रविवार के नवभारत टाइम्स, दिल्ली के संपादकीय पेज पर रंजना कुमारी का यह विचारोत्तेजक लेख छपा है.चांद और फिजा के मोहबब्त का जो हश्र हुआ है, उसके बाद इस तरह के संबंधों पर बहस जरुरी है. हालांकि ऐसा न तो पहली बार हुआ है और ना ही इसे आखिरी माना जा सकता है. बहसें तो चलती रहती हैं. रंजना जी का यह लेख उसी बहस का हिस्सा है.
एक स्त्री जब किसी दूसरी स्त्री का घर उजाड़ रही होती है तो उसके सामने यह सवाल क्यों नहीं आता कि किसी की उज़ड़ी दुनिया की राख से कोई अपने आंगन में कैसे रंगोली बना सकता है..कितनी दुर्दांत कल्पना है..जहां एक चालाक पुरुष एक औरत को दूसरी औरत के खिलाफ औजार की तरह इस्तेमाल कर लेता है.
रंजना जी ने जो सवाल उठाए हैं मैं उन्ही का जवाब अपने सजग दोस्तो, अनदेखे साथियों से चाहती हूं- गीताश्री
शादीशुदा मर्द के प्यार में औरत की गत बुरी
रंजना कुमारी
एक परिपक्व शादीशुदा आदमी जब नया प्रेम संबंध बनाता है तो वह सिर्फ प्रेम को नहीं देखता है. इसमें स्टेटस, फाइनेंशल सिक्युरिटी और फैमिली जैसे फैक्टर भी जुड़े होते हैं. यह भी तय है कि वह व्यक्ति अपने परिवार के प्रति प्रतिबध्द नहीं है और परिवार की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहा है. वह दूसरी महिला से रिश्ता बना तो लेता है, लेकिन उसे निभाना इतना आसान नहीं होता. शुरूआती आकर्षण जल्द ही खत्म हो जाता है और जिंदगी की हकीकत सामने आती है. ऐसे में दोनों के बीच तनाव बढ़ता है और रिश्ता टूटने के कगार पर पहुंच जाता है. इस सबमें बेशक पुरुष को भी दिक्कतें आती हैं लेकिन अंतत: भुगतना महिला को ही पड़ता है.
चांद मोहम्मद और फिजा (पहले चंद्रमोहन और अनुराधा बाली) के मामले में भी अभी तक मिली जानकारी से यही लगता है. वैसे भी धर्म बदल कर दूसरी शादी करने को किसी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता. खुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धर्म परिवर्तन करके अगर कोई दूसरी शादी करता है तो वह पहली पत्नी की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता.
इस तरह के मामलों में एक नहीं, बल्कि दोनों महिलाओं के साथ नाइंसाफी होती है. जो लोग ऐसा करते हैं, वे सही सामाजिक और कानूनी व्यवस्था नहीं अपना रहे हैं. सामाजिक इसलिए कि वे पहली पत्नी से पति धर्म नहीं निभा रहे हैं. अगर किसी को दूसरी शादी करनी है तो उसे पहले तलाक लेना चाहिए. ऐसा न होने पर दूसरी महिला को कभी भी पत्नी का उचित दर्जा नहीं मिलता. उसे हमेशा धिक्कार की निगाहों से देखा जाता है. इस मामले में तो चांद मोहम्मद ने अपनी जायदाद पहले ही पहली पत्नी के नाम कर दी. इससे दूसरी महिला की आर्थिक सुरक्षा भी खत्म हो गई. जो प्रेम धोखाधड़ी की बुनियाद पर खड़ा हो, उसकी नींव कितनी मजबूत होगी, यह साफ है.
लेकिन सच यही है कि इन सब तमाम खामियों के बावजूद लोग इस तरह के संबंध बनाते हैं. इसकी वजह यह है कि प्रेम किसी भी समाज में पनपने वाली सतत भावना है. लेकिन हमारा समाज प्रेम संबंधों के प्रति अनुदार है. प्रेम को जाति और धर्म के दायरे में शादी के बंधन में बांधा जाता है. खासकर लड़कियों को शादी के रूप में जबरन प्रेम (फोर्स्ड लव) के लिए मजबूर किया जाता है. शादी जैसी संस्था प्रेम के लिए नहीं, बल्कि वंश चलाने या यूं कहें कि मानव जाति को बचाए रखने के लिए बनाई गई थी, जबकि शादी के बिना या शादी के बाहर भी प्रेम हो सकता है.
