गीताश्री
सीरिया से कुवैत आते हुए फ्लाइट में सहयात्री अमेरिकी जेरी एल डौडरमैन ने एक सीरियाई यात्री से पूछा कि क्या तुम मेरे आईपॉड से गाना सुनना पसंद करोगे? संगीत प्रेमी सीरियाई ने मना कर दिया. बिजनेसमैन जेरी हंसा और बोला-क्यों, मैं एक अमेरिकी हूं इसलिए. भरोसा नहीं मुझ पर? सीरियाई झेंप गया. जेरी ने कहा, भई बुश का युग गया. अब ओबामा युग है. संबंध बदल रहे हैं. हम इतने बुरे नहीं. जेरी को इस सच्चाई का पता है कि सीरियाई अमेरिका से कितनी नफरत करते हैं और बिना उसकी सहायता के अपनी अर्थव्यवस्था को निरंतर मजबूत बनाए जा रहे हैं. वे उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में ये इंप्रेशन बदलेगा.
मैं पास में बैठी यह सब देख सुन रही थी. जेरी मेरी तरफ घूमा. सीरिया के बारे में वो मेरा अनुभव जानना चाहता था. बिजनेस के सिलसिले में वह दुनिया भर में घूमता रहता है. वह सीरियाई लोगों के उदार स्वभाव और दोस्ताना रवैये की देर तक मुझसे चर्चा करता रहा. मैं उसके इंप्रेशन से सौ फीसदी सहमत थी. सीरियाई लोग बेहद खुले दिल वाले और हमारी तरह मेहमान नवाज होते हैं. हम शायद अजनबियों को देख कर ना मुस्कुराए या हेलो ना कहें मगर आप सीरिया के किसी भी शहर की गलियों से गुजरेंगे तो इतनी मुस्कुराहटें राहों में मिलेंगी कि आपके होठ बंद होना भूल जाएंगे. वे आपसे पूछेंगे...पाकिस्तान...आप कहेंगे नहीं इंडिया. वे कहेंगे--हिंदिया...मरहबा..मरहबा.... किसी कोने से ये आवाज आएगी, शाम्मी कापूर(शम्मी कपूर).... गाने के बोल आपके कानों से टकराएंगे....अई अईया करुं मैं क्या..सूकू सूकू....
सीरिया में शम्मी कपूर की इतनी लोकप्रियता देख कर हम दंग रह गए. अब तक जहां गए वहां राजकपूर, सलमान खान, शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, अमिताभ बच्चन सरीखे सितारों के प्रति दीवानगी देखी. शम्मी कपूर को चाहने वाला ये देश उन्हीं की तरह मस्त और सूकू सूकू(जापानी शब्द, हिंदी में बहुत बहुत प्यार)वाला निकला. हमनें दमिश्क की गलियों में एक दिन बिताया.
वह शुक्रवार की शाम थी. छुट्टी का दिन और मस्ती की शाम. एक कैफे है 'अल-नौखारा.' वहां की पारंपरिक किस्सागोई 'हाकावती' करने वाले किस्सागो राशिद अल-हलक अबू सादी जिस मजे से अरबी संस्कृति और वीरता की कहानियां सुनाते हैं उतने मजे से भारतीय पर्यटको को हिंदी गाना सुनाते और सुनते हैं. एक हाथ में अरबी इतिहास का छोर थामे हैं दूसरे में भारतीय गीत-संगीत. भारतीय पर्यटकों को देखकर उनके हाथ से किस्सों की किताब छूट जाती है और वह अपनी मुद्राएं शम्मी कपूर की तरह बना लेते हैं. कैफे में भरे चिलम के धुंए के बीच शम्मी कपूर अगर उन्हें अई-अईया... सूकू सूकू गाते हुए सुन लें तो उन्हें नशा आ जाए. इस किस्सागो के लिए हरेक भारतीय पर्यटक शम्मी कपूर है और सूकू सूकू... गाना उसका परम कर्तव्य. सीरिया के इस इकलौते किस्सागो की कहानियां सुनने के लिए सीरियाई लोग शाम को यहां इकट्ठे होते हैं वही अरबी तलवार बीच में छोड़कर रोमांटिक मुद्रा अख्तियार कर लेता है. भारतीय पर्यटकों से गाना सुनाने का अनुरोध करता है, उनकी तस्वीरे उतारता है, गाने रिकार्ड करता है, अपनी अकेली और अंधेरी रातों के लिए.
यही हाल और नजारा पूरे सीरिया का है. हर दुकान, हर चौक चौराहे पर सीरियाई लोगों की नजर आप पर पड़ी नहीं कि मुस्कुराएंगे-कहेंगे..मरहबा मरहबा(स्वागत है स्वागत है) और तत्काल हिंदी गाना गाकर आपको खुश कर देते हैं. मिथुन चक्रवर्ती भले ही भारतीय समाज के एक खास सिने प्रेमी वर्ग में ना सराहे गए हों, सीरिया में वे आज भी अपने डांस पर बूढे- नौजवान को थिरका रहे हैं. 'आया मैं डिस्को डांसर...पुरानी और नई पीढ़ी दोनों को जवां बनाए हुए है.
एलेप्पो सीरिया का ऐतिहासिक शहर है. वहां का ओल्ड सूक बहुत फेमस है.
