमने दे...कुछ भी एसा ना करने दो जिससे इनकी तथाकथित संस्कृति खतरे में पड़ जाए।
July 19, 2009 at 2:02 AM
गीताश्री जी ! बधाई ............कितना घिनौना और शर्मनाक हुआ है ,फिर भी बड़े बड़े कलम घिस्सू लोग चुप्पी साधे हैं ......आपने
इतनी हिम्मत से उन ब्रह्मचारी कुवांरों से सवाल किया है ......बेहद अच्छा लगा .....कब सुधरेगा अपना देश ????????
July 19, 2009 at 2:40 AM
निश्चित तौर पर ये लड़कियों की निजता पर हमला है, लेकिन एक खबर आई थी कि पैसों के लालच में कई जोड़े दोबारा शादी के लिए चले आए थे. ऐसे में उन्हें रोकना भी तो ज़रूरी है. मुझे लगता है कि प्रशासन को कोई वैकल्पिक तरीका अपनाना चाहिए थे.
www.baharhaal.blogspot.com
July 19, 2009 at 6:00 AM
नेता को वोट चाहिए और बाबू को फ़ाइल का पेट भरना है...इस बीच ये नैतिकता-फैतिकता कहां से आ गई...इंसान की कीमत बस इतनी ही बची है (अगर बची भी है)
July 19, 2009 at 6:13 AM
geetashree ji ladkiyo ka kaumarya parikshan to prakash main aa gya,yeh sarkar to aur bhi bhaut se ghinone khel khelti hai,jo andhkar main rehtey hai.
July 19, 2009 at 11:28 AM
geetshree ji ye purush apne ko samajhate kya hain ... .. khulker chillanewale log abhi morche per tayyar hi nahin hain .. isiliye ye viibhats pareekshan ho rahe hain ... sharm naak hai . kab tak yeh sab sahana hai akhir..
July 19, 2009 at 11:51 PM
namaskaar geeta ji agar yaisa hua ti nishchat hi galat hua aur badi durbhagy purn ghatna hai lekin kisi nishit varg visesh ko puvagrh se grsit ho kar yun aap ko tikhi tipadiya nahi deni chahiye
vaise aap swtantr hai
anytha nahi le saadar
praveen pathik
9971969084
July 20, 2009 at 3:34 AM
प्रवीण जी, मैं पूर्वाग्रह से नहीं भरी हूं. लेकिन सदियों से एक खास वर्ग ने हमें जो दिया है, हमारे साथ जो किया है, उसके बारे में लिखने, बोलने का साहस अब हममें आया है। आप नहीं चाहते कि हम अब भी बोलें। जो हुआ वो आपके सामने है। मैंने हमेशा घटनाओं के आलोक में अपनी बात रखी और उस मानसिकता पर चोट की जो आज भी गाहे बगाहे महिलाओं को प्रताड़ित करने का रास्ता तलाश लेता है। आपको यकीन आएगा एक दिन..
फिलहाल आपको शुक्रिया कि आपने पढा।
गीताश्री
August 8, 2009 at 12:09 PM
Geeta ji nice to read ur blog likhti rahe achcha hai bahut achcha hai aur aapka profile bhi keep it up.
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