अब पेश है मनीषा की कविताएं. मनीषा की इन कविताओं से गुजरते हुए आप पाएंगे कि इन कविताओं में काल का पृष्ठ तनाव गुजरे हुए से लेकर भविष्य तक विस्तारित होता है; हर उस अच्छी कविता की तरह, जिसके आकाश में प्रेम किसी संतूर-सा बजता रहता है. -गीताश्री
मनीषा तनेजा की चार कविताएं
एक
घास पर दो परछाइयां
लंबी होती, बढ़ती हुई साथ-साथ चलती हुई
हरे घास के मैदान से होकर.
तुम्हारे बेहद चौड़े कांधे मेरी दुबली-पतली उंगलियां
दो परछाइयां साथ-साथ
और बीच में सूरज की किरणें
क्षितिज से कितनी दूर
परछाइयों के साथ बैंगनी रंग
जैसे हमारे पीछे डूबता है सूरज
कांधे पर तुम्हारी बाहें मुझे खींच रही है तुम्हारे करीब
जब ढलती है शाम
दोनों परछाइयां मिलकर एक हो जाती हैं.
दो
समय की रफ्तार के साथ साल दर साल गुजरते जाते हैं,
वो रुकते हैं तुम पर मुस्कुराने के लिए
तुम्हें तुम्हारी सुहानी यादों के साथ बांधने के लिए
जिंदगी ने तुम्हें जो खुशियां दी हैं
और तुम जिन्हें खुलकर
अपने हर मिलने वालों के साथ बांटते हो
यही चीज तुम्हारी जिंदगी को मुकम्मल बनाती है
ऐसा करके तुम हमेशा जवान बने रहते हो
क्योंकि तुम्हारे पास देने के लिए काफी कुछ है,
तुम सदा युवा ही रहोगे
क्योंकि तुमने देना सीख लिया है.
तीन
मेरी ख्वाहिश है
इंद्रधनुष को कैद करके
एक बड़े बक्से में डाल दूं
ताकि तुम जब चाहो उसके पास जाकर
एक चमकीला टुकड़ा खींचकर ले लो.
मैं तुम्हारे लिए एक पहाड़ बनाना चाहती हूं
जिसे तुम अपना कह सको,
एक ऐसी जगह
जहां तुम खुद से करीब होने की जरूरत के वक्त जा सको
जब तुम तकलीफ में होगे
या बहुत प्यारे लग रहे होगे
या जब किसी का साथ यूं ही चाहोगे,
चाहती हूं ऐसे पलों में
तुम्हारे साथ रहूं
मैं तुम्हारे लिए वो सब कुछ करना चाहती हूं या
इससे कहीं ज्यादा भी
जो तुम्हारी जिंदगी को खुशियों से भर दे.
पर कभी-कभी ऐसा करना आसान नहीं होता
तब मैं तुम्हारे लिए वो करना चाहूंगी या
तुम्हें वो दूंगी जो मेरी चाहत है
इसीलिए जब तक मैं इंद्रधनुष को कैद करना या
कोई पर्वत बनाना नहीं सीख लेती तब तक
तुम्हारे लिए मुझे वो करने दो जिसे करना
मैं बखूबी जानती हूं-
मुझे बस अपना दोस्त बनने दो.
चार
एक बेजान गुलाबी याद ने मेरे दिल को छुआ
गुलाबी रंग चटक लाल रंग में ढल गया
फिर उसका रंग गहरा बैंगनी हो गया
खिलखिलाती हंसी से आंसू तक के वो दिन
मस्ती और निराशा से भरे
हम इन सबसे गुजर चुके हैं, क्या ऐसा नहीं है?
हल्के रंगों से गहरे चमकीले रंगों की ओर
हर बार मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं
मेरी मुस्कान सारी भावनाओं को व्यक्त कर देती है.
November 9, 2008 at 5:12 AM
बहुत सुन्दर कवितायें!!
मनीषा जी को बधाई एवं शुभकामनाऐं!!
November 9, 2008 at 5:54 AM
सुंदर कविता के लिऐ कवियत्री को बधाई
November 9, 2008 at 6:18 AM
bahut khub
November 9, 2008 at 7:53 AM
hi this is keshav patel
ur poem is so heartly.it great
November 9, 2008 at 10:18 AM
आपने सही लिखा है गीता जी.मनीषा तनेजा की ये कविताएं अपने कहन में एक खास किस्म की ध्वनी छोड़ जाती हैं. मुझे यह कहने के लिए माफ करें कि इन कविताओं में दुहराव भी है और विस्तार का अभाव भी. लेकिन फिर लगता है कि अंततः हम सब पूरी जिंदगी एक ही कविता तो लिखते हैं-नए नए तरीके से. दुहराते हुए.कविता के लिंक कुछ मित्रों को भी भेजे हैं.