मैं जब वहां शापिंग कर रही थी तब शम्मी कपूर के दीवाने दूकानदारों ने आवाजें लगानी शुरु कर दी. पूरा बाजार जैसे हमारी तरफ घूम गया. मैं सूकू सूकू गा गा कर बोर हो गई मगर वे ना माने. मैं गाती और वे तालियां बजा बजा कर झूमते. ना जाने कितने लोगों ने मेरा गाना रिर्काड किया. एक दीवाना ऐसा मिला जो जीनत अमान का फैन था. उमर अक्कद नाम है. उसने अपना इमेल दिया और आग्रह किया कि मैं उसे शम्मी कपूर, जीनत अमान और दारो मंदारा (मैं तलाश नहीं पाई)की तस्वीरें भेजूं. पता नहीं दारो...कौन है? किसी को पता चले तो बताए. मैं उमर की सहायता करना चाहती हूं. फिलहाल मैं उसको शेष फोटो मेल करने वाली हूं. उसी बाजार में एक और दिलचस्प दृश्य ने हम सबको हंसा हंसा कर लोट पोट कर दिया. एक शॉल और स्टोल की दूकान थी. जब हम वहां से गुजरे, देखा दूकानदार महोदय हाथ में एक पोस्टर और चाकू लिए खड़े हैं. पोस्टर पर हिंदी में लिखा था-सास के लिए.
सीरिया से जुड़ी अभी दिलचस्प यादें अभी कईं हैं. अगले पोस्ट में वहां की लड़कियों के बारे में. तबतक गाइए...सूकू सूकू...
April 17, 2009 at 9:58 PM
बहुत ही सुन्दर यात्रा वृत्तांत. इसे संयोग ही कहें की अभी अभी हम सीरिया के pictrure पोस्ट कार्ड देख रहे थे. अपोलो के एक चित्र में बहुत सारे घर दिखे जो स्तूप के आकार के दिख रहे हैं. (गोलाई लिए). आभार.
April 17, 2009 at 10:53 PM
बहुत अच्छा है।
April 18, 2009 at 3:07 AM
हम्म... पढ़ कर अच्छा लगा.
April 18, 2009 at 4:12 AM
आमतौर पर यात्राओं के विवरण बेहद उबाउ होते हैं, खास तौर पर उसमें कोशिश की जाती है कि लेखक अपनी पूरी विद्वता उड़ेल कर रख दे.
आपने ऐसी कोई कोशिश नहीं की है और एक रवानगी के साथ सब कुछ साक्षी भाव से रख दिया है. भला लगा.
April 19, 2009 at 1:54 AM
sundar hai geeta ji.
April 20, 2009 at 12:41 AM
बढ़िया लिखा है। बधाई। अगली कड़ी का इंतजार है।
April 20, 2009 at 12:47 AM
apke agle post ka intzar rahega...siriya mein bharat ko apki nazaro se dekhna achha laga...
pankaj narayan
April 20, 2009 at 1:31 AM
ek alag post banti hai suku suku,shammi kapoor aur hindi cinema..
April 20, 2009 at 1:54 AM
सरकार, अंदाज़ आपका जुदा न हो भला ये कैसे हो सकता है, बहुत उम्दा लिखा है. लगा मैं भी वहां से होकर लौटा हूँ.. लेकिन सबसे रोचक बात [ लड़कियों का जिक्र] आपने आगे के लिए टाल दिया ये ठीक नहीं है..... हा.....हा.....हा.....हा.....हा.....हा.....
प्रवीण दुबे
April 20, 2009 at 4:47 AM
दोस्तों आप सबका आभार.मेरा हौसला बढाने के लिए.प्रवीऩ जी, आपको ध्यान में रख कर ही लड़कियों वाला पोस्ट लिखा जाएगा। जल्दी ही आप सीरया में नजर आओगे.
अजय जी, आपकी सलाह बहुत सही है. मैं कोशिश करुंगी लिखने की.दुबारा से सूकू सूकू जिंदा हो रहा है,हमारे भीतर, हमारे बीच.
पुतुल जी, आपको रुचा, जानकर भला लगा.वरना संपादक टाइप जीव कभी संतुष्ट कहां होते हैं, किसी के लिखे से.
अरुण जी, जल्दी ही अगली किस्त...
April 20, 2009 at 8:12 AM
सूकू..सूकू.. :)
April 21, 2009 at 4:08 AM
गीता जी
हम साहित्यकार लोग एक गम्भीरता का मुखौटा ओढ़े रहते हैं और समझते हैं कि हिन्दी में साहित्य रच कर हम भाषा को आम आदमी के नज़दीक ले जा रहे हैं। किन्तु यह एक कठोर सच्चाई है कि बम्बइया सिनेमा राज कपूर के ज़माने से दुनिया भर में हिन्दी का झण्डा ऊंचा किये है। अगर आज ब्रिटेन और अमरीका व कनाडा में हिन्दी अपने पांव जमा रही है तो इसका श्रेय बॉलीवुड की फ़िल्मों को ही जाता है। आपने भी सूकू सूकू करके इस बात का अहसास हिन्दी जगत को करवा दिया।
बधाई।
तेजेन्द्र शर्मा
May 13, 2009 at 10:43 AM
गीता जी सीरियाई लड़कियों का सौन्दर्य खास केर आँखों का बहुत अच्छा लगा,,उनका हुक्का पीना तो और भी कमल की बात है . ऐसा ही होना चाहिए ये समाज जिनमें लड़कियाँ भी इतनी स्वतंत्र हों...
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