इन दिनों भोजपुरी फिल्मों पर किताब लिखने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे नुक्कड़ पर इनका स्वागत है। उनकी ताजा कविता पढिए..
बैठा रहा चांद
चबूतरे के करीब
कोई सिहरन कुरेदती रही
रीढ की हड्डी धीरे धीरे
उतार ना सका
तुम्हारे गंध के केंचुल को किसी तरह
तुम बहती रही रात भर
धमनियों में धीरे धीरे
February 21, 2009 at 5:51 AM
अविजीत घोष जी की कविता से परिचय कराया आपका आभार. लेकिन कविता एक ही क्यों ?
February 21, 2009 at 6:11 AM
कविता अच्छी है.
February 21, 2009 at 6:33 AM
कविता पसंद आई
February 21, 2009 at 3:06 PM
Geetashreeजी
अविजीतजी घोष कि कविता बहुती ही अच्छी लगी। बधाई।
HEY PRABHU YEH TERA PATH
http://ombhiksu-ctup.blogspot.com/
February 22, 2009 at 6:03 AM
अंशु जी, अविजीत ने एक ही कविता भेजी। वे चाहते थे यही छपे। कविता छोटी है, सब कुछ कह जाती है। इसके बाद सिर्फ लंबा मौन पसरता है..धीरे धीरे..। नुक्कड़ पर दोस्तों की रचनाओं का हमेशा स्वागत है...अविजीत सुन रहे हो ना.
February 27, 2009 at 4:12 AM
aashish, isht dev, kishore and hey prabhu,
aapko meri kavita achchi lagi, yeh padhkar achcha laga. hausla bhi
badha hai. jald hi aapko ek doosri kavita pesh karoonga. avijit
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