आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हो रहे हमलो के बीच एक दिलचस्प खबर आई. जो औरतो की दुनिया की से ताल्लुक रखती है. सबकी नजरो से खबर आई गई हो गई. छात्रों पर हो रहे हमले से मन खिन्न था लेकिन एक खबर थी मुझे चौंका नहीं रही थी, बस खलबली थी, भीतर कहीं..
आज से तीन साल पहले मैं तीन देशों की यात्रा पर गई थी, महिला पत्रकारों के एक समूह के साथ. हमें
वहां की औरतों की समाज में स्थिति पर अध्ययन करना था। वो देश थे, बेलजियम, जर्मनी और लंदन. शुरुआत हुई ब्रसेल्स से यानी बेल्जियम से. वहां अध्ययन के दौरान पता चला तो हमारी हैरान होने की बारी थी। लंदन तक पंहुचते पंहुचते हम कंवींश हो चुके थे...सब समझ में आ गया था.
पहले आस्ट्रेलिया की वो खबर बता दें जिसने मुझे यो पोस्ट लिखने को उकसाया. खबर एक लाइन..आस्ट्रेलियाई महिलाओं की शादी से ना. वहां की ज्यादातर महिलाएं तमाम उम्र शादी ना करने का फैसला ले रही हैं. यह बात पेसिफिक माइक्रो मार्केटिंग नामक अनुसंधान संस्था द्रारा पता लगाई गई है। समाचार एजेंसी डीपीए ने जनसंख्या विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध करवाए गए आंकड़ों के हवाले से बताया है कि आस्ट्रेलिया की 51 फीसदी महिलाएं अविवाहित हैं, और एक चौथाई से ज्यादा महिलाएं चाहती हैं कि वह एसे पुरुष के साथ रहें जो रिश्ता निभाने के लिए समझौते करने को भी तैयार हो. यह मनोवृति महिलाओं को एकल जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है जो पुरुषों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है.
वैसे आमतौर पर आर्थिक रुप से स्वतंत्र महिलाएं देर से शादी करने की इच्छा रखती हैं, लेकिन आस्ट्रेलियाई समाज में हो रहे बदलाव दिखाते हैं कि महिलाओं ने घर और रिश्तों की परिभाषाएं ही बदल दी है.
यहां पर बता दें कि इन दिनों समूचे पश्चिम समाज में यह चलन तेजी से फैल चुका है. तीन साल पहले की ही तो बात है जब हम तीन विकसित देशों का यात्रा करके जान समझ करके लौटे हैं. अब उनमें आस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया है...हमारे अध्ययन के मुताबिक बेल्जियम की औरतो ने शादी तो कर ली लेकिन बच्चे पैदा करने से मना कर दिया. ना तो वहां क्रेच है, ना ही भारत की तरह 24 घंटे वाली मेड मिलती है. पार्टटाइम मेड जितना पैसा मांगती है उतने में उनकी आधी कमाई निकल जाती है. बच्चे के लालन पालन का बोझ किस पर पड़ता है-औरतों पर. कामकाजी औरतें दोतरफा मार झेलने के लिए अब तैयार नहीं हैं और परिणामस्वरुप उन्होंने मां बनने से ही विद्रोह कर दिया. भारत की तरह नहीं कि कामकाजी औरत दोनो मोर्चो पर मुस्तैदी से डटी रहे, बदले में अपने बच्चे की एक मीठी मुस्कान से अपनी थकान उतार ले. .घर और समाज तारीफ के पुल बांधे...देखो तो ...फलां महिला कितनी कुशल है. घर और नौकरी दोनों कैसे संभाल रही है...समाज खुश..घरवाले खुश...और खुद भी धीरे धीरे खुश होने की प्रक्रिया में शामिल (और चारा भी क्या है) । एक सुघड़ औरत और कर भी क्या सकती है.
अब भारतीय महिलाएं भी बदल रही है, बदल रही है उनकी सोच. मैं कई एसी शादी शुदा ल़ड़कियों को जानती हूं जो बेखौफ फैसले ले चुकी हैं और अपने साथी को भी धीरे धीरे मानसिक रुप से इसके लिए तैयार कर चुकी हैं. हां तो मैं विदेशों का बात कर रही थी...चाहे किसी देश की महिला हो, समस्याएं कमोबेश एक सी हैं. खासकर कोख और किचेन के मामले में. इसीलिए अधिकांश देशों की महिलाओ का कोख से मोहभंग हो चुका है.वहां की सरकारें चिंतित हैं..जनसंख्या घट रही है..पिछले साल जर्मनी से एक खबर आई थी कि वहां की सरकार वो तमाम सुविधाएं देने पर विचार कर रही है ताकि महिलाएं अपने फैसले बदल लें.
June 27, 2009 at 9:56 AM
ओ हो ये यो चौंकाने वाली खबर है...ऐसे कैसे काम चलेगा?
June 28, 2009 at 7:40 AM
जनसंख्या बढ़ाने के लिए तो भारत अकेला काफ़ी है संसार को आराम करने दीजिए :)
June 29, 2009 at 11:39 AM
mahilaaon men chetanaa jage yeh ek hud toh theek hai .. per prakirtik vyavstha ko nakarane ka nateeja sukhad nahin hoga.
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