November 9, 2008 at 7:19 PM
बहुत सुंदर कवितायें हैं.
"तुम सदा युवा ही रहोगे क्योंकि तुमने देना सीख लिया है.", यह तो बहुत ही सुंदर विचार है.
कृपया कमेन्ट मोडरेशन हटा दीजिये.
November 9, 2008 at 10:51 PM
सपने और ख्याल हमेशा लड़कियों के ही गुलाबी क्यों होते हैं, वे ही हमेशा अपने साथी के लिए पहाड़, नदी, झरने, शांति, इंद्रधनुष की कामनाएं क्यों करती हैं. अगर यह सब उनके जीवन में हो तो क्या ज्यादा अच्छा नहीं है। उनसे अलग अपने लिए सोचने वाली जिंदगी, ख्यालों से कहीं अच्छी नहीं होगी क्या...
November 10, 2008 at 12:06 AM
bahut sunder kavitayen likhti he aap
kabhi hamre dustbin me jhanke
regards
November 10, 2008 at 9:54 AM
कविताएं अच्छी हैं । लेकिन मनीषा जी का गद्य ज्यादा सधा है । बुड्ढे(मैत्रेयी जी की आत्मकथा के दूसरे खंड से उधार लिया शब्द) को टिका दिया जाए
November 12, 2008 at 1:18 AM
जिंदगी ने तुम्हें जो खुशियां दी हैं
और तुम जिन्हें खुलकर
अपने हर मिलने वालों के साथ बांटते हो
यही चीज तुम्हारी जिंदगी को मुकम्मल बनाती है
बहुत ही सुंदर और दिल को छूने वाली कवितायें है,
मनीषा जी को मेरी तरफ़ से बधाइयां
November 12, 2008 at 1:23 AM
BAHUT AACHHI KACITAYEN LIKHI HAI AAPNE ISKELIYE AAPHO DHANYABAD.............
November 21, 2008 at 1:52 AM
परम आदरणीय गीताश्री जी , आपके ज़रिये मनीषा जी की कविताएं पढीं. सच तो ये है कि कविताएं मेरी समझ के परे होती हैं. लेकिन कुछ शब्द अपने भावः मेरी जेहन में छोड़ जाते हैं. मैं तुम्हारे लिए एक पहाड़ बनना चाहती हूँ . ये वाक्य छू गया. मनीषा जी के एक नए चेहरे को सलाम है. आपका शुक्रिया कि आपने हमें पढने का मौक़ा दिया.
चन्दन प्रताप सिंह
December 2, 2008 at 4:45 AM
बहुत बढिया……और ढेर सारी शुभकामनाएं भी आपके बेहतरीन लेखन के लिये।……और हां एक खास बात और वो ये कि आपकी प्रोफ़ाइल का मसौदा मुझे बहुत भा गया था सो बस उसे चुरा लिया।…॥ उसके लिये बेहद क्षमाप्रार्थी हूं।
December 2, 2008 at 10:50 AM
बहुत खूब मनीषा जी बस यही शब्द हैं आपके लिये कि DON'T STOP.....KEEP IT UP
भविष्य मैं भी इसी तरह की उम्दा अभिव्यक्तियों के लिये हार्दिक शुभकामनाऐं :-)
December 3, 2008 at 10:21 AM
मनीषा जी की चारों कवितायें अपने चतुर्दिक नज़रिए के परिणामस्वरूप अलग अलग टेस्ट दे गईं
बधाई मनीषा जी
December 5, 2008 at 2:44 AM
Manishaji,
In ur poems, best thing is CLIMAX . specially in 'tab tak dost hi rehne do'...
bye
December 5, 2008 at 11:24 PM
Manisha ji,
3rd poem' CLIMAX ( tab tak mujhe dost banne do) is very very good...
keep it up.
December 6, 2008 at 11:13 AM
मनीषा जी, आज "कोई बात नहीं पापा" पढी………सचमुच इसने मुझे हिला कर रख दिया है…………अब आसानी से तो नही सो सकूंगा और वैसे भी इस वक़्त 1-1:30 बज रहा है……
December 7, 2008 at 7:09 AM
bahut khoob...likhte rahiye...hame bhi inhi kavitaon se urja milti hai.
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