यह बड़ी बात है कि हमारे पौराणिक ग्रंथों के चरित्रों से लेकर देवताओं तक को प्रेम में लिप्त दिखाया गया है और हम बड़े गर्व से उन्हें स्वीकार करते हैं. कृष्ण की रासलीलाएं खुले प्रेम की स्वीकृति देती हैं. कुंती के बारे में कहा जाता है कि कर्ण की प्राप्ति उन्हें सूर्य से हुई. तो क्या मानें कि कुंती और सूर्य के बीच कोई प्रेम प्रसंग था! हम इन प्रसंगों पर गर्व के साथ बात करते हैं लेकिन जब हकीकत में प्रेम की बात आती है तो विरोधी हो जाते हैं. असलियत यह है कि औरत और मर्द होंगे तो प्रेम होगा.
बहरहाल, इस तरह के मामलों से उपजने वाला सबसे बड़ा सवाल यह है कि महिलाएं इस तरह के रिश्ते में पड़ती ही क्यों हैं? आखिरकार प्रताड़ता तो उन्हें ही झेलनी पड़ती है. उन्हें कोई भी कदम उठाने से पहले सोचना-समझना चाहिए. फिर उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि वे किसी दूसरी महिला की जिंदगी बर्बाद करने की वजह न बनें. यह सच भी स्वीकारना चाहिए कि जो व्यक्ति उसके लिए पहली पत्नी को छोड़ सकता है, वह किसी तीसरी के लिए उसे भी छोड़ सकता है. पहली पत्नी को भी यह समझना होगा कि जबरन किसी को बांधकर नहीं रखा जा सकता, लेकिन उसे आर्थिक रूप से सबल बनना चाहिए और पति से पूरा भरण-पोषण आदि लेना चाहिए.
(लेखिका सेंटर फॉर सोशल रिसर्च में डायरेक्टर हैं.)
बातचीत : प्रियंका सिंह
चांद मोहम्मद और फिजा (पहले चंद्रमोहन और अनुराधा बाली) के मामले में भी अभी तक मिली जानकारी से यही लगता है. वैसे भी धर्म बदल कर दूसरी शादी करने को किसी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता. खुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धर्म परिवर्तन करके अगर कोई दूसरी शादी करता है तो वह पहली पत्नी की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता.
इस तरह के मामलों में एक नहीं, बल्कि दोनों महिलाओं के साथ नाइंसाफी होती है. जो लोग ऐसा करते हैं, वे सही सामाजिक और कानूनी व्यवस्था नहीं अपना रहे हैं. सामाजिक इसलिए कि वे पहली पत्नी से पति धर्म नहीं निभा रहे हैं. अगर किसी को दूसरी शादी करनी है तो उसे पहले तलाक लेना चाहिए. ऐसा न होने पर दूसरी महिला को कभी भी पत्नी का उचित दर्जा नहीं मिलता. उसे हमेशा धिक्कार की निगाहों से देखा जाता है. इस मामले में तो चांद मोहम्मद ने अपनी जायदाद पहले ही पहली पत्नी के नाम कर दी. इससे दूसरी महिला की आर्थिक सुरक्षा भी खत्म हो गई. जो प्रेम धोखाधड़ी की बुनियाद पर खड़ा हो, उसकी नींव कितनी मजबूत होगी, यह साफ है.
लेकिन सच यही है कि इन सब तमाम खामियों के बावजूद लोग इस तरह के संबंध बनाते हैं. इसकी वजह यह है कि प्रेम किसी भी समाज में पनपने वाली सतत भावना है. लेकिन हमारा समाज प्रेम संबंधों के प्रति अनुदार है. प्रेम को जाति और धर्म के दायरे में शादी के बंधन में बांधा जाता है. खासकर लड़कियों को शादी के रूप में जबरन प्रेम (फोर्स्ड लव) के लिए मजबूर किया जाता है. शादी जैसी संस्था प्रेम के लिए नहीं, बल्कि वंश चलाने या यूं कहें कि मानव जाति को बचाए रखने के लिए बनाई गई थी, जबकि शादी के बिना या शादी के बाहर भी प्रेम हो सकता है.
