tag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post3810572565552132048..comments2023-10-05T08:02:34.441-07:00Comments on नुक्कड़: पहले औरत होकर तो देखेंGeetashreehttp://www.blogger.com/profile/17828927984409716204noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post-14547090747506564402010-02-12T20:50:01.329-08:002010-02-12T20:50:01.329-08:00औरत के दर्द को औरत ही जानेगी दूसरा नहीं .आज एक १५ ...औरत के दर्द को औरत ही जानेगी दूसरा नहीं .आज एक १५ साल की निश्छल लड़की भी महसूस करना शुरू कर देती है कि सामाजिक स्तर पर समान होने का हक पाने के बाद भी वह दोयम दर्जे पर है लड़कों के फिकरे उसको सामान ही होने का एहसास कराते हैं .पुरुष कैसे जानेगे ये दर्द!!आकांक्षा को बेबाक लेखन के लिए बधाई .प्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post-73108055659792941382010-02-08T08:03:40.560-08:002010-02-08T08:03:40.560-08:00कुछ बातें हमारे उपचेतन में बैठी होती हैं। हम अनजान...कुछ बातें हमारे उपचेतन में बैठी होती हैं। हम अनजाने में उसे कह बैठते हैं। हो सकता है यह डायलाग लिखते वक्त लेखक ने इतनी दूर तक न सोचा हो। लेकिन अब इस पोस्ट को पढ़ने के बाद जरूर सोचेगा। लेखक ने इश्किया और शोले को अलग नुक्ताए-नजर से देखा है। और ये बात काबिले तारीफ है। <br /><br />मैंने इश्किया नहीं देखी है। लेकिन यदि फिल्म के जिस चरित्र ने यह डायलाग बोला है उस चरित्र से मिलते -जुलते पात्र समाज मेंRangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post-5900361385518755002010-02-08T07:33:39.647-08:002010-02-08T07:33:39.647-08:00अरे यार आकांक्षा !!!!!!!! दुनिया को औरत की आँख
से...अरे यार आकांक्षा !!!!!!!! दुनिया को औरत की आँख <br />से देखता कौन है ? जब उसकी नज़र से देख नही सकते तो औरत कैसे हो पाएंगे ? कलेजा चाहिए .सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post-12042670226266344272010-02-08T07:30:26.725-08:002010-02-08T07:30:26.725-08:00मैंने फिल्म नहीं देखी, और कमेंट करने से पहले फिल्म...मैंने फिल्म नहीं देखी, और कमेंट करने से पहले फिल्म देखना $जरूरी है. इसलिए नहीं किया था. लेकिन किसी ने भाषा की नैतिकता का ठीकरा हमेशा की तरह फिर से औरतों के ही सिर पर फोड़ दिया तो रहा नहीं गया. जितनी कड़वाहट जमाने ने औरतों को दी है उसके बाद भाषा कैसे न तेजाबी हो जायेगी. हर बात पर हाय-हाय करने की आदत भी क्या आदत है. मर्म समझने की कोशिश करिये ना...लेख सचमुच अच्छा है और जरूरी भी. बाकी फिल्म देखने के Pratibha Katiyarhttps://www.blogger.com/profile/08473885510258914197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post-87389363823223918732010-02-08T01:54:32.403-08:002010-02-08T01:54:32.403-08:00किसी संवाद लेखक या फिल्म निर्देशक ने यदि किसी खास ...किसी संवाद लेखक या फिल्म निर्देशक ने यदि किसी खास चरित्र निभा रहे पात्र से कोई ऐसा संवाद बुलवा दिया है, जिस से आपको पीड़ा हुई तो इसका मतलब ये नहीं है कि पूरी मर्द जात को गलियां निकाली जाएँ. फिर आपमें और उस निर्देशक की मानसिकता में क्या अंतर रह गया है ? अति रंजना ठीक नहीं है. उसने जो संवाद बुलवाया, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता लेकिन आपने जिस भाषा का उपयोग किया है, वह भी शालीनता को लाँघ रही है.ओमकार चौधरीhttps://www.blogger.com/profile/00252694907504968476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8183485004815148401.post-74763237623982609192010-02-08T01:25:38.201-08:002010-02-08T01:25:38.201-08:00bahut khub.achhchha laga dhanybaad..bahut khub.achhchha laga dhanybaad..Anonymousnoreply@blogger.com