यह बड़ी बात है कि हमारे पौराणिक ग्रंथों के चरित्रों से लेकर देवताओं तक को प्रेम में लिप्त दिखाया गया है और हम बड़े गर्व से उन्हें स्वीकार करते हैं. कृष्ण की रासलीलाएं खुले प्रेम की स्वीकृति देती हैं. कुंती के बारे में कहा जाता है कि कर्ण की प्राप्ति उन्हें सूर्य से हुई. तो क्या मानें कि कुंती और सूर्य के बीच कोई प्रेम प्रसंग था! हम इन प्रसंगों पर गर्व के साथ बात करते हैं लेकिन जब हकीकत में प्रेम की बात आती है तो विरोधी हो जाते हैं. असलियत यह है कि औरत और मर्द होंगे तो प्रेम होगा.
बहरहाल, इस तरह के मामलों से उपजने वाला सबसे बड़ा सवाल यह है कि महिलाएं इस तरह के रिश्ते में पड़ती ही क्यों हैं? आखिरकार प्रताड़ता तो उन्हें ही झेलनी पड़ती है. उन्हें कोई भी कदम उठाने से पहले सोचना-समझना चाहिए. फिर उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि वे किसी दूसरी महिला की जिंदगी बर्बाद करने की वजह न बनें. यह सच भी स्वीकारना चाहिए कि जो व्यक्ति उसके लिए पहली पत्नी को छोड़ सकता है, वह किसी तीसरी के लिए उसे भी छोड़ सकता है. पहली पत्नी को भी यह समझना होगा कि जबरन किसी को बांधकर नहीं रखा जा सकता, लेकिन उसे आर्थिक रूप से सबल बनना चाहिए और पति से पूरा भरण-पोषण आदि लेना चाहिए.
(लेखिका सेंटर फॉर सोशल रिसर्च में डायरेक्टर हैं.)
बातचीत : प्रियंका सिंह
February 2, 2009 at 10:48 AM
एक आकर्षण ....शारीरिक जरूरतें ....सुविधायें ...आसान तरीके से वो सब हासिल होने की चाहत जब पूरी होती दिखती है ....तो क्या पुरूष और क्या औरत ....सब बेवफाई पर उतर आते हैं ....वो उस वक्त अंधे हो जाते हैं ....उन्हें तो बस यह समझ आता है कि वो जो कर रहे हैं वही सही है .....लोग इस लिए जल रहे हैं क्योंकि वो ऐसा नही कर पा रहे और मैंने ऐसा कर लिया ...उन्हें इतनी सुंदर लड़की या लड़का नही मिला ....रास लीला रचाने के लिये ... वो साड़ी कर्तव्यपरायणता ....अपने बच्चो और बीवी या पति के प्रति जिम्मेदारी ...सब भूल जाते हैं ......और दूसरों पर हँसते हैं .....
मुझे नही लगता कि ऐसे केसेस में सिर्फ़ आदमी जिम्मेदार है ....दोनों में अक्ल होती है पर वो घास चरणे भेज देते हैं .....जब शारीरिक आकर्षण ....पैसा ....सुविधा ...स्टेटस मिला दीखता है ...उन्हें पहली बीवी या पति में बासीपन नज़र आने लगता है ...
लेकिन ऐसे किस्सों कि परते चाँद दिनों में खुल जाती हैं ...और सब बिखर जाता है जब आकर्षण की भूख मिटा ली जाती है ...तब दुनियादारी समझ आती है ....... ऐसे लोगों को समाज से बहिस्कारित कर दिया जाना चाहिए ....
ऐसे मामलों से यही सबक मिलता है कि स्त्री ख़ुद को स्वाबलंबी बनाये ....पैरों पर अच्छी तरह खड़ी हो .....और सोच समझ कर कदम उठाये ....
चाहे वो पहली पत्नी हो या जो आकर्षण में दूसरी पत्नी बन्ने की तमन्ना रखती हो ....
February 2, 2009 at 6:08 PM
रंजना जी के विचारों से थोड़ा सहमत लेकिन अधिक असहमत होने का दिल कर रहा हूं..पता नहीं किस जमाने की बात कर रही हैं। दुनिया बदल रही है और अब वक्त आ गया है कि हम भी बदलें
February 2, 2009 at 10:00 PM
आपने जरूरी प्रश्नों को घेर लिया है, देह के प्रति आकर्षण, आवश्यकता अथवा पसंद को हमारे इस समाज में प्रेम के अतिरिक्त अन्य नाम दिया जाना सम्भव ही नहीं है, साहित्य के किसी आलेख, कविता, कहानी में इस का वर्णन भी विवादों की जन्मभूमि बन जाता है, इस घटना को स्त्री के विरूद्ध स्त्री के उपयोग की दृष्टि से देखने को प्रेरित करने की जगह स्त्री की देह पर पड़ी पाबंदियों के इतर क्यों न हम इसे एक पतित पुरूष कहते हुए उसकी देह पर वर्जनाये थोप दे या फ़िर स्त्री को भी मुक्त करें? मृदुला गर्ग के उपन्यास "चित्त कोबरा" पर फौजदारी मुक़दमा इस लिए कर दिया गया की उन्होंने कथित रूप से नायिका के अपने पति के साथ संभोगरत होने का वर्णन कर दिया।( बकौल :मनोहर श्याम जोशी) आज कहाँ है वे जागरूक लोग जो चाँद को धरती की अदालत में घसीट लायें। सम्बन्ध जायज़ या नाजायज़ तब होते है जब आप सामाजिक मान्यताओं के साथ रहते है यहाँ अपनी प्रतिष्ठा और स्त्री की देह के लोभ (मन से पाने पर आप और हम ये सब कभी नहीं जान पाते) में किया धरा ताजमहल रूपी प्रेम पर पान की पीक मात्र है।
February 3, 2009 at 1:56 AM
February 3, 2009 at 2:03 AM
रंजना जी कि किसी भी बात से मैं भी सहमत नहीं हूं क्योंक वह हरियाणा को नेताओं की राजनीति और उससे भी ज्यादा वह उन संस्कारों के बारे में नहीं जानती हैं जो हरियाणा के नेताओं ने अपनी औलादों को दिए हैं। फिजा-चांद प्रकरण क्यों शुरू हुआ...क्यों
खत्म हुआ वह नहीं जानती हैं। दूसरी बात कि फिजा भी इस मामले में बराबर की दोषी हैँ। उसे न तो चांद से प्यार था और चांद को तो पहले से ही फिजा से प्यार नहीं था। यह शादी किसी कारण हुई थी और उस कारण जो दोनों की बदनामी हुई उससे चांद को तो फरक नहीं पड़ने वाला जो भी फरक पड़ेगा वह फिजा को ही पड़ेगा। शादी के उस कारण को दोनों बना शादी किए भी सुलझा सकते थे।
February 3, 2009 at 2:15 AM
रंजना जी, शादी-शुदा मर्द से ही नहीं औरत की गत हमेशा ही प्यार में बुरी होती है। रही बात फिजां की तो जब वे अपने चांद को ले कर दिल्ली पहुंची तो प्रेस क्लब में मैं भी मौजूद थी। मैंने सिर्फ एक सवाल पूछा, क्या आप हमारे लिए सुरह यासीन पढ़ देंगे। सुरह यासीन कुरान की पहली आयत है जो किसी नास्तिक हिंदू को गायत्री मंत्र याद रह जाने की तरह आसान है। सवाल चंद्रमोहन से पूछा गया था, लेकिन इस समान्य सवाल पर वह ऐसे असामान्य तरीके से भड़की कि अगले दिन हर अखबार की सुर्खियों में यह खबर थी। उनका चलने का तरीका और बात करने का अंदाज ही बता रहा था कि उनके चहरे पर उप मुख्यमंत्री पर फतह हासिल करने की चमक थी। अब यह चमक फीकी पड़ गई क्योंकि उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो सके। नींद की दवाई खाने और फिर प्रेस कॉन्फेंस में एसएमएस पढ़ कर सुनाना ही बताता है कि वह अपने प्यार के मामले में कितनी गंभीर हैं। जिस व्यिक्ति को प्यार किया जाता है, उसे सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत को नहीं किया जाता।
अनुराधा बाली ने अपने प्रेम को सार्वजिनक कर, चंद लम्हों की लोकप्रियता के लिए राष्ट्रीय मनोरंजन से ज्यादा कुछ नहीं किया है।
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